विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में सिफारिश की है कि शकरयुक्त पेय पदार्थों पर टैक्स लगाया जाना चाहिए ताकि मोटापे और मधुमेह पर काबू पाया जा सके।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले सप्ताह एक रिपोर्ट जारी की है: “फिस्कल पॉलीसीज़ फॉर डाएट एंड प्रीवेंशन ऑफ नॉन-कम्यूनिकेबल डीसीसेज़” (भोजन व असंक्रामक रोगों की रोकथाम हेतु वित्तीय नीतियां)। रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 1980 से 2014 की अवधि में विश्व स्तर पर मोटापा दुगना हुआ है। आज कम से कम 11 प्रतिशत पुरुष और 15 प्रतिशत महिलाएं मोटापे की श्रेणी में आते हैं। संख्या के मान से देखें तो करीब 50 करोड़ लोग मोटापे के शिकार हैं। यहां तक कि वर्ष 2015 में 5 वर्ष से कम आयु के 4.2 करोड़ बच्चे भी मोटे की श्रेणी में शुमार थे। इससे जुड़ा हुआ तथ्य यह है कि विश्व स्तर पर 42.2 करोड़ लोग मधुमेह के मरीज़ हैं।
मोटापे के मामले में प्रतिशत के हिसाब से अमेरिका सबसे ऊपर है मगर यदि संख्याओं के हिसाब से देखेंगे तो चीन में भी मोटे लोगों की संख्या अमेरिका के बराबर ही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के मुताबिक मोटापे में वृद्धि का एक बड़ा कारण शकरयुक्त पेय पदार्थ हैंै जो कई देशों में बहुत लोकप्रिय हैं। फिलहाल संगठन की सिफारिश तो यह है कि व्यक्ति को अपनी कुल ऊर्जा की ज़रूरत में से अधिक से अधिक 10 प्रतिशत सीधे शकर से प्राप्त करना चाहिए। इसका मतलब है कि एक अच्छे खाते-पीते व्यक्ति को दिन भर में अधिक से अधिक 50 ग्राम शकर का सेवन करना चाहिए। यदि इसे 5 प्रतिशत किया जा सके तो और भी बेहतर है। शकर के अंतर्गत ग्लूकोज़, फ्रुक्टोज़ और सामान्य शकर शामिल हैं।
देखा गया है कि शकरयुक्त पेय पदार्थों का सेवन करने वाले लोग इस सीमा से कहीं ज़्यादा शकर गटक जाते हैं। संगठन के मुताबिक यदि इन पेय पदार्थों को महंगा कर दिया जाए तो इनकी खपत कम होगी। संगठन के असंक्रामक रोग व स्वास्थ्य प्रोत्साहन विभाग के टेमो वकानिवालु का कहना है कि इस बात के प्रमाण हैं कि ऐसे पदार्थ महंगे हों तो लोग इनका सेवन कम करते हैं। लिहाज़ा, संगठन चाहता है कि सरकारें अपने-अपने देश में इन शकरयुक्त पेय पदार्थों पर अतिरिक्त टैक्स लगाएं और लोगों को मोटापे की महामारी से बचाएं। (स्रोत फीचर्स)