स्विटज़रलैंड की एक कंपनी क्लाइमवर्क्स इस वर्ष सितंबर-अक्टूबर से एक टेक्नॉलॉजी आज़माने जा रही है जिसके तहत हवा में से कार्बन डाईऑक्साइड को अलग करके ग्रीनहाउसों में भेजा जाएगा। ग्रीनहाउस में यह कार्बन डाईऑक्साइड पौधों की वृद्धि में सहायक होगी।
गौरतलब है कि पिछले दशकों में पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा लगातार बढ़ी है और इस वजह से धरती का तापमान भी बढ़ रहा है। क्लाइमवर्क्स की टेक्नॉलॉजी में किया यह जाता है कि वायुमंडल की हवा को कुछ फिल्टर्स में से गुज़ारा जाता है। इन फिल्टर्स में अमीन जैसे कुछ रसायन भरे होते हैं जो हवा में उपस्थित कार्बन डाईऑक्साइड से क्रिया करके उसे वहीं रोक लेते हैं। बाद में जब इन पदार्थों को गर्म किया जाता है तो कार्बन डाईऑक्साइड वापिस निकल आती है।

कंपनी का विचार है कि इस कार्बन डाईऑक्साइड को समीप स्थित ग्रीनहाउसों में भेज दिया जाएगा। ग्रीनहाउस ऐसे दड़बे होते हैं जिनमें वातावरण को संतुलित रखा जाता है और सब्ज़ियां वगैरह उगाई जाती हैं। पौधे कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग प्रकाश संश्लेषण नामक क्रिया में करते हैं। उपरोक्त फिल्टरों को गर्म करने के लिए नगर पालिका के कचरे को जलाकर ऊष्मा प्राप्त की जाएगी।
देखने में तो साफ-सुथरा काम लगता है। मगर इसकी बारीकियों पर नज़र डालें तो घोटाला उजागर होता है। अमेरिकन फिज़िकल सोसायटी का अनुमान है कि इस तरह बड़े पैमाने पर हवा से सीधे कार्बन डाईऑक्साइड पकड़ने की लागत करीब 600 डॉलर प्रति टन आती है। यानी काफी महंगी कार्बन डाईऑक्साइड होगी यह।

दूसरी बात है कि क्लाइमवर्क्स का संयंत्र प्रतिदिन कोई 2 टन कार्बन डाईऑक्साइड को पकड़कर ग्रीनहाउसों में भेजेगा। तुलना के लिए यह देखिए कि मनुष्य प्रति वर्ष हवा में 40 अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड पहुंचा रहे हैं। यानी ऊंट के मुंह में ज़ीरा और वह भी बहुत महंगा।
कई पर्यावरणविदों का कहना है कि ऐसी टेक्नॉलॉजी झूठी उम्मीदें जगाती हैं। मुख्य समस्या तो यह है कि कार्बन डाईऑक्साइड का उत्पादन कम किया जाए। पहले उत्पादन करने के बाद उसे हटाने की कोशिशें करना बेमानी है। (स्रोत फीचर्स)