डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन


वैदिक लोग 1600 ईसा पूर्व से गायों को घरों, समुदायों और समाज में पालते थे। हालांकि ये प्राचीन भारतीय लोग कई पशुओं (घोड़े, बिल्लियों, बाघों, कुत्तों, हिरनों, हाथियों और यहां तक कि गैंडों) से परिचित थे लेकिन हमेशा से ही गाय की पूजा गौमाता के रूप में की जाती रही है। गाय की यह पवित्रता आज तक चली आ रही है। वह पालतू, सज्जन, रोज़ दूध देने वाली है और यहां तक कि उसका गोबर भी हम विभिन्न कामों में इस्तेमाल करते हैं।
उसकी पूजा और प्रशंसा करने के लिए इतने कारण पर्याप्त हैं। मगर कुछ लोगों ने गायों के कुछ अनोखे गुणों का बखान किया है जो वैज्ञानिक तौर पर असमर्थनीय हैं।

मेरे एक रिश्तेदार सुंदरम ने मुझे इसी तरह के दावों का एक सेट भेजा था जिसे निम्नलिखित साइट पर देखा जा सकता है:https://www.iskconbangalore.org/blog/why-should-i-not-kill-cow/ । कुछ अन्य साइट्स भी हैं जो इसी तरह के ‘वैज्ञानिक’ दावे करती हैं। इस कॉलम में मैं यह बताना चाहता हूं कि क्यों ये दावे वैज्ञानिक तौर पर अस्वीकार्य हैं।
दावा 1: एक गाय को प्रतिदिन कुछ निश्चित मात्रा में ज़हर की खुराक दी गई। 24 घंटों के बाद उसके रक्त, पेशाब, गोबर और दूध की जांच प्रयोगशाला में यह देखने के लिए की गई कि ज़हर कहां मिलता है। ऐसे प्रयोग केवल एक या दो दिन नहीं बल्कि लगातार 90 दिनों तक एम्स (ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस) नई दिल्ली में किए गए थे। शोधकर्ताओं को गाय के दूध, रक्त, पेशाब या गोबर में कहीं भी ज़हर नहीं मिला। तो फिर खिलाया गया ज़हर 90 दिनों तक गया कहां? गौमाता ने पूरा ज़हर अपने गले में छिपा रखा था। यह एक विशेष गुण है जो किसी और पशु के पास नहीं।

टिप्पणी: खैर, मैंने एम्स के कुछ फैकल्टी सदस्यों से पूछा तो पता चला कि इस तरह का कोई भी प्रयोग वहां नहीं किया गया था। पहली बात तो यह कि संस्थान की जंतु प्रयोग नैतिकता समिति पशुओं को इस तरह ज़हर खिलाने की अनुमति नहीं देती है और वह भी पूरे 90 दिनों तक लगातार।
दावा 2: गाय एकमात्र प्राणी है जो श्वसन के दौरान ऑक्सीजन लेती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है।
टिप्पणी: पेड़-पौधे और काई, जो प्रकाश संश्लेषण करते हैं, के अलावा कोई भी सजीव ऑक्सीजन नहीं छोड़ता। जो ऑक्सीजन छोड़ी गई सांस में दिखती है वह वास्तव में सांस के साथ ली गई अप्रयुक्त ऑक्सीजन होती है। किसी भी पशु के फेफड़े श्वसन के दौरान पूरी ऑक्सीजन सोख लेने में सक्षम नहीं हैं। सांस के साथ ली गई ऑक्सीजन में से कुछ अवशोषित नहीं होती है, वही छोड़ी गई सांस के साथ बाहर आती है। निम्नलिखित लिंक https://www.quora.com/Do-cows-really-exhale-oxygen पर बताया गया है कि कैसे इसी वजह से मुंह से मुंह लगाकर सांस देने का काम किया जाता है।

दावा 3: गाय के दूध में ज़हर से लड़ने की क्षमता है।
टिप्पणी: ज़हर एक विस्तृत शब्द है। ज़हर कौन-सा है? सायनाइड? डीडीटी? और इस बात का सबूत क्या है? विज्ञान में बिना सबूत कोई बात स्वीकार नहीं की जाती है। जो साबित नहीं किया जा सकता हम उसे कैसे साबित करेंगे?
दावा 4: गोमूत्र एक अच्छा रोगाणु नाशी है।
टिप्पणी: यह तो जानी-मानी बात  है कि पेशाब (मनुष्य का हो या गाय का) बैक्टीरिया को मार सकता है। इसकी क्रियाविधि भी ज्ञात है - किसी भी पशु के पेशाब की अम्लीयता (पीएच मान 5 से कम), उसमें यूरिया की उपस्थिति, और अमोनियम यौगिक इसके कारण होते हैं, और गाय का पेशाब इस मामले में भिन्न नहीं हैं।

दावा 5: गाय के गोबर का लेप घरों के फर्श और घर के आसपास के क्षेत्र को विकिरण से बचा सकता है।
टिप्पणी : विकिरण व्यापक शब्द है जिसमें आवृत्ति/तरंग दैर्घ्य या शक्ति/तीव्रता का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। देखा जाए, तो विकिरण के दायरे में साधारण रेडियो और टीवी और यहां तक कि मोबाइल फोन और वाई-फाई भी आते हैं। ये सब अच्छी तरह काम करते हैं, चाहे घरों को गोबर से लिपा जाए या नहीं। वास्तव में इस तरह के दावों के साथ दिक्कत व्यापकता है।
दावा 6: यदि गाय के 10 ग्राम घी को आग में रखा जाए तो 1 टन ऑक्सीजन बनती है।
टिप्पणी: यह दावा भौतिकी के नियमों के पूरी तरह विरुद्ध है। सामान्यत: किसी भी रूप में 10 ग्राम पदार्थ 1000 किलोग्राम पदार्थ नहीं बना सकता।
ऊपर दिए गए दावों में से किसी का भी समर्थन विज्ञान द्वारा नहीं हो सकता है, सिवाय एक के कि गाय के पेशाब में रोगाणुओं को मारने की क्षमता होती है। इस संदर्भ में यह गाय का अनोखा गुण नहीं है। और यहां विज्ञान को नकारने का कोई मतलब या तर्क नहीं है और यह कहने का भी कोई मतलब नहीं है कि इन्हें कुछ दिनों में साबित कर दिया जाएगा। यह कहने का भी कोई अर्थ नहीं है कि यह विज्ञान हिन्दू मान्यताओं के खिलाफ है।

कई हिन्दू गाय का सम्मान करते हैं। वास्तव में श्रद्धा की उनकी यह भावना मन को छू लेने वाली है और अनूठी है। हम गाय की प्रशंसा और उसके प्रति कृतज्ञता से भर जाते हैं क्योंकि वह इंसानों के लिए अपना दूध देती है और स्वस्थ बच्चे (गाय और बैल) देती है। न केवल कामधेनु बल्कि घरेलू गाय को भी पूज्य माना गया है।
लेकिन इस तरह के दावों से पवित्र गाय अपना कुछ बड़प्पन गंवा देगी। और हम उसे उपयोगितावादी दृष्टि से देखेंगे जो उसे कुछ हद तक नीचा दिखाने जैसा है। और इस तरह के बड़े-बड़े दावे तो और भी बुरे हैं, जिन्हें विज्ञान आसानी से खारिज कर सकता है। फ्रांसीसी दार्शनिक ब्लेज़ पास्कल ने सही कहा है: दिल के अपने तर्क होते हैं, जिन्हें तर्क नहीं जानता। (स्रोत फीचर्स)