साइन्स नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र में दावा किया गया है कि 50 सिगरेट फूंकने पर फेफड़ों की हर कोशिका में औसतन एक उत्परिवर्तन यानी म्यूटेशन हो जाता है। उत्परिवर्तन का मतलब होता है कोशिका के आनुवंशिक पदार्थ डीएनए के क्षारों में परिवर्तन। इस परिणाम का मतलब है कि यदि कोई व्यक्ति साल भर तक प्रतिदिन 10 सिगरेट पीए तो उसके फेफड़ों की हरेक कोशिका में 75 उत्परिवर्तन, सांस नली में 50, स्वर यंत्र में 20, मूत्राशय में 10 और लीवर की प्रत्येक कोशिका में 3 उत्परिवर्तन हो जाते हैं।
पहले किए गए अध्ययनों का निष्कर्ष था कि धूम्रपान का सम्बंध कम से कम 17 किस्म के कैंसरों से है। अब शोधकर्ताओं ने इसी असर का मापन कर लिया है। न्यू मेक्सिको के लॉस एलामॉस नेशनल प्रयोगशाला के लुडमिल एलेक्ज़ेंड्रोव और उनके साथियों ने 2500 धूम्रपानियों और 1000 गैर-धूम्रपानियों के ट्यूमर्स के डीएनए की तुलना करके यह मात्रात्मक विश्लेषण किया है।
वैसे तो कोशिका में हर उत्परिवर्तन कैंसर का कारण बन सकता है मगर अभी यह स्पष्ट नहीं है कि कौन-से विशिष्ट उत्परिवर्तन कोशिका को कैंसर कोशिका में बदलने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। जैसे इतने उत्परिवर्तनों के संग्रहित होने के बावजूद कई धूम्रपानियों को कैंसर नहीं होता। यह एक किस्म की लॉटरी जैसा है। उत्परिवर्तन बेतरतीबी से होते हैं और यदि संयोगवश वह उत्परिवर्तन उपयुक्त स्थान पर हो गया तो कैंसर विकसित हो सकता है।
उपरोक्त उत्परिवर्तन स्थायी होते हैं और धूम्रपान छोड़ने से ये वापिस ठीक नहीं होते। मगर धूम्रपान छोड़ने से आगे होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है। इस बात के काफी प्रमाण हैं कि धूम्रपान छोड़ने से व्यक्ति की आयु पर असर पड़ता है। जैसे यूके में 35,000 लोगों पर पूरे पचास सालों तक किए गए एक अध्ययन में पता चला था कि धूम्रपान से व्यक्ति की आयु में औसतन 10 साल की कमी आ जाती है। दूसरी ओर, यदि व्यक्ति 30 साल की उम्र में धूम्रपान का त्याग कर दे तो उसकी समयपूर्व मृत्यु की आशंका लगभग समाप्त हो जाती है और जो व्यक्ति 50 की उम्र में धूम्रपान करना बंद करते हैं उनके मामले में ऐसी मृत्यु की आशंका आधी रह जाती है। (स्रोत फीचर्स)