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कवर: कविता-सुंदर- प्रभात
पाठकों के लिए प्रभात द्वारा लिखी गई सुंदर-सी कविता...
गुड़िया भी सुंदर
बुढ़िया भी सुंदर
बुढ़िया की बेटी
सुंदर भी सुंदर
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कविता- मज़दूर का जन्म- केदारनाथ अग्रवाल
रूसी क्रांति को याद करते हुए केदारनाथ अग्रवाल द्वारा लिखी गई कविता “मज़दूर का जन्म” |

मेरा पन्ना
बच्चों की रचनात्मकता को सलाम करते पन्ने...

सौ साल पहले... रूसी क्रांति-1917- सी.एन.सुब्रह्मण्यम्
रूसी क्रांति को इस महीने सौ साल हुए हैं | उस दौर को याद करते हुए सी.एन.सुब्रह्मण्यम् द्वारा लिखा गया है यह आलेख | नवंबर 1917 की घटनाओं के वर्णन के साथ उन्हें समझने के विविध नजरियों की चर्चा करता है यह लेख।

तुम्हारे घर में सबसे ज़्यादा आज़ाद कौन हैं?- बच्चों के पत्र
अगस्त-सितम्बर अंक में हमने आज़ादी के अवसर पर विभिन्न स्कूलों के बच्चों से चर्चा करी थी उनके घरों में सबसे ज़्यादा आज़ाद कौन हैं और क्यों | उस अंक के बाद भी बच्चों ने हमसे अपने विचार साझा किए | उन्हीं विचारों की एक झलक नवम्बर में एक प्रस्तुत की जा रही है |

रूसी क्रांति और आवास- ग़रीबों का शहर
क्रांति से लोगों की जिंदगियों पर काफी गहरा असर पड़ता है | किसी शहर में अमीरों व मेहनतकश गरीबों के बीच संतुलन बदल जाता है। इसका लोगों के दैनिक जीवन पर क्या असर पड़ सकता है – इस लेख में शहर के अवास समस्या का तात्कालिक और दीर्घ कालीन समाधान कैसे निकाले गये, इस पर प्रकाश डाला गया है।

जातक कथा- कौन बड़ा कौन छोटा?- कुमकुम रॉय
जातक कथा की इस श्रृंखला में तीसरी कहानी है“कौन बड़ा कौन छोटा” | इस कहानी में बोधिसत्त ने एक तीतर के रुप में जन्म लिया है |उनके मित्र हैं एक बंदर और एक हाथी | तीनों में इस बात पर गहन चर्चा चल रही है की तीनों में से कौन सबसे बड़ा है ?

रूसी क्रांतिऔर बच्चे
क्रांति का सबसे ज़्यादा असर किसी पर पड़ता है तो वो हैं बच्चे | रूसी क्रांति के समय भी कई बच्चे बेघर हुए | इस लेख से आप जानेंगे की कैसे रूसी क्रांति से बच्चों की ज़िन्दगी में बदलाव लाया गया | रूस की शिक्षा नीति में क्या बदलाव लाए गए और कैसे दुनिया के पहले “बच्चों का थिएटर” ने अपना रूप लिया |

बकरा सच्चा प्यार करता है- फरीन
चौथी कक्षा की फरीन द्वारा अपने बकरे को याद करते हुए लिखा गया छोटा सा संस्मरण |

लंबे डग वाला लड़का- विनोद कुमार शुक्ल
हरेवा पक्षी जाना जाता है अपनी पक्षी साथियों की आवाज़ हुबहू निकलने के लिए | उसकी अपनी कोई बोली नहीं | छोटू की भी नहीं थी | वह भी हरेवा पक्षी की तरह अपने दोस्तों की आवाज़ का नकल करता | पर कुछ दिनों से ना ही छोटू दिखाई दे रहा था और ना ही हरेवा पक्षी | देखू और बोलू इसी सोच में डूबे की थी अचानक उन्हें किसी नए लड़के की आवाज़ सुनाई दी | मुड़कर देखा तो छोटू खड़ा था | आखिर छोटू ने ये किसकी आवाज़ निकाली थी? कौन था उसका नया दोस्त? आखिर इतने दिनों से वह क्यों नहीं दिखाई दे रहा था?

प्रयोग- तैरते ढक्कन को बीच में लाओ- प्रतीका
एक छोटा परन्तु रोचक प्रयोग प्रस्तुत है | पानी से भरे हुए गिलास में अगर आपको कहा जाए की ढक्कन को बीच में लेकर आओ तो क्या ये मुमकिन है? यह तो प्रयोग करने पर ही पता चलेगा |

ईश्वर अल्लाह तेरे नाम- प्रियंवद
नाचघर की नौवीं किस्त |
मोहसिन बहुत दिनों से नाचघर नहीं आया था | लाजवंती को बैचेनी होने लगी थी आखिर उसे मोहसिन को इतना कुछ बताना जो था | आखिरकार वह माँ को मनाकर अकेले दरगाह के लिए निकलती है यह सोचकर की उसी रस्ते मोहसिन के घर उससे मिलते हुए चली जाएगी |

मेरा पन्ना
बच्चों की रचनात्मकता को सलाम करते पन्ने...

माथापच्ची
सवालों की दुनिया से पांच मज़ेदार सवाल | इसबार के अंक से माथापच्ची में एक नई तरह की पहेली शुरू की गई है “सुडोकू” |

चित्र पहेली
वही चित्रों के सहारे शब्दों को बुझने की पहेली |

हम स्वतंत्रता से यह समझते हैं- कुमारी शालिनी
आज़ादी के लिए मिले पत्रों में से ही एक पत्र है कुमारी शालिनी का | आखिर स्वतंत्रता से वह क्या समझती हैं उन्हीं से जानिए |