पाइका एक स्तनधारी प्राणि है जो खरगोश जैसा दिखता है मगर उससे बहुत छोटा होता है। यह थोड़ा-थोड़ा पूंछकटे चूहे जैसा भी दिखता है। इसकी एक विशेषता यह है कि यह अत्यंत ठंडे इलाकों में ही पाया जाता है और तापमान में थोड़ी-सी वृद्धि भी इसके लिए घातक साबित होती है। गौरतलब है कि विश्व के तापमान में वृद्धि हो रही है।
तो, हिमालय क्षेत्र के जीवों पर तापमान वृद्धि के असर के अध्ययन के लिए बैंगलुरु के राष्ट्रीय जीव विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं ने वहां के जीवों का विस्तृत अध्ययन शु डिग्री किया और अध्ययन करते-करते उन्हें समझ में आया कि पाइका के बारे में जानकारी बहुत कम है। वहां पाइका की एक प्रजाति पाई जाती है ओकोटोना तिबेताना। मगर जब सिक्किम में पाए जाने वाले पाइका की तुलना ओकोटोना तिबेताना से की गई तो कई अंतर स्पष्ट हुए। शरीर रचना में इन अंतरों के आधार पर शोधकर्ता निशा दहल को लगा कि हो न हो यह एक अलग प्रजाति है।
ऐसे मामलों में प्रजातियों में स्पष्ट भेद करने का सबसे प्रमुख औज़ार डीएनए का विश्लेषण होता है। तो सिक्किम व तिब्बत क्षेत्र में पाए जाने वाले पाइका की लेंडियां एकत्रित की गईं। इनमें से डीएनए प्राप्त करके उनकी तुलना की गई तो स्पष्ट हो गया कि सिक्किम में पाया जाने वाला पाइका एक स्वतंत्र प्रजाति है। मॉलीक्यूलर फायलोजेनेटिक्स एंड इवॉल्यूशन नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में दहल और उनके साथियों ने इस नई प्रजाति के लिए ओकोटोना सिक्किमेरिया नाम प्रस्तावित किया है।
सिक्किमेरिया का प्राकृत वास अन्य पाइका प्रजातियों से अलग-थलग है। प्राकृत वास में इस थोड़े से अंतर की वजह से ही लंबे समय में ये दो अलग-अलग प्रजातियों के रूप में विकसित हुए हैं। वैसे दुनिया भर में पाइका की 28 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से 26 तो सिर्फ एशिया की हैं। एक जीव के रूप में अपनी इकोसिस्टम में तो ये भूमिका निभाते ही हैं मगर आजकल इन्हें जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में एक सूचक प्रजाति भी माना जा रहा है। (स्रोत फीचर्स)