शोधकर्ताओं ने दर्शाया है कि भंवरे भी औज़ार का उपयोग सीख सकते हैं। क्वीन मैरी विश्वविद्यालय, लंदन के लार्स चिटका और उनके साथियों ने अपने प्रयोगों में देखा कि भंवरे अपनी अकल से तो सीखते ही हैं, दूसरे भंवरों को देखकर भी सीख लेते हैं।
प्रयोग यह था कि एक पारदर्शी पटिए के नीचे तीन नीले रंग के नकली फूल रखे थे। प्रत्येक फूल के बीच में एक छेद था जिसमें शकर का घोल भरा गया था। तीनों फूलों में एक-एक डोरी बंधी थी जो पटिए के बाहर थोड़ी निकली हुई थी। यदि शकर का घोल प्राप्त करना है, तो एकमात्र तरीका यह था कि उस डोरी की मदद से फूल को खींचकर पटिए के बाहर निकाला जाए।
शोधकर्ताओं ने 110 भंवरे लिए थे। एक-एक करके उन्हें इस पटिए के पास रखा गया और देखा गया कि वे क्या करते हैं। कुछ भंवरों ने डोरी को खींचा मगर जल्दी ही हार मान ली। मगर दो भंवरों ने पूरी कोशिश की और अंतत: शकर का घोल पा ही लिया।

प्रयोग के दूसरे दौर में शोधकर्ताओं ने भंवरों को प्रशिक्षित किया कि इस काम को कैसे करते हैं। इसके लिए पहले फूलों को पटिए के बाहर ही रखा गया और फिर धीरे-धीरे अंदर की ओर खिसकाया गया। जिन 40 भंवरों को यह सिखाने की कोशिश की गई उनमें से आधे से ज़्यादा ने इसे पकड़ लिया।
इसके बाद अप्रशिक्षित भंवरों को पटिए के पास ही एक पारदर्शी पर्दा लगाकर दूसरी और बैठा दिया गया। ये भंवरे देख सकते थे कि ऐसी स्थिति में प्रशिक्षित भंवरे कैसे आगे बढ़ते हैं। तो इन अप्रशिक्षित भंवरों ने देखा कैसे डोरी खींचकर फूल बाहर आता है और शकर का तोहफा मिल जाता है। जब इन अप्रशिक्षित भंवरों को यही काम करने को दिया गया तो 60 प्रतिशत को पता था कि डोरी को खींचना है। यानी उन्होंने सिर्फ देखकर यह हुनर सीख लिया था। यही स्थिति बाद में तब भी देखी गई जब प्रशिक्षित भंवरों को उनकी बस्तियों में छोड़ दिया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि औसतन पांच बार देखने के बाद भंवरे यह हुनर हासिल कर लेते हैं। बाद में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मूल रूप से प्रशिक्षित भंवरा आसपास मौजूद है या नहीं।
वैसे उक्त उदाहरण में भंवरों के व्यवहार को औज़ार का उपयोग कहना थोड़ी ज़्यादती है क्योंकि डोरी तो पहले से फूल में बंधी थी। फिर भी इतना तो लगता ही है कि भंवरे जैसे छोटे-छोटे जीव भी अपना जुगाड़ जमा ही लेते हैं। (स्रोत फीचर्स)