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मेरा पन्ना विशेषांक 
हमेशा की तरह इस बार भी चकमक का नवम्बर अंक ‘मेरा पन्ना विशेषांक’ है। यह पूरा अंक बच्चों की रचनाओं से तैयार किया गया है। इस अंक की सज्जा भी बच्चों के चित्रों से ही की गई है। बच्चों की कहानियों-कविताओं, लेखों के साथ-साथ ही दिए गए कुछ खास विषयों पर बच्चों द्वारा लिखी व बनाई गई रचनाएँ इस अंक को खास बनाती हैं।  

मेरा पन्ना
कविताएँ – याद आती है, ऑनलाइन पाठशाला, राजा-रानी, अप्पू के कंचे, बारिश आई,
वाकया – कोरोना के बाद स्कूल, हाथी, मेरी गाय लालो
डायरी – मेरी डायरी का एक पन्ना
और बच्चों के कई दिलकश चित्र।
'याद आती है' और 'ऑनलाइन पाठशाला' रचनाएँ जहाँ कोरोना के दौरान बच्चों ने स्कूल को कितना मिस किया की आहट देती हैं, वहीं 'कोरोना के बाद स्कूल' लेख में स्कूल खुलने की खुशी के साथ-साथ इस बात की झलक मिलती है कि कोरोना के चलते बरती जाने वाली एहतियातों ने स्कूल के माहौल को किस कदर बदल दिया है।
'हाथी', 'मेरी गाय लालो' और 'मेरी डायरी का एक पन्ना' यह तीनों ही रचनाएँ अन्य जीवों के साथ बच्चों के करीबी रिश्ते को बखूबी बयां करती हैं। 

मुझे कलर्स के बारे में क्या लगता है – लारण्या, दूसरी, शिक्षान्तर स्कूल, गुरुग्राम, हरयाणा
चित्र: अमृता
दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली लारण्या इस लेख में बताती हैं कि अलग-अलग रंगों के बारे में वो क्या महसूस करती हैं। बड़ों की ही तरह बच्चे भी कितनी गहराई से किसी बात के बारे में सोचते हैं यह लेख इसका एक उम्दा उदाहरण है।

माथापच्ची
कुछ मज़ेदार सवालों और पहेलियों से भरे दिमागी कसरत के पन्ने।

बहाना जो काम कर गया
विशेषांक के लिए दिए गए विषयों में से एक विषय था कि बच्चे उनके द्वारा बनाए गए किसी ऐसे बहाने के बारे में लिखें, जो काम कर गया हो। बड़ी तादाद में बच्चों से इसके लिए जवाब मिले। कभी बड़ों की डाँट से बचने के लिए, तो कभी अपने मन का कुछ करने के लिए बच्चों द्वारा बनाए गए कई दिलचस्प बहाने आप यहाँ पढ़ सकते हैं। कुछ बच्चों ने मज़ेदार चित्रों के ज़रिए भी अपने बहानों को बताया है। देखिए...

बातचीत
अपने रोज़मर्रा के जीवन पर नज़र डालें तो हम पाएँगे कि ऐसे कितने ही लोग हैं जो अलग-अलग तरह से हमारी मदद करते हैं, जैसे कि प्लम्बर, मैकेनिक, सब्ज़ीवाले/सब्ज़ीवाली, घर में काम करने वाले, किसी चीज़ की मरम्मत करने वाले आदि। इन सबके बिना तो हमारा काम ही नहीं चलता। तो हमने सोचा कि क्यों ना हम इनके बारे में थोड़ा और जान लें। सो इस अंक के लिए हमने बच्चों को ऐसे ही कुछ लोगों का इंटरव्यू करने के लिए कहा था। 

लोकेश भैया
अखबार वाले इमरान से बातचीत
तरह-तरह की मुश्किलें
रामेश्वर भैया बिजली वाले
इन इंटरव्यू में बच्चों ने जहाँ एक ओर इन लोगों के कामों के बारे में विस्तार से बताया है, वहीं दूसरी ओर इन लोगों को पेश आने वाली मुश्किलातों को भी सामने रखा है। 

मुझे खाने को चूहा कब मिलेगा
चित्र व कहानी: रजनी
, पाँचवीं, मुस्कान संस्था भोपाल
एक बिल्ली अनाज के गोदाम में घुस जाती है। वहाँ उसे एक चूहा दिख जाता है। फिर क्या था दोनों की भागमभाग शुरू हो जाती है। क्या बिल्ली को चूहा खाने को मिला?
इस छोटी-सी चित्रकथा के चित्रों को रजनी ने दाल और कुछ अन्य अनाजों के उपयोग से बनाया है। 

जब अपने ही हमें डराएँ...
बचपन में सभी को बड़ों ने कभी ना कभी डराया होता है। डराने के तरीके और कारण अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन मोटे तौर पर डराने का कारण होता है कि बच्चे बस उनका कहा मान लें। इस अंक के लिए हमने बच्चों से ऐसी ही कुछ बातें लिख भेजने को कहा था। बड़ी संख्या में बच्चों से इसके लिए जवाब मिले। कुछ जवाब आप इन पन्नों में पढ़ सकते हैं...

अन्तर ढूँढो
चित्र: कृषिता हनीष जैन
, पाँचवीं, सेंटर पाइंट स्कूल, ढाबा, नागपुर, महाराष्ट
पाँचवीं में पढ़ने वाली कृषिता के बनाए इन चित्रों में आप कितने अन्तर ढूँढ पाते हैं...  

भूलभुलैया
चित्र: आमना शेख
, आठवीं, महाराष्ट्र
इस छोर से उस छोर तक पहुँचने की जद्दोजहद। करके देखिए…

मीरा की चिट्ठी
चित्र व लेख: झीलम पात्रा
, छठवीं, सरदार पटेल विद्यालय, दिल्ली
नए स्कूल का पहला दिन था। झीलम स्कूल में किसी से ज़्यादा बातचीत नहीं कर पाती थी। फिर उसकी दोस्ती मीरा से हुई। कुछ ही दिनों में दोनों पक्के दोस्त बन गए। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि मीरा को अफगानिस्तान जाना पड़ा... कुछ साल बाद झीलम को एक बेनाम चिट्ठी मिली। चिट्ठी में क्या लिखा है? .... क्या मीरा और झीलम दोबारा कभी मिले? जानने के लिए पढ़िए ‘मीरा की चिट्ठी’।

भूलभुलैया
चित्र: आयुष चौधरी
, आठवीं, घुमारवीं, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश
इस छोर से उस छोर तक पहुँचने की जद्दोजहद। करके देखिए…

चित्रपहेली
चित्रों में दिए इशारों को समझकर पहेली को बूझना।