मनीष वैद्य

आकाश पानी रोकेंगे, पाताल पानी बढ़ाएंगे.... यह महज ख्याली पुलाव नहीं है, बल्कि देश में इसे लेकर बीते सालों में बड़े काम हुए हैं। मध्यप्रदेश के देवास में करीब 15 साल पहले बारिश के पानी को रोकने की बड़ी पहल शुरु की गई थी। यहां के एक भूगर्भ वैज्ञानिक ने मकानों की छतों से हर साल व्यर्थ बह जाने वाले पानी को ज़मीन में रिसाने के लिए एक सस्ती, आसान और अब तक की सबसे अच्छी रूफ वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक विकसित की थी। देवास मॉडल के नाम से इसकी देश भर में खूब चर्चा हुई और देश के कई हिस्सों में इस तरह का काम शु डिग्री किया गया।
बारिश का सैकड़ों गैलन पानी हर साल व्यर्थ बहकर नदी नालों में चला जाता है और धरती की कोख प्यासी ही रह जाती है। रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग के देवास मॉडल में मकानों की छतों पर गिरने वाले बरसाती पानी को पीवीसी पाइप के ज़रिए जल स्रोतों (नलकूप, हैंडपम्प, कुआं, बावड़ी आदि) में भेजा जाता है। इसमें इन जल स्रोतों का जल स्तर तो बढ़ता ही है, साथ ही पानी की कठोरता भी कम होती है। बरसाती पानी के आने से वह कठोर पानी को मृदु पानी में बदल देता है। इससे पानी अपेक्षाकृत स्वादिष्ट हो जाता है।

इस तकनीक के ज़रिए किसी भी प्रकार की अशुद्धि जल स्रोत में न जा सके इसके लिए विशेष प्रकार के फिल्टर बनाए गए हैं। प्रारम्भ में यह तकनीक बहुत खर्चीली थी किंतु जटिल संरचनाओं वाली इस तकनीक को देवास में सरल व सस्ता किया गया है। एक अनुमान के मुताबिक यदि 1 से.मी. बारिश होती है तो हज़ार वर्ग फीट की छत से हज़ार लीटर पानी बहकर निकल जाता है। यदि औसत बारिश 100 से.मी. होती है तो इस हिसाब से एक वर्षा काल में 1000 वर्ग फीट की छत से लगभग 1 लाख लीटर पानी जल स्रोत तक पहुंचाया जा सकता है। शु डिग्री में लोगों ने इसे लेकर कई तरह की शंकाएं जताईं लेकिन बाद में इस तकनीक के फायदे देख कर इसे खुशी से अपनाया है।
देवास मॉडल को विकसित करने वाले भूजलविद सुनील चतुर्वेदी बताते हैं कि 1998 या इससे भी कुछ सालों पहले से ही जगह-जगह से जल संकट की गूंज सुनाई देने लगी थी। देखते ही देखते पर्याप्त पानी वाले इलाकों में भी पानी के हालात चिंताजनक होने लगे। लोग धरती के अंदर पानी ढूंढने के लिए गहरे और गहरे तक जा रहे थे। बारिश लगातार अनियमित और कम होती जा रही थी। ऐसी खबरें पढ़कर मन विचलित हो जाता था। आगे क्या होगा यह सोच-सोच कर घबराहट-सी होती थी। सोचा, क्यों न कुछ शुरुआत की जाए। कम से कम ज़मीन से तो पानी मिलता रहे।
क्यों न बारिश के लाखों गैलन पानी को व्यर्थ बहने से रोककर ज़मीन में उतारा जाए ताकि ज़मीन का जल स्तर बढ़ सके? और इस तरह शुरुआत हुई इस काम की। इस काम को आगे बढ़ाने में मदद की देवास के तत्कालीन ज़िला कलेक्टर एम. मोहन राव ने। उन्होंने प्रशासनिक स्तर पर ही नहीं बल्कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की भागीदारी सुनिश्चित कर इसे एक जन आंदोलन का रूप देने का बीड़ा उठाया। इस तरह 15 मई 1999 को देवास में देश के पहले भूजल संवर्धन मिशन की शुरुआत की गई। 
                            
इस तकनीक में मकान की छत की ढाल के अनुसार बरसाती पानी के आउटलेट से जल स्रोत तक पीवीसी पाइप लगाए जाते हैं। स्रोत के समीप इसी पाइप लाइन में फिल्टर लगाया जाता है। बस यही है रूफ वाटर हार्वेस्टिंग और इस तरह आकाश का पानी पाताल की गहराई में पहुंचता है। 140 मि.मी. व्यास व 1.2 मीटर लंबे पीवीसी पाइप में फिल्टर के लिए 6 से 12 मि.मी. लंबे व 12 से 20 मि.मी. व्यास बाले बोल्डर फिल्टर मटेरियल के रूप में भर दिए जाते हैं। इसके बाद पाइप के दोनों सिरों पर 6 मि.मी. व्यास से कम छिद्रों वाली एक तार की जाली लगाकर 140/63 मि.मी. के रिड्यूसर लगा दिए जाते हैं। नलकूप की ओर वाले फिल्टर के सिरे पर एक 63 मि.मी. की च्र् भी लगाई जाती है। इससे फिल्टर को बेकवॉश किया जा सकता है तथा जैविक प्रदूषण रोकने के लिए सोडियम हाइपो क्लोराइड या पोटेशियम परमेंगनेट का घोल भी यहां से डाला जा सकता है। फिल्टर के पूर्व पाइप लाइन में एक ड्रेन वॉल्व भी लगाया जाता है, जिससे बरसात के शुरुआती पानी को ड्रेन किया जा सकता है ताकि वर्ष भर की छत की गंदगी भी घुलकर बह सके।

इस तकनीक ने कुछ ही दिन में देवास शहर में खासी लोकप्रियता हासिल कर ली। ज़िले में इस काम ने ऐसी मिसाल कायम की कि देश भर में इसकी गूंज सुनाई देने लगी। इसी साल देवास के काम को देखने पहुंची सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड की टीम ने भी इस तकनीक की प्रशंसा की। सन 2000 में इसे इंटरनेशनल व्यापार मेले में अवार्ड भी मिला। इसके बाद तो देश भर में इस तकनीक को इतनी सराहना मिली कि देवास इसके नाम से पहचाना जाने लगा। सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड की अनुशंसा पर केंद्र सरकार ने वर्ष 2002 में इसे देश भर में अनिवार्य कर दिया। अब देश में नगर पालिकाएं और नगर निगम जैसी स्थानीय संस्थाएं लोगों को मकान का नक्शा पास करने से पहले यह सुनिश्चित करती हैं कि नए बनाए जा रहे मकान में अनिवार्य रूप से देवास मॉडल रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जाए। इसके लिए कुछ राशि भी जमानत के तौर पर जमा कराई जाती है और तकनीक इस्तेमाल करने के बाद यह राशि वापस कर दी जाती है। इस दिशा में कई जगह बहुत अच्छा काम हो रहा है पर जल संकट की भयावहता को देखते हुए अभी बहुत काम किया जाना ज़रूरी है। इस तरह की तकनीकों के इस्तेमाल पर ज़ोर देकर ही हम इस संकट के खतरे का सामना कर सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)