हमने पढ़ाया और बच्चों ने पढ़ा। क्या बच्चों ने वही समझा जो हम उन्हें समझाना चाह रहे थे?
कुछ ऐसी बातें हैं जिन पर सब हामी भरते हैं। लेकिन उन पर अमल हो पा रहा है या नहीं - यह निश्चित करने की हमारी निष्ठा बड़ी कमज़ोर बनी रहती है।
ऐसी ही एक बात है कि बच्चों की उम्र और उनकी समझने की क्षमता के अनुसार पाठ्यक्रम व पाठ्य-पुस्तक बननी चाहिए।
इस बात को अमल में लाने के लिए यह निहायत ज़रूरी है कि हम पता लगा सकें कि बच्चों को क्या समझ आ रहा है? कक्षा में पाठ पढ़ाते समय हम बच्चों से पूछते हैं, “क्यों भई, आया समझ में?” और एक सामूहिक गूंज उठती है “जी सर"! कभी हिसाब रख कर देखना चाहिए कि हमने कितनी बार बच्चे से यह पूछा और कितनी बार उन्होंने 'जी' में उत्तर दिया और आखिर कितनी बार ऐसा हुआ कि कुछ बच्चे बोले, "नहीं सर, समझ में नहीं आया।”
परीक्षा का जो नाटक हो चला है तो अब परीक्षा से भी यह जांचना आसान नहीं है कि बच्चे दरअसल क्या समझ रहे हैं। पर बच्चों के साथ दोस्ती भरे, सहज और अनौपचारिक माहौल में बातें करने से हम ज़रूर उनके मन को कुछ बेहतर समझ सकते हैं। चलिए ऐसी कुछ बातचीतों के उदाहरण पढ़ें।
दिन, रात और ऋतुएं
यहां हम जो बातचीत प्रस्तुत कर रहे हैं वह होशंगाबाद (म प्र.) के पास के एक गांव के स्कूल में हुई थी। हम भूगोल के पाठ्यक्रम के कुछ बड़े महत्वपूर्ण विषयों पर एक सर्वेक्षण कर रहे थे। विषय थे - दिन-रात का होना, पृथ्वी पर ऋतु परिवर्तन, अक्षांश-देशांश रेखाएं, पृथ्वी की गतियां। हमने 6वीं व 10वीं कक्षा के बच्चों को एक लिखित प्रश्न-पत्र दिया हल करने के लिए। दो दिन बाद हम उन्हीं बच्चों के साथ बैठे और यह बातचीत की।
कक्षा 6वीं के बच्चों के साथ बातचीत
हम बाहर जाकर खुले में बैठे। एक गोल घेरा बना कर हमने कुछ गपशप की, हंसी मज़ाक हुआ। फिर हमने पूछाः
"अच्छा, यह बताओ कि दिन होता है फिर रात हो जाती है। फिर से दिन होता है। ऐसा क्यों?"
"जब चांद पृथ्वी और सूरज के बीच आ जाता है। ना, तब चांद की छाया पृथ्वी पर पड़ती है, तो रात हो जाती है।”
अच्छा, अभी तो दिन है, तो अभी क्या हो रहा है?"
"अभी सूरज और चांद के बीच में पृथ्वी है, इसलिए अभी दिन है।”
"हूं, अच्छा... अच्छा! खैर चलो यह बताओ कि ऋतुएं क्यों बदलती हैं? कभी गर्मी होती है, कभी ठंड, कभी बरसात। ऐसा क्यों होता है?"
“जब पृथ्वी सूरज के पास आ जाती है तब गर्मी पड़ती है, और जब सूरज से दूर चली जाती है तब सर्दी होती है।”
“और ना जब पृथ्वी बीच में होती है, मतलब जब सूरज से बहुत दूर भी नहीं होती और बहुत पास भी नहीं होती तब बारिश होती है।”
अच्छा! ऐसा क्यों?"
पानी, भाप बन के समुद्रों से ऊपर उठ जाता है। ऊपर हवा से भाप फैल जाती है और बारिश हो जाती है...."
"नहीं तो... ऐसा थोड़ी ना होता है! बारिश तो तब होती है जब पृथ्वी पर बहुत गर्मी पड़ती है। तभी तो पानी भाप बन के उड़ता है और बारिश होती है। ये तो तभी होगा जब पृथ्वी सूरज के पास होगी।”
“हूं! तुम यह बताओ कि बारिश किस महीने में होती है?"
“जून, जुलाई में, अगस्त में।”
“अच्छा, और गर्मी कब पड़ती है?"
“जुलाई से पहले।”
"जुलाई के बाद क्या होता है?"
"कुछ समय तक बारिश होती रहती है, फिर नवंबर-दिसंबर में सर्दी हो जाती है।”
“तो अभी तुम्हीं तो बता रहे थे कि गर्मियों के बाद बारिश होती है,न कि गर्मी के महीनों में चलो छोड़ो, अब फिर से इस बात पर आएं कि पृथ्वी सूर्य के पास होती है तो क्या होता है?
"ये सबकुछ समझ में नहीं आता है। मुझे तो... पता नहीं क्या होता है।”
"अच्छा, कोई बात नहीं, चलो देखते हैं। तुम में से कोई एक बीच में आ के खड़ा हो जाए। चलो, तुम बन जाओ सूरज”
“अब एक और जना खड़ा हो के पृथ्वी बन जाए और सूरज के चारों ओर पृथ्वी की तरह घूम कर बताए ज़रा।"
एक लड़का उठा और अपने चारों ओर घूमते हुए उसने सूरज बने लड़के का चक्कर काट कर दिखाया।
“वाह! बहुत ठीक अच्छा, अब सोचा कि गर्मी-सर्दी क्यों होती है?”
बच्चों ने फिर वही बात दोहराई कि जब पृथ्वी सूरज के पास होती है तो गर्मी और दूर होती है तो सर्दी होती है।
यह साफ था कि इन बच्चों के मन में पृथ्वी के अपने अक्ष पर झुके होने की अवधारणा बिल्कुल नहीं बनी थी। पृथ्वी का यह झुकाव और उसका गोलाकार रूप ही तो गर्मी-सर्दी की प्रक्रिया के लिए ज़िम्मेदार हैं। पर इस बात के महत्व का ज़रा भी आभास बच्चों के मन में नहीं बना था| देखना चाहिए कि उनके पाठ में इस बात के महत्व को सही ढंग से उभारा गया है कि नहीं।
बहरहाल हमें लगा कि कम-से-कम पृथ्वी के अपने चारों ओर घूमते हुए सूर्य का चक्कर लगाने की छवि ठीक बन रही है। जो देखें कि क्या अब वे दिन-रात की बात को समझ सकते हैं?
“दिन-रात क्यों होते हैं फिर से समझाओ हमें। दो बच्चे खड़े हो कर सूरज और पृथ्वी बन जाएं और अब दिन-रात की बात करके दिखाएं, ठीक?"
एक लड़का उठा और कहने लगा तीन लोगों की ज़रूरत पड़ेगी, दो से नहीं होगा।
"तीसरा लड़का क्यों?"
“जी, चांद बनने के लिए।”
इस तरह तीन लड़के खड़े हुए - चांद, पृथ्वी, सूरज
"... पृथ्वी का जो हिस्सा सूरज की तरफ है न, वहां दिन है और जो हिस्सा चांद की तरफ है वहां रात है।”
पर तभी दूसरे बच्चे ने फिर वही पुरानी बात सामने रखी।
"नहीं, जब चांद, पृथ्वी और सूरज के बीच आ जाता है तब चांद की छाया पड़ती है पृथ्वी पर, तब रात हो जाती है। जब चांद वहां से हट जाता है... तब सूरज की रोशनी पृथ्वी पर पड़ती है तो दिन होता है।"
इतने में एक और बच्चा बोल उठा, "तब ग्रहण हो जाता है... ग्रहण होता है जब सूरज और पृथ्वी के बीच चांद आ जाता है न, तब”
"हूं, ग्रहण - यह क्या होता है?"
"जब चांद काला हो जाता है तो उसे ग्रहण कहते हैं।”
"अच्छा छोड़ो ग्रहण की बात तो बाद में कभी करेंगे। पहले यह बताओ कि दिन-रात के बारे में किस बात को ठीक मानें?"
बच्चे कुछ बुदबुदाने लगे धीमे-धीमे से। वे कह रहे थे बड़ी झिझक के साथ, "दोनों बातों में थोड़ा कुछ ठीक है। पर दोनों बातें पूरी-पूरी सही नहीं हैं.."
फिर किसी ने सोच कर अपनी तरफ से आगे कहने की कोशिश की।
"पृथ्वी अपनी जगह खड़ी रहती है... तब जिस तरफ सूरज की रोशनी पड़ रही है वहां दिन है, फिर पृथ्वी पलट जाती है तो उस तरफ रात हो जाती है।”
तभी एक और छात्र बोल उठा, "जब सूरज की रोशनी पृथ्वी पर पड़ती है ना तब वहां दिन है। फिर पृथ्वी घूम जाती है तब ग्रहण हो जाता है।"
यहां तक की बातचीत के बाद हम खुद थोड़े हैरान व परेशान होने लगे थे। समझ में नहीं आ रहा था कि किस-किस गुत्थी को सुलझाना शुरू करें और कहां से शुरुआत करें। यह साफ था कि दिन-रात और चन्द्रग्रहण के बीच बच्चे गड्डमड्ड हुए पड़े थे। यह भी स्पष्ट था कि पृथ्वी की दैनिक गति की छवि भी उनके मन में पूरी तरह
*ध्यान दें कि दिन-रात की बात में तो भ्रम थी ही, ग्रहण की बात भी बच्चों को समझ नहीं आई थी। चांद पर ग्रहण तो तब होता है जब पृथ्वी चांद और सूरज के बीच आ जाती है और पृथ्वी की छाया चांद पर पड़ती है।
विकसित नहीं थी। जैसे उन्हें इस बात की कल्पना नहीं थी कि पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना 24 घंटे में हर पल होता रहता है।
हमारे हाथ में एक किताब थी जो हम साथ स्कूल ले गए थे। उस किताब में दिन-रात की प्रक्रिया को समझाने के लिए दो चित्र बने थे।हमने सोचा बच्चों का ध्यान बांटने की ज़रूरत है। वे सोच में डूब कर उलझन महसूस कर रहे हैं। तो हमने उन्हें किताब से ये चित्र दिखाएः
"इस चित्र में क्या बताया जा रहा है, देख कर बताओ।”
दिलचस्प बात यह है कि बच्चों ने तुरन्त बल्ब को सूरज माना, और ग्लोब को पृथ्वी समझा। यहां तक कि मक्खी पर पहले दिन है फिर पृथ्वी धूम गई है और मक्खी पर रात है, यह भी वे समझा सके।
थोड़ी-थोड़ी सफलता, संतोष और आशा के एहसास के साथ हमने बातचीत का यह दौर खत्म कर दिया।
रश्मि पालीवाल व यमुना सनी
(एकलव्य में सामाजिक अध्ययन शिक्षण कार्यक्रम से जुड़ी हैं।)
इस बातचीत को पढ़कर आपके मन में क्या निष्कर्ष उभरते हैं? सोचिए, और हमें लिखिए भी। अगले अंक में दसवीं कक्षा के बच्चों के साथ बातचीत प्रस्तुत करेंगे।
आप भी सोचिए
आमतौर पर पाठ्यपुस्तकों में पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करने का चित्र कुछ इस तरह बनाया होता है। और साथ ही यह भी लिखा होता है कि जब पृथ्वी सूर्य के पास होती है तो गर्मी का मौसम होता
है और जब सूर्य से दूर - तो सर्दी का मौसम। इन दोनों बातों को ध्यान से देखने, पढ़ने के बाद आपको कुछ गड़बड़ नज़र आई ? अपने विचार हमें लिखिए ताकि इस महत्वपूर्ण अवधारणा पर चर्चा आगे बढ़ सके।