डॉ. विजय कुमार उपाध्याय


आयोडीन बैंगनी रंग का एक अधात्विक रासायनिक तत्व है जो हैलोजेन परिवार का एक प्रमुख सदस्य है। इसका रासायनिक संकेत ‘क्ष्’ तथा परमाणु संख्या 53 है। सामान्य ताप एवं दाब पर यह ठोस अवस्था में पाया जाता है। इसका घनत्व 4.933 ग्राम प्रति घन से.मी., गलनांक 113.7 डिग्री सेल्सियस तथा क्वथनांक 184.4 डिग्री सेल्सियस है।
सौर परिवार के सदस्यों तथा भूपटल में आयोडीन नगण्य परिमाण में पाया जाता है। भूपटल में इसकी प्रचुरता सिर्फ 0.05 प्रति दस लाख (पीपीएम) है। चिली में आयोडीन कैलिची के साथ बहुत अधिक पाया जाता है। कैलिची वस्तुत: एक प्रकार का चूना पत्थर है जिसमें कहीं-कहीं आयोडीन अशुद्धि के रूप में पाया जाता है। भारत में कैलिची को कंकड़ कहा जाता है। पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में समशीतोष्ण क्षेत्रों में लैमिनेरिया तथा फ्यूकस नामक भूरे शैवाल में आयोडीन पाया जाता है। इन शैवालों में आयोडीन की उपस्थिति 0.028 से 0.454 प्रतिशत तक दर्ज की गई है। कई प्रकार के समुद्री जीव जन्तुओं से कार्बनिक-आयोडीन यौगिक प्राप्त किए जाते हैं जिनमें प्रमुख है आयडोमीथेन। एक अनुमान के अनुसार विश्व स्तर पर प्रति वर्ष लगभग 214 किलो टन आयडोमीथेन समुद्री पर्यावरण से प्राप्त किया जाता है।

अब प्रश्न उठता है कि आयोडीन की खोज कब तथा किसके द्वारा की गई? आयोडीन की खोज आकस्मिक हुई थी। सन 1811 में जब बर्नार्ड कोर्टवो (Barnard Courtois) ने आयोडीन की खोज की तो उनका उद्देश्य मानव की चिकित्सा नहीं बल्कि मानव का संहार था। वे एक ऐसे पदार्थ की खोज में लगे हुए थे जिससे मानव का संहार किया जा सके। बर्नार्ड कोर्टवो नेपोलियन की सेना में रसायनविद के पद पर काम करते थे। उस काल में नेपोलियन की सेना को भारी मात्रा में बारूद की आवश्यकता थी जिसकी उनके पास काफी कमी हो गई थी। बारूद का एक प्रमुख घटक है शोरा (पौटेशियम नाइट्रेट)। शोरा के निर्माण हेतु भारी मात्रा में पौटेशियम कार्बोनेट की आवश्यकता होती है। पौटेशियम कार्बोनेट को सरपत (विल्लो) को जलाकर उसकी राख से प्राप्त किया जाता था।
परन्तु युद्ध इतने लम्बे समय तक चला कि सरपत पूरी तरह समाप्त हो गया। नेपोलियन को किसी ने परामर्श दिया कि नौरमांडी तथा ब्रिटानी के उस क्षेत्र में प्रचुर परिमाण में उपलब्ध कुछ समुद्री घासों की राख से पौटेशियम कार्बोनेट प्राप्त किया जा सकता है। यह परामर्श काफी कारगर साबित हुआ। इन घासों से फ्रांसीसी सेना को बारूद के निर्माण हेतु पर्याप्त परिमाण में पौटेशियम नाइट्रेट की प्राप्ति होने लगी।
परन्तु शोरा निर्माण के क्रम में बहुत अधिक गंधक यौगिक उत्पन्न हो जाते थे जिन्हें मिश्रण से हटाने के लिए गंधकाम्ल का उपयोग करना पड़ता था। कोर्टवो ने संयोगवश एक दिन कुछ अधिक गंधकाम्ल डाल दिया। नतीजा यह हुआ कि बैंगनी रंग की वाष्प काफी परिमाण में निकल कर बादल के रूप में प्रायोगिक उपकरण के चारों ओर छा गई। जब गैस का निकलना शान्त हुआ तो देखा गया कि धातु निर्मित उपकरण की ठंडी सतहों पर बैंगनी रंग के चमकीले रवे (क्रिस्टल) जमे हुए थे।

कोर्टवो समझ गए कि उन्होंने एक नया पदार्थ खोज लिया है। उन्होंने इस नए पदार्थ के साथ कुछ प्रयोग किए। उन्होंने देखा कि यह पदार्थ फॉस्फोरस, हाइड्रोजन तथा कुछ धातुओं के साथ मिलकर यौगिकों का निर्माण करता है। परन्तु यह ऑक्सीजन तथा कार्बन के साथ आसानी से नहीं जुड़ता। इसके अलावा उन्होंने पाया कि जब यह अमोनिया के साथ मिलाया जाता है तो विस्फोटक बन जाता है तथा जलाने पर भी विघटित नहीं होता।
बर्नार्ड कोर्टवो ने अनुमान लगा लिया था कि उन्होंने एक नए तत्व की खोज कर ली है। वे इस सम्बंध में कुछ प्रयोग करना चाह रहे थे। परन्तु उस समय नेपोलियन द्वारा शासित फ्रांस पूरी तरह युद्ध में उलझा हुआ था तथा इस युद्ध में इतना धन खर्च हो गया था कि फ्रांस दिवालिएपन की कगार पर पहुंच चुका था। ऐसी स्थिति में बर्नार्ड कोर्टवो को अपने प्रयोगों के लिए सरकार से आर्थिक सहायता प्राप्त होने की कोई उम्मीद नहीं थी। आर्थिक सहायता के बिना उनके लिए संभव नहीं था कि वे अपने शोध कार्य को आगे बढ़ाएं।
ऐसी स्थिति में उन्होंने इस दिशा में आगे शोध हेतु फ्रांसीसी रसायनविद एवं भौतिकीविद चार्ल्स बर्नार्ड डेसॉर्म्स से अनुरोध किया। डेसॉर्म्स ने अपने दामाद निकोलस क्लेमेंट के साथ मिलकर शोध शु डिग्री किया। बर्नार्ड कोर्टवो ने खोजे गए नए तत्व का कुछ नमूना जोसेफ गेलुसैक तथा एम्पियर को भी जांच तथा शोध हेतु दे दिया।
नवम्बर 1813 में इम्पीरियल इंस्ट्टियूट ऑफ फ्रांस की एक मीटिंग में डेस्मॉर्स तथा क्लेमेंट ने इस नए पदार्थ की खोज की घोषणा की। इसके कुछ ही दिनों के बाद गेलुसैक तथा एम्पियर ने एक शोध पत्र प्रकाशित किया जिसमें बताया गया कि यह नया पदार्थ या तो एक तत्व है अथवा ऑक्सीजन का एक यौगिक।

एम्पियर ने इस पदार्थ का कुछ नमूना ब्रिटिश रसायनविद हम्फ्री डेवी को भी भेजा था। गहन शोध के बाद हम्फ्री डेवी ने 10 दिसम्बर 1813 को अपना शोध पत्र प्रकाशित किया जिसमें बताया गया था कि इस नए पदार्थ के गुण क्लोरीन तथा फ्लोरीन से मिलते-जुलते हैं। डेवी ने इस नए पदार्थ का नाम ग्रीक भाषा के शब्द आयोड्स (बैंगनी) के आधार पर आयोडीन रखा।  
अब विवाद इस बात पर शु डिग्री हुआ कि इस नए पदार्थ की खोज सबसे पहले किसने की। डेसॉर्म्स एवं क्लेमेंट का दावा था कि इसकी खोज सर्वप्रथम उन्होंने की। परन्तु गेलुसैक तथा डेवी ने स्वीकार किया कि इस पदार्थ का प्रथम खोजकर्ता बर्नार्ड कोर्टवो था।
कुछ समय बाद ज़्यां लुगो नामक रसायनविद ने पता लगाया कि जब आयोडीन पौटेशियम से जुड़ता है तो ऐसे यौगिक का निर्माण होता है जो पानी में घुलनशील है। सामान्य तौर पर आयोडीन पानी में घुलनशील नहीं है बल्कि अल्कोहल में घुलनशील है। धीरे-धीरे आयोडीन के एंटीसेप्टिक गुणों की खोज की गई। आयोडीन के एंटीसेप्टिक गुणों की खोज के पूर्व चिकित्सा जगत में एंटीसेप्टिक शब्द अज्ञात था। आयोडीन का महत्व चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में उस समय अचानक बहुत बढ़ गया जब डॉ. ज़्यां फ्रांसिस कॉइनडेट ने पता लगाया कि आयोडीन घेंघा रोग के इलाज में कारगर है। यहीं से आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की शुरुआत हुई। चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में पहली बार किसी रोग के इलाज हेतु किसी रोगी पर दवा का परीक्षण कर उसकी उपयोगिता के सम्बंध में कुछ निष्कर्ष निकाला गया।

कॉइनडेट द्वारा घेंघा रोग में आयोडीन की उपयोगिता का पता लगने के बाद चिकित्सक लोग धड़ल्ले से इसका उपयोग करने लगे। परन्तु आयोडीन के साइड इफेक्ट भी कम नहीं थे। नतीजा यह हुआ कि लोग कई प्रकार की परेशानियों से ग्रस्त होने लगे। इसे देखते हुए चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों के एक सम्मेलन में पहली बार चिकित्सा सम्बंधी नियम बनाए गए तथा आयोडीन को अर्द्ध नियंत्रित औषधि घोषित किया गया। साथ ही किसी मानव द्वारा आयोडीन सेवन की सालाना अधिकतम सीमा निर्धारित कर दी गई।
धीरे-धीरे आयोडीन ने मानव स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शु डिग्री की। मानव स्वास्थ्य हेतु खाद्य पदार्थों में भी इसकी उपस्थिति के महत्व को धीरे-धीरे समझा जाने लगा। (स्रोत फीचर्स)