Read Entire MagazineChakmak July 2016

Cover - Illustration by Nilesh Gehlot
कवर - सात पेड़ोंवाला एक पेड़ था। इसलिए नाम पड़ा - सतपेड़ा। पता नहीं कैसे सात अलग-अळग आम के बीज एक साथ आए। पनपे। और बड़े हुए तो जुड़कर एक हो गए। मशहूर कवि, कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल का यह संस्मरण आपको यकीनन कितने ही पेड़ों, पहाड़ों, नदियों, हवाओं की याद दिला जाएगा। कहाँ रहती होंगी इतनी सारी स्मृतियाँ। ज़रा-सा खुरचा कि बाहर निकल आती हैं। सतपेड़ा की जुगलबन्दी करता नीलेश गहलोत का खूबसूरत चित्र। उस पेड़ की हिलती पत्तियाँ, हवाओं का शोर, बच्चो की चीख-पुकार, उत्तेजना...सब को महसूस किया जा सकता है। वो पत्तियाँ अपने रंग से हरी हैं कि यादों के हरेपन ने उन्हें रंग दिया है?

Gilhari ka pani - Poem by Poorvanshi, a class 2nd student from Bhopal, Illustration Dilip Chinchalkar
गिलहरी का पानी - चकमक में हम मानते हैं कि बच्चे और हम एक ही दुनिया में एक समय में रह रहे हैं। उनका देखना, सुनना हमसे अलग नहीं। बस फर्क है तो स्मृतियों का। स्मृतियाँ देखने-सुनने-समझने को जितना प्रभावित करती हैं। बस उतना ही अलग होता है उनका और हमारा देखना। अलग होता है। कौन किससे बेहतर होता है इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। अकसर बच्चों का देखना हमें उनका कायल बना जाता है। जैसे दूसरी में पढ़नेवाली पूर्वांशी का देखना। एक ज़रा-सी घटना। वो गर्मियों के मज़े ले रही है। उसके हाथ से गिरी पानी की कुछ बूँदों को गिलहरी पी जाती है। वो देखती है। किसी ने उसे कुछ नहीं कहा। वो बस देखती है और जीवन का एक सबक पा जाती है। कमाल की नज़र है तुम्हारी पूर्वांशी।

Tu hi Nadan Chand Kaliyon par kanayat kar gaya - An interesting instance of a Lappu Master by Himanshu Bajpai, Illustrations by Priya Kurian
तू ही नादां चन्द कलियों पर कनाअत कर गया - किस्सागोई एक कमाल का हुनर है। इसमें किस्से का हाथ तो होता ही है किस्सागो का हुनर भी लाजवाब होता है। किस्सागो किस्से में वो रवानगी डाल देता है कि आप उस पर से फिसलते जाते हैं। वैसे तो किस्से का मज़ा सुनने में ज़्यादा है पर यहाँ आप इस गुदगुदाते किस्से को पढ़ लीजिए। और कोशिश कीजिए किस्सागो बनने की...। साथ में हैं प्रिया कुरियन का गुदगुदाता चित्र।

Mitawa - A story by Kamla Bhasin, Illustrations by Sujasha Dasgupta
मितवा - यह एक परिवार की नहीं कई परिवारों की कहानी है। लड़की है तो घर पर रहे। उस तरह से रहे जैसे बड़े चाहते हैं। हमारे हिसाब से चले। उसका अपना कोई अलग हिसाब न हो। पर ज़रूरत के समय जब यही लड़की किसी की जान बचाने का कारण बन जाती है तो पुराने सभी दकियानूसी ख्याल हवा हो जाते हैं। पंजाब के माहौल में रची बसी मितवा की कहानी को लिखा है मशहूर स्त्रीवादी सोच रखने वाली कमला भसीन ने। और उसे चित्रों से संवारा है सुजाशा दासगुप्ता ने।

Kahan chali hai pankh pasare - A poem by Ravendra Kumar Ravi, Illustration by Atanu Roy
कहाँ चली है पंख पसारे- बच्चों के लिए सुन्दर चित्रों से सजी एक कविता।

Pyare bhai Ramsahay - A memoir by Swayam Prakash, Illustration by Mayukh Ghosh
प्यारे भाई रामसहाय - यह उन दिनों की बात है जब क्रिकेट आज की तरह आक्रामक नहीं होता था। तब चाहे क्रिकेट में कितना ही मज़ा आए मैच देखने में मज़ा कम ही आता था। ऐसे ही एक मैच का किस्सा।

Agar Magar - An interactive column with Gulzar Sahab, in which children’s ask questions to him, Illustrations by Atanu Roy
अगर-मगर- बच्चों के सवाल - गुलज़ार के जवाब
बच्चों के सवालों के गुलज़ार के चुटीले जवाब। माँ के बिना घर क्यों अच्छा नहीं लगता?
अरे वही तो मौका होता है बदमाशियों का, जब माँ घर में नहीं होती। आप भी अपने आसपास के बच्चों से गुलज़ार की फिल्मों की बात करें, उनके लिखे गीत गुनगुनाएँ और फिर उनसे कहें कि क्या उनके दिमाग में कोई सवाल कुलबुला रहे हैं जिन्हें वे गुलज़ार से पूछना चाहेंगे।

Jheel Isliye Sookh gayi - A story by Priyamvad, Illustration by Nilesh Gehlot
झील इसलिए सूख गई - हर साल सर्दियों में हज़ारों किलोमीटर दूर से पक्षी भरतपुर में आते हैं। सर्दियों में उनके यहाँ खाने-पीने की कमी हो जाती है। इसलिए अपने बच्चों को लेकर वो हज़ारों किलोमीटर की उड़ान भरते हुए यहाँ आते हैं। हैरत होती है कि वो आने की जगह कैसे चुनते होंगे? और हर साल याद कैसे रखते होंगे? खैर, वो बात तो अलग यहाँ आकर उन्हें मिला क्या? रोंगटे खड़े कर देनेवाली कहानी। वैसे इसे कहानी कहा नहीं जा सकता क्योंकि इसके तमाम तथ्य सही हैं। वो परिन्दे जो यहाँ खाने की तलाश में आते थे उन्हें अपने मज़े के लिए राजा, वॉयसरॉय मार दिया करते थे। एक-दो नहीं हज़ारों हज़ार। पक्षी लहुलुहान आकाश से गिरते थे। फिर भी साल दर साल आते रहे।

Wo Padhai ke din - A book excerpt from Sharat Chandra’s famous Novel "Shrikant", Illustration by Mayukh Ghosh
वो पढ़ाई के दिन - कई दफा अपनी भाषा में किसी गाने को सुनते वक्त, या कविता पढ़ते वक्त या कोई मुहावारा सुनने पर उसके कहन पर, कही बात को पेश करने के ढंग पर, कही बात पर, उसके सौन्द्रय पर मन फिदा हो जाता है। उस वक्त अचानक यह ख्याल भी आता है कि दुनिया में कितनी ही भाषाएँ हैं। उन सब में ऐसा ही खुछ खूबसूरत घट रहा होगा। और उससे हम नितांत वंचित रहते हैं। अनुवादों ने इस वंचना को कम करने की कुछ कोशिश की ज़रूर है पर उस कहन का क्या करें जो उसी भाषा में अपना जीवन पाता है। खैर, फिर भी अनुवाद हमें मूल का कुछ प्रतिशत भी मुहैया करा दें तो उनका शुक्राया। इसीलिए चकमक में हमारी हमेशा कोशिश रहती है कि हम अलग-अलग भाषाओं की सामग्री को लगातार शाया करते रहें। इसी कड़ी में हमने शरदचन्द्र चट्टोपाध्याय की मूल बांग्ला किताब श्रीकान्त का एक बहुत ही मज़ेदार अंश प्रकाशित किया।

Pooriyon ki Gathari (Part-2) - A serial story by Krishan Kumar, Illustrations by Jagdish Joshi
पूड़ियों की गठरी - बरसों से बेकार - कबाड़ पड़ी बस से निवाड़ी जाने की बात तो बड़ी मैडम कर चुकी हैं पर स्कूल की छात्राओं में इसे लेकर शक सुबह गया नहीं है। और शुरू हो गया शर्तों का दौर...

Dal galta nahi to kiski Galti hai - An article by linguist Ramakant Agnihotri
दाल नहीं गलता तो किसकी गलती है - भाषा पहले बनी नियम बाद में। इस बात पर यकीन करना मुश्किल लगता है। क्योंकि भाषा कोई प्रकृति नहीं जिसे हमने नहीं बनाया। पर उसके नियम हम लगातार खोजे जा रहे हैं। पर फिर से सोच के देखिए भाषा प्रकृति से कोई कम खूबसूरत तो नहीं है ना! थोड़े से शब्दों से इतना कुछ रच देती है। ज़रा-सा शब्दों को हेर-फेर हुआ नहीं कि एक नई रचना हो गई। भाषा की फितरत से जाने-माने भाषाविद रमाकान्त अग्निहोत्री हमारा तारुफ कराएँगे। इसे लेख में वो विभिन्न भाषाओं में लिंग व्यवस्था पर बात कर रहे हैं। आप भी अपनी कक्षा में, या अपने आसपास के बच्चों के साथ इस पर बात करें और हमें ज़रूर बताएँ कि आप विभिन्न भाषाओं में ऐसे कितने नियम-अनियम ढूँढ पाए।

Tuiyan Guyuiyan - A poem by Hemant Devlekar, Illustration by Shobha Ghare
टुइयाँ गुइयाँ - शोभा घारे शब्दों से खिलवाड़ करता एक मज़ेदार गीत...। और शोभा घारे का बेहद खूबसूरत चित्र।

Satpeda - A memoir by Prayag Shukl, Illustration by Nilesh Gehlot
सतपेड़ा - कवर चित्र के साथ इसका विवरण दिया जा चुका है।

Mathapacchi - Brain Teasers, Illustration by Jagdish Joshi
माथापच्ची - सवाल-जवाबों का खेला।

Ajeeb Kona aur Chandi ka Peepal - Two memoirs by Dilip Chinchalkar
अजीब कोना और चाँदी का पीपल – दिलीप चिंचालकर के दो बेहद आत्मीय संस्मरण उन्हीं के चित्रों के साथ। हर घर में सुख-दुख के ऐसे कोने होते हैं। सुकून के कोने। हम इस बात से अनजान वहाँ आते-जाते हैं। पता ही नहीं चलता कि ये सुकून के कोने थे।

Cheentiyon ki Dawat - A responses from various students on observation of Ants
चींटियों की दावत - कहीं भी चले जाएँ चींटियाँ हमसे पहले वहाँ होती हैं। कुछ न कुछ करतीं। क्या करती रहती हैं ये? क्या खाती-पीती हैं? कैसे रहती हैं? पिछले महीने हमने एक गतिविधि दी थी। चींटियों को देखने-समझने की। इस पर बहुत से बच्चों ने अपने बेहद पैने अनुभव हमें लिख भेजे। उनकी एक बानगी यहाँ देखी जा सकती है। बच्चों के तमाम अनुभवों को पढ़ने के बाद विनता विश्वनाथन ने अपनी बात रखी।

Aag - A creative piece on a topic “Aag” by Arun Kamal, Illustrations by Swetha Nambiar
आग - आग से डर लगता है। आग जला देती है। जलने से डर लगता है। पर जो ताप जला देता है वो प्रकाश भी देता है। वो खाना भी पकाता है। आग से लोहे में धार बनती है... चकमक के पिछले अंकों में हवा, पानी, प्रकाश, ध्वनि, मिट्टी पर लिखे अरुण कमल के रचनात्मक लेख पढ़े जा सकते हैं।

Boli Rangoli - A column on children’s illustration on Gulzar’s couplet
बोली रंगोली – गुलज़ार साब की कविता पर बच्चों के चित्रों का यह कॉलम अब अपनी एक जगह बना चुका है। आप सब से गुज़ारिश है कि आप भी अपने यहाँ के बच्चों तक इन पंक्तियों को पहुँचाएँ और उनसे कहें कि वे इन्हें जिस भी तरह से समझे हैं उन्हें चित्रों में लिखें। अगले माह की पंक्तियाँ हैं -
ऐसा कोई शख्स नज़र आ जाए जब
कान पे जिसका हाथ न हो
दाएँ-बाएँ टहल-टहल के
खुद ही हँसता बोलता न हो
बिन मोबाइल खाली हाथ नज़र आ जाए कोई तो
खामख्वाह ही हाथ मिलाने जो जी करता है।

Bulbule - Ashok Bhowmik describing about one painting of John Everett Millais
बुलबुले - जॉन एवरेट मिलाइस का एक चित्र है - एक बच्चे की दुनिया। इसमें उन्होंने अपने नवासे का चित्र बनाया था। जो साबुन पानी से खेलता हुआ बुलबुले बना रहा है। पारदर्शक बुलबुले बनाता वो बच्चा बहुत ही मासूम, पाक-पवित्र-सा दिखाई दे रहा है। इस चित्र में प्रकाश का कमाल का चित्रण है। चित्रकला के इतिहास में यह काफी चर्चित रहा। पर कई साल बाद एक संग्राहलय में देखने के बाद एक साबुन बनानेवाले कारोबारी ने इसका उपयोग विज्ञापन में कर डाला। यह एक अनूठा प्रयोग था। पर इसने विज्ञापन की दुनिया में कई रास्ते खोल दिए थे।

Balut - A book excerpts from Balut an autobiography of a renounced Dalit Marathi poet Daya Panwar, Illustration by Mayukh Ghosh
बलूत - दया पंवार मराठी के जाने-माने दलित कवि थे। उनकी तमाम ज़िन्दगी गाँव से अलग-थलग कर दिए गए मोहल्ले महारवाड़ा में कटी। महारवाड़ा गाँऴ का हिस्सा होते हुए भी नहीं था। वहाँ की ज़िन्दगी की भाषा गाँव के जीवन की भाषा से अलग थी। यह बात उन्हें कचोटती ज़रूर। पर इससे उनमें कभी कमतरी का भाव न आया।

Chitrapaheli
चित्रपहेली – हमेशा की तरह चित्रों की पहेली।

Mera panna - A children’s creativity column
मेरा पन्ना – तुम्हारे गढ़े हुए दो पन्ने।

Boond - A short creative piece describing a journey of a Drop, Illustration by Sujasha Dasgupta
बूँद – बूँद के सफर को बताता उदयन का एक छोटा-सा रचनात्मक लेख।

Boondein - A beautiful poem by Raghuvir Sahay, Illustration by Taposhi Ghoshal
बूँदें – रघुवीर सहाय की एक कविता। जितनी सुन्दर कविता है उतना ही सुन्दर तापोशी जी का चित्र।
जितनी बूँदें
उतने जौ के दाने होंगे
इस आशा में चुपचाप
गाँव यह भीग रहा है...