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Cover - An Illustration by Claude Monet
कवर/क्लॉड मोने - क्लॉड मोने दुनिया के बड़े नामचीन चित्रकार रहे हैं। वे इम्प्रैशनिस्ट थे। उन्होंने इस शैली का विकास तब किया जब लोग यथार्थवादी चित्रकारी यानी जैसी चीज़ें हैं वैसी बनाने में जुटे थे। उन दिनों मोने ने चीज़ें जैसी दिखती हैं, जैसी छाप हम पर वे डालती हैं उन्हें वैसा बनाया। और बखूबी बनाया। यानी बारिकियों में जाने की बजाय उनके मोटे-मोटे स्वरूप को पेंट किया। तो चकमक का इस बार का कवर उनका एक चित्र। इस चित्र की तीन संक्षिप्त व्याख्याएँ भी हैं भीतरी पन्नों में।

Mai Mor Zameen La Bachavat hu - A story on Land acquisition by Rinchin, Illustrations by Suddhasatwa Basu
मैं मोर ज़मीन ला बचावत हूँ - इन दिनों भूमिअधिग्रहण पर बातचीत हो रही है। अखबार, टीवी के साथ-साथ शायद बच्चों को आसपास विस्थापन, ज़मीन अधिग्रहण देखने में भी आ रहा होगा। क्या सचमुच ये मुद्दे बच्चों के कुछ काम के नहीं? क्या वे इससे अप्रभावित हैं? या हो सकते हैं? तो फिर हम क्यों बच्चों के लिए एक कृत्रिम दुनिया पेश करने में लगे रहते हैं। जैसी दुनिया सामने आती है उन्हें उससे दो-चार क्यों नहीं कराते। ये कहानी इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द है। हालाँकि यह कई और मसलों पर भी बात करती है। मसलन, उत्तराधिकार का मसला। फिर कहानी तो एक यात्रा होती है। वह कहीं पहुँच जाने के लिए ही नहीं होती है। इस कहानी के चित्र खासतौर पर देखने लायक हैं। इन्हें हमारे देश के जाने-माने चित्रकार शुद्धसत्व बसु ने बनाया है।

Boli Rangoli - A column on children’s Illustrations on Gulzar’s couplet
बोली रंगोली - शब्दों से इस दुनिया की कितनी ही चीज़ें आती हैं। दुनिया के पार की चीज़ें भी आती हैं। इस मायने में साहित्य यथार्थ सिर्फ पेश ही नहीं करता वह उस पर प्रभाव भी डालता है उसे बनाता भी है। कई बार रचनाएँ नई रचनाओं का सबब बनती हैं। जैसे बोली रंगोली में। एक कविता तो पहले ही एक इमेज भी होती है उसका फिर से इमेजिनेशन करना। उसे फिर से इमेज में बदलना। इस बार की पहेली क्या खूब थी -
अच्छे भले थे पूरे थे
हर बात में मगर
आइने को देखा तो
दो टुकड़े हो गए
बच्चों ने बखूबी इसे पकड़ा। तरह तरह की इमेज़ेस आर्इं। कुछेक ने आइने में होने वाले टुकड़े को भी समझा पर जाने क्यों आइने को भी टूटा दिखाया?

A Letter from Asgar Wajahat
नाटककार असगर वजाहत की चिट्ठी - वजाहत साब ने बच्चों के सामने एक प्रस्ताव रखा है जिसके तहत वे उन्हें एक-एक आइडिया भेजें जिस पर वे नाटक लिखना चाहते हैं। वजाहत साब इनमें से चुनिन्दा कुछ आइडियाज़ पर बच्चों के साथ काम करेंगे। कुछ लेखनकार्यशालाएँ होंगी। हिन्दी की दुनिया में शायद कुछ अच्छे नाटक आएँगे। और सम्भव हुआ तो इन नाटकों का मंचन होगा। आप अपने इलाके के कुछ कथाकार बच्चों को ज़रूर इसमें भाग लेने के लिए प्रेरित करें।

An Observation Activity by Aamod Karkhanis
एक गतिविधि में आमोद कारखानिस ने गौरैया को गौर से देखने की बात कही है। और उसकी कुछ आदतों, हरकतों पर निगाह रखने की बात कही है। ये अवलोकन भी बच्चों को चकमक को भेजना है। कहते हैं गौरैया अब कम दिखने लगी है। गाँव-कस्बों में तो अब भी दिखती है पर शायद यह बात शहरों पर लागू होती होगी। क्यों कम हो गई गौरैया? इन सब मसलों पर अगले अंक में बच्चों के अवलोकनों को शामिल करते हुए एक लेख।

Haji-Naji - Fun Stories by Swayam Prakash, Illustrations by Atanu Roy
हाजी नाजी/ व्यंग्य/ स्वयंप्रकाश - हास्य-व्यंग्य का कालम। इस बार तीन चटपटे किस्से। और फिर उसपे अतनु जी का उनकी अपनी शैली का चित्र।

Activity - Ek Boond Todi...
एक गतिविधि/ एक बूँद तोड़ी....एक बूँद को फूँक मारकर छितराना और फिर उसमें से एक आकृति उभारने की यह गतिविधि के कुछ नहीं तो तीन हज़ार से पर चित्र बच्चों ने भेजे। क्या कमाल के चित्र। इनमें से कुछ तो अगले अंकों में आते रहेंगे पर कुछ इस अंक में भी शाया हुए हैं। कितनी आसानी से कल्पनाशील काम में बच्चों को आनंदित किया जा सकता है।

Dost - A serial picture story by Shashi Kiran
दोस्त - शशि किरन की चित्रकथा की दूसरी किस्त। उनके दोस्त यानी उनके प्रिय कुत्ते की यादों की कहानी।

Bhasha@21century - An article on SMS language by Indrani Roy
भाषा@ 21 सेन्चुरी- भाषा कहाँ से आती है? कैसे बनती है? आज की भाषा जैसे कई मसलों पर इंद्राणी राय ने ईमेल, इण्टरनेट, एसएमएस, ट्विटर के ज़माने की भाषा के बारे में कुछ बातें कही हैं। दिलचस्प।

Zarra Zarra Kajarra - An article by Rashmi Paliwal
जर्रा जर्रा कजर्रा - खजुराहो को अलबेरुनी ने कजर्रा लिखा था। खजुराहो में अभी भी खुदाई में पुराने मंदिर आदि मिल रहे हैं। ताज़ा खुदाई में मिली सामग्री के बारे में एक दिलचस्प लेख। और इस लेख को सजीव करती आठ तस्वीरें।

Mera Panna - Children’s Creativity column
मेरा पन्ना - यूँ तो सभी रचनाएँ पढ़ने लायक हैं पर गणेशपुर विद्यालय, उत्तरकाशी की चौथी की छात्रा सिमरन की रचना गाने वाला पेड़ अद्वितीय है। मेहा भी चौथी में ही पढ़ती हैं उन्होंने एक रंगों का बहुत सुन्दर खेल अजनबी आकृतियों में रचा है।

Jungle ki ek Ghatna - A memoir by Amit Kumar, Illustrations by Dilip Chinchalkar
जंगल की एक घटना - कान्हा की एक घटना का वर्णन जिसमें एक व्यक्ति हाथी से नीचे गिर जाता है। शेरनी अपने दो बच्चों के साथ उस पर हमले को बेताब है पर हाथियों की चतुराई से उसकी जान बच जाती है। एक रोमांचक वर्णन और दिलीप चिंचालकर के बहुत ही खूबसूरत स्कैच।

Googli - A cartoon corner by Rajendra Dhodapkar
गुगली/कार्टून - परीक्षा पर कार्टूनिस्ट राजेन्द्र धोड़पकर के दो कार्टून।

Ghar- A poems on “Ghar” by Divik ramesh, Vishnu Nagar, illustrations by Dilip Chinchalkar
घर - तीन कविताओं व एक गद्य का कोलॉज। विषय है घर। दिलीप जी के सधे चित्र।

Mathapacchi - Brain teasers
माथापच्ची - चत्वारी नाम के एक व्यापारी को गणित से खेलने का शौक था। इसी शौक की कथापहेली। और कुछ और दिलचस्प सवाल।

Mitti mai rachi basi Zindagi - An article on famous ceramist Daroz
मिट्टी में रची-बसी ज़िन्दगी - दरोज़ हमारे देश के नामचीन सिरेमिस्ट (मिट्टी कला के शिल्पकार) हैं। उनके काम देश-विदेश में बेहद चर्चित हैं। उनमें कल्पनाशीलता तथा बारीक काम का अद्भुत मिश्रण हैं। उनकी कहानी। उनके पसंदीदा कामों की एक झलक। कैसे वे इस कला में आए। कैसे उन्होंने कुछ बहुत ही चर्चित सीरीज़ बनार्इं। इस लेख को एक अन्य सिरेमिस्ट और उनकी पत्नी दीपाली दरोज़ ने लिखा है। दरोज़ के बेहतरीन शिल्पों से सजी चार पन्नों की रोचक कहानी।

Ek Chuze ki Maa - A memoir by Dilip Chinchalkar
एक चूज़े की माँ - दिलीप चिंचालकर जीवविज्ञान की एक प्रोफेसर से मिले। जो उन दिनों ड्रोंगो यानी भुजंगा के बच्चे को पाल रही थीं। बिल्कुल उसकी माँ की तरह। उसके लिए पतिंगों का भोजन जुटाती। और बिल्कुल माँ की तरह उसे खिलाने वाली। पर इतना छोटा बच्चा कैसे समझे कि कीड़े को कैसे खाना है। उसका भी सलीका है। तस्वीरों के सहारे बुनी एक रोचक कथा।

Magarmacho ki duniya - A serial story by Jasbir Bhullar, Illustrations by Atanu Roy
मगरमच्छों की दुनिया - भयानक बाढ़ और उसके बाद नामक कड़ी। जंगल में आई बाढ़ के बाद का दृश्य और उससे मगरमच्छ का निकलना।

Funny Pathshala - A cartoon making column with Cartoonist Irfan Khan
फनी पाठशाला - कार्टूनिस्ट इरफान इंडियन एक्सप्रैस समूह के साथ काम करते हैं। जनसत्ता में उनके कार्टून नियमित रूप से देखे जा सकते हैं। वे इस अंक से चकमक से जुड़े हैं। अब हर माह की ताज़ातरीन घटनाओं पर वे दो कार्टून बनाएँगे और बच्चों से बाचीत करेंगे। बच्चे भी बीते माह की किसी एक घटना पर जिस पर वे बनाना चाहें - एक कार्टून बनाकर चकमक को भेजेंगे। कुछ चुनिन्दा कार्टून चकमक में शाया किए जा सकेंगे। इस बार परीक्षा पर दो कार्टून देखें।

Chitrapaheli
चित्रपहेली - चित्रों के संकेतों को बूझकर शब्दों के सुरागों तक पहुँचने की पहेली।