भारत में निर्मित मानव स्टेम कोशिका युक्त पहली दवाई को सीमित स्वीकृति मिल गई है। बैंगलुरु की एक कंपनी स्टेमप्यूटिक्स ने क्रिटिकल लिम्ब इश्चेमिया (सीएलआई) नामक रोग के लिए स्टेम कोशिका आधारित एक दवा विकसित की है और देश के औषधि महानियंत्रक ने इसे सीमित स्तर पर बेचने की अनुमति प्रदान कर दी है।
सीएलआई एक ऐसा रोग है जिसमें टांगों की धमनियां (रक्त पहुंचाने वाली नलियां) अवरुद्ध हो जाती हैं जिसकी वजह से खून का प्रवाह कम हो जाता है। परिणाम यह होता है कि टांगों में तेज़ दर्द होता है और कोशिकाएं मरने लगती हैं। कई बार तो टांग काटने तक की नौबत आ जाती है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में करीब 34 लाख लोग सीएलआई से पीड़ित हैं जबकि युरोप व यूएस में हर 10,000 में से एक व्यक्ति इससे पीड़ित है।
स्टेमप्यूटिक्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बाली मनोहर ने कहा है कि इस नई औषधि - स्टेमप्यूसेल - के साथ उम्मीद की किरण जगी है। इस औषधि को तैयार करने में वयस्क स्वैच्छिक दानदाताओं से प्राप्त मेसेन्काइमल स्ट्रोमल कोशिकाओं का उपयोग किया गया है। भारत में इस तरह से किसी अन्य व्यक्ति से प्राप्त कोशिकाओं का प्रत्यारोपण पहली बार किया गया है।

भारतीय औषधि महानियंत्रक ने स्टेमप्यूसिल को सीमित अनुमति 90 मरीज़ों पर चरण-1 व चरण-2 के चिकित्सकीय आंकड़ों के आधार पर दी है। दोनों ही चरणों में मरीज़ों में रक्त प्रवाह में उल्लेखनीय सुधार देखा गया था। हालांकि अभी यह कहना मुश्किल है कि स्टेमप्यूसेल इन मरीज़ों में रोग को पूरी तरह रोक पाएगा मगर आंकड़ों से लगता है कि कम से कम रोग का आगे प्रसार थम जाता है।
औषधि महानियंत्रक द्वारा प्रदत्त सीमित स्वीकृति के तहत कंपनी को अगले दो सालों में 200 मरीज़ों पर इस दवा का परीक्षण करके जानकारी महानियंत्रक को उपलब्ध करानी होगी। यदि इस परीक्षण में औषधि सफल रहती है तो इसे स्वीकृति मिल सकती है।
इसके साथ ही स्टेमप्यूटिक्स इस औषधि को विश्व स्तर पर ले जाने की कोशिश कर रही है। युरोप की मेडिसिनल एजेंसी ने स्टेमप्यूसेल को एडवांस्ड मेडिसिनल उत्पाद का दर्जा दे दिया है। इससे औषधि को युरोप में व्यावसायिक स्तर पर तैयार करने का भी मार्ग प्रशस्त हो गया है। (स्रोत फीचर्स)