मधुमक्खी और उनका छत्ता हमारे दिमाग में एक ही तस्वीर के दो हिस्से हैं। मगर इस प्रचलित तस्वीर के विपरीत अधिकांश मधुमक्खियां बस्तियों में नहीं बल्कि अकेली ही रहती हैं। वे अपना छोटा-सा घोंसला बनाती हैं और उसमें अपनी संतानों का पालन-पोषण करती हैं। मगर इनके सामने एक समस्या आती है।
बड़े-बड़े छत्ते बनानी वाली मधुमक्खियों के लिए तो शकर का भंडार बना रहता है। आसपास फूल न हों या फूल देर से खिलें तो भी वे कुछ समय तक काम चला सकती हैं। मगर अकेली मधुमक्खियों के पास ऐसी कोई जमा पूंजी नहीं होती। फिर वे प्रतिकूल परिस्थितियों में क्या करती हैं?
फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के जोन माइनर्स इसी सवाल के जवाब की तलाश में थे। उनको पता था कि अकेली रहने वाली मधुमक्खियों की संतानें वसंत में प्रौढ़ होकर निकलती हैं, भोजन (यानी पराग और मकरंद) तलाशती हैं, बच्चे पैदा करती हैं और मर जाती हैं। अब यदि वे वसंत से थोड़े पहले ही निकल पड़ें, जब फूल न खिले हों, तो?
कैलिफोर्निया के पिनेकल राष्ट्रीय उद्यान में माइनर्स और उनके साथियों ने देखा कि कई झाड़ियों पर फफूंद लगी है और इस फफूंद के साथ शर्करा भी है। उन्होंने सोचा कि शायद इस फफूंद में ही कुछ सुराग मिलेगा। माइनर्स ने यह भी देखा कि वसंत के शु डिग्री में जब बहुत कम फूल खिले होते हैं, मधुमक्खियां इन फफूंद-लगी झाड़ियों पर खूब मंडराती हैं।

माइनर्स ने एक काम तो यह किया फफूंद-रहित झाड़ियों पर या तो शर्करायुक्त पानी छिड़क दिया या सादा पानी छिड़क दिया। माइनर्स ने सोचा कि यह भी तो हो सकता है कि मधुमक्खियां फफूंद लगी झाड़ियों पर शर्करा की तलाश में नहीं किसी और वजह से जा रही हों। तो उन्होंने कुछ फफूंद लगी झाड़ियों पर एक कीटनाशक का छिड़काव किया जिससे शर्करा का उत्पादन बंद हो गया मगर फफूंद यथावत रही।
यह देखा गया कि जिन झाड़ियों पर शर्करायुक्त पानी का छिड़काव किया गया था उन पर 100 मधुमक्खियों का आगमन हुआ जबकि मात्र पानी वाली झाड़ियों पर 10 मधुमक्खियां ही पहुंचीं। दूसरी ओर फफूंद युक्त मगर शर्करा विहीन झाड़ियों पर भी मात्र 15 मधुमक्खियों ने ध्यान दिया। इससे तो लगता है कि मधुमक्खियां फफूंद द्वारा एकत्रित शर्करा को भोजन के स्रोत के रूप में इस्तेमाल करती हैं।

मगर एक सवाल का जवाब अभी शेष है। फूलों के रंग और गंध तो मधुमक्खियों के लिए संकेत होते हैं कि भोजन कहां मिलेगा। फफूंद और शर्करा का पता कैसे चलता है? माइनर्स का विचार है कि शायद संयोगवश कोई मधुमक्खी वहां पहुंचती है और फिर देखा-देखी अन्य मधुमक्खियां भी पहुंचने लगती हैं। अब इस विचार की जांच की जाएगी।
दूसरी बात यह है कि मधुमक्खियों का काम सिर्फ शर्करा से नहीं चल सकता। उन्हें पराग भी चाहिए क्योंकि वह प्रोटीन का स्रोत होता है। तो एक सवाल यह भी है कि प्रोटीन की पूर्ति कैसे होगी। ये सवाल जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बदली हुई जलवायु में फूल क्रमश: देर से खिलने की आशंका है। (स्रोत फीचर्स)