Read Entire MagazineChakmak - February 2014

Cover - Illustration by Sanju Jain
चकमक फरवरी- चकमक का इस बार का कवर वसंत की दस्तक देते मौसम की एक झलक देता है। पृथ्वी पर असंख्य फूल खिले रहते हैं। भाषा में और चित्रों में बने फूल जैसे असल फूलों की एक लिंक होते हैं। फूलों का आभास-सा होता है शब्दों व चित्रों में खिले फूलों में। चकमक के कवर का यह चित्र एक कदम आगे आकर फूलों के आभास का चित्र न होकर चित्रों में बने फूलों का आभास है। चित्र कुछ ऐसा है कि उसमें फूल छुपे ज़्यादा हैं दिख कम रहे हैं। थोड़े से दिख रहे फूल मन में जाकर पूरे खिलते हैं। फूलों का पूरा चित्र होता तो मन में फूलों का यह खिलना सम्भव नहीं होता। साहित्य और कलाएँ भी इसी तरह थोड़ी-थोड़ी खिलकर शेष मन में हर पाठक के लिए अलग-अलग खुलती हैं। यह चित्रकार संजू जैन ने बनाया है। वे अपने चित्रों के लिए प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करती हैं। उन्हें खुद बनाती हैं।

Index - Udayan Vajpai writes about February
विषयसूची पेज - फरवरी के मौसम के बारे में कुछ बेहद कल्पनाशील व रचनात्मक पंक्तियाँ।

Boli Rangoli - A column of illustrations of children on Gulzar’s couplet
बोली रंगोली
कवि गुलज़ार की दो पंक्तियों
“चाहे तो आसमान पलट सकती है हवा
पन्ना पलट सकेगी क्या मेरी किताब का ”
पर बच्चों के बनाए चुनिंदा चित्र। साढ़े तीन सौ चित्रों में से गुलज़ार के चुने हुए पाँच चुनिंदा चित्र तथा अन्य प्रशंसनीय पंद्रह चित्र पेज -15 पर।
इस कॉलम से अपेक्षा है कि बच्चे कविता को समझकर अपनी कल्पना से उसका एक और पाठ तैयार करेंगे। कविता के समानांतर। इस तरह वे किसी कविता को समझने की तरफ एक कदम आगे बढ़ाएँगे। वे किसी शब्द पर बार-बार ठहरेंगे। उसके तमाम सम्भव अर्थ टटोलेंगे। उनके अनुभवों को जोड़कर वे शायद एक उनका अपना अर्थ निकाल पाएँगे। वे उस पुल को भी अनुभव करेंगे जो एक कला से दूसरी कला के बीच बन सकता है। बच्चों के सामने चुनौती होगी कि क्या वे एक बहुअर्थी कविता के समानांतर एक बहुअर्थी, उतना ही खुला चित्र सोच सकते हैं?
इस बार की पंक्तियों में कुछ बच्चों ने हवा को चित्रित किया है। कि कवि असल में हवा या जिसे हम लहर के अर्थ में भी पहचानते हैं की बात कर रहा है। कुछ बच्चों ने कविता का एक अन्य सिरा पकड़ा है। पन्ना पलट सकेगी क्या मेरी किताब का। यानी कि जो हवा दुनिया को बदलने को निकली है वह हवा क्या मेरे जीवन में कुछ भी बदलाव ला सकती है।

Kurjan, Gulabi Aur Gori Mem - An Article on migratory Demoiselle cranes by Prabhat, Photographs by Madan Meena
कुरजां, गुलाबी और गोरी मेम - कुरजां (डिमोसाइल क्रेन) सर्दियों में राजस्थान के जलाशयों में प्रवास पर आती हैं। और कैसे गाँव वाले तमाम तंगहाली के बावजूद उनके लिए थोड़ी-सी बाजरी बचाकर रखते हैं। इलाके में कीड़े-मकोड़े कम हो गए हैं। इनसे कुरजांओं का गुज़ारा नहीं चल सकता है। पर कुरजांएँ आना नहीं छोड़तीं। अब उन्हें शायद बाजरी की मिठास खींच लाती है।
जैसे कुरज़ाएँ दूर देश से आती हैं वैसे ही राजस्थान के गाँवों में गोरे आते हैं। ज़मीन पर सरहदें हैं। इसलिए दोनों उड़कर आते हैं। कुरजां क्या कहते हैं गाँव वाले नहीं जानते। गोरे क्या बोलते हैं गाँव वाले नहीं समझते। पर वे उनका दूर देश से चले आना समझते हैं। गोरे माँडनों से भरे इन गाँव को देखते हैं। गाँव वालों व वालियों को देखते हैं। कला संग्रहालय तो जीवन से खाली हुई चीज़ों से बने होते हैं। पर यहाँ वे जीवित कला संग्रहालय देखते हैं। इस बेहद खूबसूरत लेख के साथ है कवि विनोद पदरज की कविता। भाषा के बाहर।

Shabd Kahan se Aate Hain - An article on journey of words by Indrani Roy
शब्द कहाँ से आते हैं - भाषा के इस ताज़ा शुरू हुए कॉलम में इस बार का विषय है शब्द कहाँ से आते हैं। हम भाषा के मानकीकरण पर कब से ज़ोर दिए जा रहे हैं। बिना भाषा की प्रकृति को समझे। यह लेख बच्चों के स्तर पर भाषा की इसी तासीर की बात करता है। इसमें रोज़मर्रा के कितने ही शब्द हैं जिन्हें हम अपनी भाषा का समझ बैठे हैं। शब्द भाषा का बाहरी रूप होते हैं। उनके अर्थ उनसे सुदूर जीवन में कहीं स्थित होते हैं। इन अर्थों की जड़ कहीं हमारे-तुम्हारे जीवन में स्थित है इसलिए चलते-फिरते रहते हैं। इस लेख में भाषा के कई पहलुओं की तरफ चले जाने के इशारे छिपे हैं।

Haji-Naji - A short comic story by Swayam Prakash, Illustration by Atanu Roy
हाजी नाजी - कुछ बेहद मज़ेदार चुटकुलों पर आधारित है यह श्रृंखला। इसमें स्वस्थ हास्य प्रस्तुत करने की कोशिश है। ह्रूमर, चुटकी, व्यंग्य आदि की भाषा किस कदर पैनी होती है इसके उदाहरण भी ये किस्से बखूबी पेश करते हैं।

Ek Bahut Lamba Din - A Travelogue by Prayag Shukl
एक बहुत लम्बा दिन - यह एक यात्रा वृतांत्त है। नार्वे की यात्रा का। मई से जुलाई के नार्वे के जीवन की झलकियाँ। जब रात में भी सूरज निकला हुआ होता है। लेखक मोटे परदे खींच कर कमरे में रात लाने की कोशिश करता है और यह सोचते हुए सो जाता है कि चिड़ियाँ क्या करती होंगी। वे कब उठती-सोती होंगी।

Dharti Garam Hogi to Chamgadaron ki shamat aayegi - An Article on effects of Global Warming by Sushil Joshi
धरती गर्म होगी तो चमगादड़ों की शामत आएगी - सुशील जोशी का लिखा एक और बेहतरीन लेख। अगर धरती का तापमान बढ़ता है तो चमगादड़ों के देखने-सुनने, शिकार पकड़ने, घूमने-फिरने आदि पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा। क्योंकि उसकी ये सारी गतिविधियाँ ध्वनि पर निर्भर हैं। और ध्वनि की रफ्तार तापमान से प्रभावित होती है।

Googli...Cartoon Strip by Rajendra Dhodapkar
गुगली - जाने-माने कार्टूनिस्ट राजेन्द्र धोड़पकर का एक और बेहद खूबसूरत कार्टून। जो बच्चों की कल्पनाशीलता की ओर इशारा करता है। और इस बात पर भी कि बड़े उन्हें किस तरह अंडरएस्टीमेट करते रहते हैं।

Meri Pyari Beti - Letter from a father to his daughter by Richard Dawkins
मेरी प्यारी बेटी - यह एक पिता का अपनी दस वर्ष की बेटी को लिखा गया एक पत्र है। यह पत्र रिचर्ड डॉकिन्स की बेहद मशहूर किताब - द डेविल्स चैपलिन- से लिया गया है। इसमें लेखक ने लिखा है कि हमें किसी चीज़ का पता कैसा लगता है। वो कौन-कौन सी चीज़ें हैं जिनकी कसौटी पर हम किसी बात की सत्यता को कसते हैं। यानी हम किसी बात को किन आधार पर मानते हैं या हमें मानना चाहिए। इसमें खासतौर पर लेखक ने किसी बात को मान लेने के तीन बुरे कारणों की चर्चा की है - परम्परा, प्रभुत्व या सत्ता और इलहाम।
यानी किसी बात को इसलिए मानना कि वह सदियों से चली आ रही है। या किसी बात को इसलिए मानना क्योंकि किसी बड़े ओहदे वाले व्यक्ति ने तुम्हें ऐसा मानने के लिए कहा है। मसलन, पादरी, पंडे, मौलवी आदि। तीसरी बात है इलहाम। जैसे कोई किसी पंडित से पूछे कि तुम्हें कैसे पता चला कि ईश्वर क्या चाहता है और वह कह दे कि जब वो पूजा करने बैठा था तो ईश्वर ने ही ऐसा विचार उसके मन में पैदा किया।

Mera Panna - Children’s Creativity Corner
मेरा पन्ना - इसमें हर बार की तरह बच्चों की रचनाएँ हैं। चित्र व कहानियाँ-किस्से। एक किस्सा पारदी जनजाति की एक लड़की ने लिखा है। कि कैसे एक अंकल अपने घर के बाहर पड़े कबूतर को उठाकर ले जाने के लिए उसे कहते हैं। उसने पाया कि कबूतर मर गया है। उसकी एक आँख भी नहीं है। फिर उसने व उसके दोस्तों ने उसे दफनाया। और एक छोटा-सा चबूतरा बनाया। वे जब भी उस तरफ से गुज़रते उसकी कब्र पर फूल चढ़ाना न भूलते।

Sardi ki teen kavitayein - Poems on winters by Abdul Malik Khan, Illustration by Atreyee De
सर्दी की कविताएँ - अब्दुल मलिक खान की लिखी तीन छोटी-छोटी छंदबद्ध कविताएँ। जिनका विषय सर्दी है -
जले फुर्र से फिर बुझ जाए
ज्यों माचिस की तीली धूप।
कोहरे की चादर में लिपटी,
लगती गीली गीली धूप।

Bhaat ki Khushboo - A Memoir by Manohar Chamoli, Illustration by Dileep Chinchalkar
भात की खुशबू... - यह एक संस्मरण है। इस रचना में लेखक अपने दो शिक्षकों को याद करता है। एक पारम्परिक शिक्षक और एक नए ज़माने के शिक्षक जिनसे बच्चों के दोस्ताना संबंध थे। जब नए मास्टर जी गाँव आए तो वे अपने साथ गैस लाइटर, अखबार, रंग-बिरंगी किताबें आदि लाए। गाँव में ये सब नई-नई चीज़ें थीं। नए मास्टर जी हर चीज़ को चित्र बनाकर पढ़ाते। लेखक और उसका एक दोस्त बारी बारी से शिक्षक के घर स्कूल की छुट्टी के बाद पहुँच जाते। इन्हीं सब यादों के इर्दगिर्द बुना है यह संस्मरण।

Mathapachchi - Brain Teasers
माथापच्ची - तरह तरह के दिमागी जूझ पैदा करने वाले सवाल।

Shabdon se kabhi-kabhi kaam nahi chalta - Poetry orientation column, Illustration by Sanju Jain
कविता खिड़की - शब्दों से कभी-कभी काम नहीं चलता...
कविता ओरिएंटेशन के उद्देश्य से यह कॉलम चकमक में चलाया जा रहा है। इसमें मूलत: बड़ों के लिए लिखी गई कुछ ऐसी सरल कविताओं को लिया जाता है जिनका रसास्वादन बच्चे भी कर सकें। हर बार एक बिलकुल अलग किस्म का गुण लिए एक कविता पेश की जाती है। इस बार कवि त्रिलोचन की कविता पर कवि तेजी ग्रोवर ने एक टिप्पणी लिखी है। यह टिप्पणी कविता का सीधा-सीधा अर्थ नहीं बताती है बल्कि इस कविता को याद करते हुए अपने जीवन की उन घटनाओं को प्रस्तुत करती चलती है जिन घटनाओं में इस कविता की झलक मिलती है। एक तरह से यह कविता के समानांतर एक जीवन अनुभव है। किसी अनुभव से कविता बनती है और वही कविता दुबारा किन्हीं अन्य जीवन के अनुभवों में बदल जाती है।
शब्दों से कभी-कभी काम नहीं चलता...यह कितने कमाल की बात है कि कवि शब्दों के इस्तेमाल से ही शब्दों से काम न बनने की बात कर रहा है।
इस कविता की जुगलबंदी करता एक बेहतरीन चित्र चित्रकार संजू जैन का।

Shezari - Hamari Billi by Vijay Tendulkar, Illustration by Dileep chinchalkar
शेजारी - शेजारी का मतलब होता है पड़ोसी। इस कॉलम के माध्यम से मराठी के साहित्य की बेहतरीन रचनाएँ पाठक पढ़ सकेंगे। इस बार मराठी के प्रसिद्ध लेखक-नाटककार विजय तेंदुलकर। इस बार की रचना है बिल्ली। लेखक के घर में कहीं से एक बिल्ली रहने चली आई है। उसके घर में एक कुत्ता भी पला है। धीरे-धीरे बिल्ली कैसे चतुराई से उस घर में अपनी जगह बनाती है इसका बेहद बारीक वर्णन। उसकी हरेक हरकत पर जैसे लेखक की कड़ी नज़र रही हो। और एक दिन वह बिल्ली कहीं गुम हो जाती है....दिलीप चिंचालकर के एकदम जीवंत चित्रों पर आपकी नज़र अटक कर रह जाएगी।

An Interview with Vinod Kumar Shukl
कवि विनोदकुमार शुक्ल से इंटरव्यू - हिन्दी के जाने-माने कवि से बच्चों के बारे में, उनके बचपन के बारे में, बालसाहित्य के बारे में तफ्सील से बातचीत। विनोद जी के लेखन में जितनी रचनात्मक भाषा का इस्तेमाल होता है उतनी ही वे इंटरव्यू जैसे विषय के लिए करते हैं। जैसे जीवन और लेखन की कोई खाई ही न हो ....किताब ही एक दिन दुनिया को बचाएगी। चीता नहीं है पर चीते का चित्र मनुष्य के अपराध के सबूत की तरह है। मैं किताब से बाहर निकलने की उसकी राह देखूँगा। किसी का चित्र न हो, उस पर लिखा हुआ है तो लिखे हुए से बाहर आने की उसकी राह देखूँगा।
बेहद खूबसूरत चित्र भी इस इंटरव्यू के बीच-बीच में देखने को मिलेंगे।

Masla darwaze se ojhal hote ajnabi ka - A memoir by Dileep Chinchalkar, Illustration by Dileep Chinchalkar
मसला दरवाज़े से ओझल होते अजनबी का - दिलीप जी चित्रकार हैं जो लिखते हैं या वे लेखक हैं जो चित्र बनाते हैं। छोटे बच्चों के लिए उनकी एक और सरस रचना। रोज़ सुबह उन्हें लगता है कि कोई उनका दरवाज़ा खटखटाता है। उनका पालतू कुत्ता भी भौंकता है। पर जब बाहर जाकर देखते हैं तो कोई नहीं मिलता। फिर एक दिन चोर पकड़ में आता है। लेखक नहीं खोजता बल्कि उनके एक चाचा जो जासूसी कहानियाँ पढ़ने के शौकीन हैं वे खोजते हैं चोर को।

Chitrapaheli- Children’s Activity corner
चित्र पहेली - चित्रों के सहारे पहेली भरना। क्या कक्षा में ऐसी पहेलियाँ नहीं बनाई जा सकती हैं? एक बेहद खूबसूरत गतिविधि हो सकती है बच्चों के लिए। कैसे किसी शब्द का सुराग देने के लिए एक चित्र बनाया जाए। चित्र कैसा हो और कितना संक्षिप्त हो आदि चर्चा के मज़ेदार विषय हो सकते हैं।

Gauraiya- A poem by Vijay Bahadur Singh, Illustration by Atanu Roy
बैक कवर - गौरैय्या पर कवि विजयबहादुर सिंह की एक तुकांत कविता। और अतनु राय के सजीव चित्र।