रेणु भट्टाचार्य


विशाखापट्टनम और उड़ीसा में पिछले दिनों आए चक्रवात हुदहुद के निशान अभी तक उन जगहों पर मौजूद हैं। वैज्ञानिकों की पहले से की गई भविष्यवाणी के कारण स्थिति नियंत्रण में रही। बावजूद इसके इस तूफान ने काफी विनाश किया।
जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली आशंकाओं से अब लोग काफी डरने लगे हैं। तमाम वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद प्रकृति के सामने मनुष्य असहाय नज़र आता है। इस बात को साबित करते हैं समुद्र से उठने वाले भयंकर तूफान, जो चक्रवात से पैदा होते हैं। इस तरह के तूफान समुद्र तटीय क्षेत्रों में हर साल बड़ी तबाही लाते हैं जिससे जान-माल का बहुत नुकसान होता है। विज्ञान ने इस मामले में इतनी मदद ज़रूर की है कि वह इस तरह के तूफानों की पहले से भविष्यवाणी कर देता है जिससे समय रहते बचाव के उपाय करने में आसानी होती है।
 हुदहुद के बाद भारत पर नीलोफर चक्रवात का हमला हुआ। हुदहुद ने भारत के पूर्वी तट पर हमला किया था जबकि नीलोफर पश्चिमी तट पर आया। नीलोफर का नाम पाकिस्तान ने रखा है। जब ऐसे चक्रवातों का हमला होता है तो पूरी व्यवस्था बेबस नज़र आती है। इनसे बचने का सिर्फ एक ही उपाय है कि आप ज़्यादा से ज़्यादा एहतियात बरतें। दरअसल चक्रवात समुद्री हो या स्थलीय, इतना ताकतवर होता है कि अपने सामने आने वाली हर चीज़ को तहस-नहस कर देता है।

क्या है चक्रवात
चक्रवात हमारे वायुमंडल की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। इसका जन्म वायुमंडल में मौजूद विभिन्न प्रकार की वायुराशियों के मिलने के दौरान वायु के तीव्र गति से ऊपर उठकर बवंडर का रूप ग्रहण करने से होता है। चक्रवात के केंद्र में कम दबाव का तथा बाहर की ओर उच्च दबाव का क्षेत्र होता है। केंद्र के कम दबाव के कारण ही हवा बाहर की ओर से केंद्र की ओर आती है। इस दौरान हवा ऊपर उठ कर ठंडी होती है और वर्षा कराती है।
चक्रवात में हवा चलने की दिशा उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत और दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा में होती है। मंगल और नेप्च्यून ग्रहों पर भी चक्रवात उठते हैं। जब चक्रवात समुद्र में उठते हैं तो ज़्यादा शक्तिशाली होते हैं। इनसे भारी बारिश होती है। हवा और बारिश मिलकर ज़्यादा तबाही मचाते हैं।

कई प्रकार के चक्रवात
धुव्रीय या पोलर चक्रवात - यह आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्र का चक्रवात है। यह क्षेत्र कम दबाव वाला विस्तृत क्षेत्र है जो सर्दियों में मज़बूत और गर्मियों में कमज़ोर पड़ जाता है। उत्तरी गोलार्ध में चक्रवात के औसतन दो केंद्र होते हैं। एक केंद्र बफ्फिन द्वीप में और दूसरा उत्तर-पूर्वी साइबेरिया के निकट होता है। दक्षिणी गोलार्ध में यह 160 डिग्री पश्चिमी देशांतर पर रोस आइस शेल्फ के किनारे है। इस पूरे क्षेत्र में काफी कम आबादी रहती है इसलिए इसका प्रकोप कम होता है।
पोलर लो चक्रवात - यह काफी छोटे पैमाने का चक्रवात है। ये चक्रवात दोनों गोलार्ध के आगे की ओर महासागरीय क्षेत्र में पाए जाते हैं। इस चक्रवात की अवधि काफी कम होती है। मात्र 24-48 घंटे तक। अतिरिक्त उष्ण कटिबंधीय या एक्स्ट्रा ट्रॉपिकल चक्रवात नामक चक्रवात मध्य अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं। इस क्षेत्र को बोरोक्लीनिक क्षेत्र कहा जाता है। इन्हें अधिक खतरनाक नहीं माना जाता और ये करीब-करीब प्रत्येक दिन बनते हैं। ब्रिटेन और आयरलैंड को इस छोटे चक्रवात का सामना अक्सर करना पड़ता है।
सब ट्रॉपिकल चक्रवात - ये एक्स्ट्रा ट्रॉपिकल और ट्रॉपिकल चक्रवात के बीच की श्रेणी के चक्रवात हैं। इस कैटेगरी को अमेरिका के नेशनल हरीकेन सेंटर ने 1972 में मान्यता दी। ये जिन इलाकों में उठते हैं वहां समुद्र की सतह का तापमान करीब 3 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होता। इस चक्रवात में हवाओं की गति अमूमन 50 कि.मी. प्रति घंटे से कम होती है जिस कारण इनसे अधिक हानि नहीं होती। उष्णकटिबंधीय या ट्रॉपिकल चक्रवात सबसे भयंकर चक्रवात होते हैं। इसमें तेज़ हवाएं और मूसलाधार वर्षा होती है। तूफान कड़कड़ाती बिजली और ज़बर्दस्त गति के साथ प्रति घंटे 100 किलोमीटर से अधिक की रफ्तार से आगे बढ़ता है। समुद्र तटीय इलाकों में यह विनाश की स्थिति पैदा करता है। हुदहुद और नीलोफर सहित जितने भी भयानक चक्रवात हैं सारे इसी श्रेणी के हैं।

मेसोस्केल
यह हवा का छोटा-सा भंवर है जिसका व्यास 2 से लेकर 10 किलोमीटर तक हो सकता है। यह अक्सर तूफानी होता है। सतह पर तेज़ हवा और ओलावृष्टि इसकी खास पहचान है। इनकी संख्या काफी होती है लेकिन छोटे होने के कारण इनसे नुकसान नहीं होता। प्रति वर्ष अमेरिका में करीब 1700 मेसोस्केल उठते हैं जिनमें आधे की ही स्थिति तूफान वाली होती है।
प्रतिचक्रवात
चक्रवात के केंद्र में कम दबाव की स्थापना होने पर बाहर की ओर दबाव बढ़ता जाता है। चक्रवात में हवा केंद्र की तरफ आती है और ऊपर उठकर ठंडी होती है और वर्षा करती है। इससे उलट स्थिति होने पर प्रतिचक्रवात का निर्माण होता है लेकिन इसमें वर्षा नहीं होती और इससे विनाश की कोई घटना भी सामने नहीं आती। चक्रवात में वायु चलने की दिशा उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत और दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सुई की दिशा में होती है।

आठ देशों का पैनल
 भारतीय उपमहाद्वीप वाले इलाके में आने वाले तूफान का नाम आठ देश तय करते हैं। ये देश हैं - भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, श्रीलंका और थाईलैंड। इन देशों ने 64 नामों की एक सूची बनाई है। सूची देशों के वर्ण क्रम के अनुसार है। हुदहुद के पहले इस जून को आने वाला तूफान नानुक था जिसका नाम म्यांमार ने रखा था। पिछले साल भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर आए पायलिन चक्रवात का नाम थाईलैंड ने रखा था। इस सूची में शामिल भारतीय नाम काफी आम हैं। जैसे मेघ, सागर, वायु आदि। नामों को लेकर विवाद भी हुआ है। 2013 में श्रीलंका सरकार ने तूफान का नाम महासेन रखा। इस नाम पर श्रीलंका के राष्ट्रवादियों और अधिकारियों ने विरोध जताया। बाद में नाम बदल कर वियारु रख दिया गया। विवाद का कारण यह था कि महासेन श्रीलंका में शांति और समृद्धि लाए थे जबकि तूफान तबाही लाता है।
हुदहुद का नाम ओमान ने रखा। यह चक्रवात बंगाल की खाड़ी में उत्तरी अंडमान के पास उठा और इसने उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में तबाही मचाई। हुदहुद अरबी भाषा में हुपु नाम की चिड़िया को बोला जाता है। नीलोफर 64 नामों की सूची का 35वां नाम है। पाकिस्तान ने इससे पहले आने वाले तूफान का नाम नीलम रखा था।

हरीकेन का रोचक इतिहास
वेस्ट इंडीज़ में संतों के नाम पर चक्रवाती तूफान के नाम रखने की पुरानी परंपरा है। इसी परंपरा में एक नई कड़ी जोड़ी आस्ट्रेलियाई मौसम विज्ञानी क्लीमेंट वेज ने। उन्होंने उन्नीसवीं सदी के अंत में हरीकेनों के नाम महिलाओं के नाम पर रखने शु डिग्री किए। 1978 में पहली बार हरीकेन का नाम पुरुषों के नाम पर रखा गया। वैज्ञानिक बताते हैं कि छोटे नाम समुद्री तूफान को लंबे समय तक याद रखने में सहायक होते हैं। साइकोलॉजिकल तौर पर महिलाओं के नाम से इसे इसलिए जोड़ा गया ताकि इसे याद रखने में और आसानी हो। मज़ेदार बात है कि उत्तरी हिंद महासागर में उठने वाले चक्रवातों का कोई नाम नहीं रखा गया था क्योंकि ऐसा करना विवादास्पद था। स्थिति तब बदली जब 2004 में अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन की अगुवाई वाली अंतर्राष्ट्रीय पैनल को भंग कर दिया गया। इसके बाद देशों से अपने-अपने क्षेत्र में आने वाले चक्रवातों का नाम खुद रखने को कहा गया।

सबसे भयानक चक्रवात
यकीनन समुद्री क्षेत्र में उठे उष्णकटिबंधीय चक्रवात सबसे भयानक मंजर दिखाते हैं। इसमें भी हरीकेन सबसे भयंकर है। इनकी संरचना और आगे बढ़ने का मार्ग निर्धारित होता है। अमेरिका के तटीय इलाके में इन्होंने कई बार तबाही मचाई है। तूफान, बारिश और बाढ़, तीनों की स्थिति इनसे बनती है। हवा की गति 100 कि.मी. प्रति घंटे से अधिक और कभी-कभी तो 200-250 कि.मी. तक पहुंच जाती है। अटलांटिक महासागर, कैरेबियन सागर और मेक्सिको की खाड़ी में हर वर्ष करीब 10 ट्रॉपिकल तूफान उठते हैं जिनमें से 6 हरीकेन होते हैं। हरीकेन जब-जब आता है उसे एक नया नाम दिया जाता है। जैसे- कैटरीना, रीटा आदि। टोरनेडो एक भयंकर अल्पकालिक तूफान है। अमेरिका के मिसीसिपी इलाके और आस्ट्रेलिया में इसकी तबाही देखी जा सकती है। यह जल-थल, दोनों पर उत्पन्न होता है। इसमें स्थलीय हवाओं की गति 325 कि.मी. प्रति घंटे तक होती है। टोरनेडो कई बार हरीकेन से ही बनते हैं। हरीकेन की सीधी तरफ का चौथाई हिस्सा टारनेडो कहलाता है। टायफून प्रशांत महासागर में उठते हैं। चीन सागर के इलाके में इनकी तबाही देखी जा सकती है। हवाओं की गति 160 कि.मी. प्रति घंटे होती है। (स्रोत फीचर्स)