लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट 2016 के मुताबिक दुनिया में 1970 से 2012 के बीच रीढ़धारी जंतुओं की आबादी में 58 प्रतिशत की गिरावट आई है। रीढ़धारी जंतुओं में स्तनधारी, मछलियां, पक्षी और मेंढक जैसे उभयचर शामिल हैं। यह रिपोर्ट डब्लू.डब्लू.एफ. और ज़ुऑलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन ने हाल ही में जारी की है। रिपोर्ट में आशंका व्यक्त की गई है कि यदि यही रफ्तार जारी रही तो वर्ष 2020 तक हम कम से कम दो-तिहाई रीढ़धारी जैव विविधता से हाथ धो बैठेंगे।
जंतुओं की आबादी में इस गिरावट के प्रमुख कारणों में जंगलों की कटाई, जंतुओं के व्यापार और मानव-जनित जलवायु परिवर्तन बताए गए हैं। डब्लू.डब्लू.एफ. के महानिदेशक मार्को लैम्बर्टिनी के मुताबिक ज़मीन, मीठे पानी और समुद्र, हर जगह मनुष्यों की गतिविधियां प्रजातियों और कुदरती तंत्रों पर ज़बरदस्त दबाव बना रही हैं।
प्रजाति ह्रास की सबसे प्रमुख वजह है प्राकृत वास की क्षति। यह क्षति वृक्षों की कटाई, खेती के फैलाव, और नदियों व झीलों जैसे मीठे पानी के स्रोतों की बरबादी की वजह से हो रही है। मीठे पानी की प्रजातियों में पूरे 81 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। यह सबसे स्पष्ट प्रमाण है कि हम अपने पर्यावरण का क्या हाल कर रहे हैं।

यह रिपोर्ट हर दो साल में एक बार जारी की जाती है और इसके लिए 3000 स्रोतों का इस्तेमाल किया जाता है। ये वे स्रोत हैं जो दुनिया भर में प्रजातियों की स्थिति पर नज़र रखते हैं। इस रिपोर्ट में लगभग 3700 रीढ़धारी प्रजातियों की 14,152 आबादियों की निगरानी के आंकड़े शामिल होते हैं। इसके बावजूद रिपोर्ट में यह दावा नहीं किया गया है कि यह पूरी परिस्थिति का आकलन है। हालांकि कोशिश की जाती है कि ज़्यादा से ज़्यादा प्रजातियों को इसमें शामिल किया जाए मगर आंकड़ों की कमियों को नकारा नहीं जा सकता। एक बात यह भी है कि अधिकांश आंकड़े पश्चिमी युरोप से सम्बंधित हैं।
कुछ लोगों को यह भी लगता है कि दुनिया भर में निगरानी के जो प्रयास किए जा रहे हैं वे ज़्यादातर उन्हीं प्रजातियों पर केंद्रित होते हैं जिनमें गिरावट आ रही है। इसलिए संभव है कि यह रिपोर्ट गिरावट को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती हो। इस समस्या से निपटने के लिए नई-नई प्रजातियों को सूची में जोड़ा जा रहा है। जैसे सन 2014 की पिछली रिपोर्ट के बाद कई सैकड़ा प्रजातियां इसमें जोड़ी जा चुकी हैं।
यह तो सही है कि आंकड़ों का कोई नमूना संग्रह पूरी परिस्थिति का विवरण नहीं देता मगर यही सर्वोत्तम सूचक है जो नीति निर्माण की दृष्टि से मददगार हो सकता है। (स्रोत फीचर्स)