अंतरिक्ष में हमारे द्वारा छोड़े गए उपग्रहों, अंतरिक्ष स्टेशनों के अलावा भी बहुत कुछ है। नासा के मुताबिक हमारे आसपास के अंतरिक्ष में क्रिकेट गेंद के आकार की 21 हज़ार वस्तुएं भटक रही हैं। यह मुख्यत: उपग्रहों का मलबा है। किंतु इन सबसे ज़्यादा संख्या छोटे-छोटे कणों की है। ऐसे अरबों कण निकट अंतरिक्ष में मौजूद हैं।
स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय की भौतिक शास्त्री और खगोल इंजीनियर सिग्रिड क्लोज़ का कहना है कि “ये छोटे-छोटे कण बहुत तेज़ रफ्तार से घूम रहे हैं। इन कणों का आकार तो रेत के कणों से भी कम है किंतु ये 60 कि.मी. प्रति सेकंड की रफ्तार से चलते हैं।” जहां बड़े-बड़े टुकड़ों से भौतिक क्षति का खतरा होता है वहीं ये छोटे-छोटे कण उपग्रहों को विद्युतीय क्षति पहुंचाते हैं।

अंतरिक्ष में कई सारी नाकामियों और गड़बड़ियों के प्रत्यक्ष भौतिक कारण पता नहीं चलते हैं और उन्हें ‘अज्ञात कारण’ खाते में डाल दिया जाता है। क्लोज़ और उनके साथी एलेक्स फ्लेचर का मत है कि ये गड़बड़ियां प्राय: इन छोटे-छोटे कणों के कारण होती हैं। उन्होंने प्लाज़्मा भौतिकी के सिद्धांतों के अनुसार पूरे मामले का गणितीय विश्लेषण किया है। फिज़िक्स ऑफ प्लाज़्मास में प्रकाशित उनके शोध पत्र के मुताबिक होता यह है कि सबसे पहले तो धूल के ये कण अत्यंत तेज़ गति से किसी अंतरिक्ष यान से टकराते हैं। टक्कर के कारण उत्पन्न गर्मी की वजह से वह कण और अंतरिक्ष यान का बहुत थोड़ा-सा हिस्सा वाष्पीकृत हो जाता है और आयनीकृत हो जाता है। आयनीकरण के चलते वहां आयनों और इलेक्ट्रॉन का एक बादल-सा बन जाता है। और ये सब अलग-अलग गति से इधर-उधर बिखरते हैं। फिर आयन इलेक्ट्रॉन को वापिस आकर्षित करते हैं। यह खेल चलता रहता है किंतु इलेक्ट्रॉन की हलचल के कारण विद्युत चुंबकीय विकिरण पैदा होता है। क्लोज़ और फ्लेचर का विश्लेषण बताता है कि उपग्रहों की कुछ क्षतियों की व्याख्या इलेक्ट्रॉनों की इस हलचल के आधार पर हो सकती है। उन्होंने अपने शोध पत्र में यह तो नहीं बताया है कि इस समस्या के बारे में क्या किया जा सकता है किंतु उनका मानना है कि अंतरिक्ष को और जानने की ज़रूरत है ताकि अंतरिक्ष उड़ानों को सुरक्षित बनाया जा सके। (स्रोत फीचर्स)