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कवर- सन् 47 को याद करते हुए- केदारनाथ सिंह (नूरमियाँ कविता)
यह कविता विभाजन के दिनों की याद के बारे में है। और जो विभाजन के बाद में लिखी गई थी। कविता से नूर मियां के बारे में कई चीज़ें पता चलती हैं। मसलन, वो बेहद गरीब थे। मुश्किल से अपना घर चला पाते होंगे। और ऐसे एक इंसान को भी यहाँ से चला जाना पड़ा। तब तक देश अपनी ठीक-ठाक पहचान नहीं बना पाए थे। इसलिए याद देशों की नहीं शहरों की है वहाँ की जगहों की है – इमामबाड़ा, मुलतान, ढाका...।इस कविता में कवि का नाम तीन बार आता है। शायद कवि बार-बार केदारनाथ सिंह का नाम इस्तेमाल कर यह बताना चाह रहा है कि ये सारे सवाल ... नूर मियां कहाँ होंगे, कैसे होंगे  क्यों चले गए आदि सब एक हिन्दू से पूछ रहे हैं। 
यह भी देखनेवाली बात है कि नूर मियां के नाम से क्या-क्या चीज़ें याद आती हैं... मदरसा, इमामबाड़ा...
औऱ साथ में है कनक का बेहद संजीदा चित्र

दोस्ती-जातक कथा कुमकुम रॉय चित्र-चन्द्रमोहन कुलकर्णी
इस अंक से पुरानी कहानियों की एक श्रृंखला शुरू की जा रही है | ये कहानियाँ प्राचीन बौद्ध संकलन है जिन्हें हम जातक कथा के नाम से जानते हैं |
इसी श्रृंखला में पहली कहानी है दोस्ती | यह एक कुत्ते और हाथी के बीच की बहुत दोस्ती की कहानी है | जातक कथाओं में बौद्ध को अलग अलग रूपों में दर्शाया गया है | इस कहानी में बौद्ध ने वाराणसी के राजा के मंत्री का रुप लिया है |

स्नो-फादर- कहानी- अज़ीज़ नेसिन
मेमेथ जिसे सपनों की दुनिया से बहुत प्यार है उसने एक बहुत ही प्यारा सा सपना देखा | नौरोज़ की रात का वह सपना मेमेथ को शायद ज़िन्दगीभर याद रहेगा | यह एक तुर्की कहानी है जिसका मूल तुर्की से अंग्रेजी एवं अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया गया है | इसके बेहद सुन्दर चित्र मूल तुर्की कहानी से ही लिए गए हैं।

तुम्हारे घर में सबसे ज़्यादा कौन आज़ाद है- बच्चों के पत्र
15 अगस्त देश की स्वतंत्रता से इस कदर जुड़ गया है कि इस दिन देश की स्वतंत्रता से इतर कुछ याद नहीं आता। जैसे स्वतंत्रता पर बात सिर्फ देश के सन्दर्भ में ही की जा सकता है। पर ऐसा है तो नहीं। आज देश स्वतंत्र है पर क्या इसमें रहनेवाले सभी लोग भी स्वतंत्र हैं। बराबर से स्वतंत्र। क्या इस देश के घरों में रहनेवाले खुद को स्वतंत्र मानते हैं। अपने घर में वे किसे स्वतंत्र मानते हैं और क्यों... हमने विभिन्न जगहों के विभिन्न स्कूलों के बच्चों से चर्चा की कि उनके घरों में सबसे ज़्यादा कौन आज़ाद हैं | और क्यों। बच्चों ने जो कहा उसे आप भी देखिए। आप भी अपने स्कूल में बच्चों से इस पर बात कर सकते हैं।

स्वतंत्रता- सी.एन.सुब्रह्मण्यम
बच्चों द्वारा लिखे गए लेखों को पढ़कर स्वतंत्रता पर सी.एन.सुब्रह्मण्यम ने अपने कुछ विचार व्यक्त किए हैं | स्वतंत्रता शब्द को अक्सर इंसान देश की स्वतंत्रता समझ लेता है पर यहाँ हम मनुष्यों की स्वतंत्रता की चर्चा गई है |

शुभ्रा- हीरण्या
हिरण्या कक्षा नौवीं में पढ़ती हैं | हम सबकी अपनी अपनी बचपन की यादें हैं, हिरण्या भी अपना एक बचपन का किस्सा सबको बताना चाहती है |

बिजूका- अनिल सिंह- कहानी
मंगल चाचा से शंकर अक्सर मार खाता था | पर इस बार संटी की मार खाकर शंकर ने मन ही मन मंगल चाचा से बदला लेने की ठान ली थी | आखिरकार उसने अपना बदला लिया या नहीं, और लिया तो कैसे?

सभी लोग और बाकी लोग
संजय चतुर्वेदी की कविता “सभी लोग और बाकी लोग” पढ़ते हुए आपको सालों पहले लिखी कहानी एनिमल फॉर्म बरबस याद आ जाएगी।
सभी लोगों को आज़ादी है दिन में
रात में आगे बढ़ने की
ऐश में रहने की
तैश में आने की
सभी लोग रहते हैं सभी जगह
सभी लोग सभी लोगों की मदद करते हैं
सभी लोगों को मिलता है सभी कुछ
सभी लोग अपने-अपने घरों में सुखी हैं
बाकी लोग दुखी हैं तो क्या
सभी लोग मर जाएं...
इस कविता पर नरेश सक्सेना कहते हैं कि हमारा संविधान असल में हमारे साथ किया एक वादा है। इशी वादे के तहत अलग-अलग धर्म, जाति, विचारों के लोग साथ आए। एक देश के रूप में। पर आ गए तो पता चला कि वो वादा तो निभाया ही नहीं जा रहा। तो कवि एक तरह से कह रहा है कि देश नाम के इस वादे से बाकी लोगों को क्या मिला...
साथ में है कविता के रूबरू खड़े दो बेहद वाचाल चित्र...

भरे आसमान के नीचे अकेले- दिलीप चिंचालकर
खुले आसमान के नीचे कभी लेटो तो आश्चर्य होता है की कितना विशाल है आकाश, कितने सारे तारें हैं और कितना बड़ा है ब्रम्हांड | कुछ इसी सोच में गुम हो गये थे दिलीप चिंचालकर जब वे किसी से रूठकर अपनी छत में आकर सोने के लिए लेटे |

सदाको का सपना और एक हज़ार कागज़ी बगुले- अशोक भौमिक
हिरोशिमा में जब पहला अणु-बम गिराया गया तो उससे कई लोगों की मौतें हुईं | पर उस से कई ज़्यादा मौतें अणु-बम के गिरने के कुछ देर बाद हुई काली बारिश से हुई | सदाको भी उस दिन काली बारिश में भीग गई थी, कुछ दिनों में वह अस्पताल में भर्ती हुई | वहाँ सदाको को एक साथी मिला जिसने उसे कहा की अगर वह एक हज़ार कागज़ के बगुले बना ले तो वह स्वस्थ हो जाएगी | सदाको और कागज़ के बगुलों का सफ़र बताता यह लेख लिखा है अशोक भौमिक जी ने |

चलो सारस बनाते हैं
सदाको के बारे में पढ़ने के बाद उसको बनाने की उत्सुकता भी पाठकों में जागेगी | उसी उत्सुकता को ध्यान में रखते हुए सारस बनाने की गतिविधि दी गई है |

मैं ढूढ रहा हूँ
परमाणु बम की बात करें तो हिरोशिमा-नागासाकी पर हुए हमले अपने आप ज़हन में आ जाते हैं | उस हमले से जापान में बहुत तबाही मची, उस तबाही की याद में हिरोशिमा के एक संग्रहालय में 21 हज़ार चीज़ें रखी हुई हैं | आर्थर बिनार्ड द्वारा लिखी गई पुस्तक “मैं ढूंढ रहा हूँ” इन्हीं 21 हज़ार चीज़ों में से 14 चीज़ों का चयन कर रची गई है |

मंटो से मुलाकात- सुशील शुक्ल
बहुप्रचिलित लेखक और नाटककार सादत हसन मंटो को याद करते हुए उनके द्वारा लिखे गए कुछ किस्से साझा कर रहे हैं सुशील शुक्ल | मंटो उन लेखकों में से एक हैं जिन्होंने भारत-पाकिस्तान बँटवारे के समय के हालातों को अपने शब्दों से बखूबी बताया है | इनकी लिखी रचनाओं को पढ़कर उस दौर को और लोगों के दर्द को महसूस किया जा सकता है |

लालमिर्च-नाचघर की आठवीं किस्त- प्रियंवद
प्रस्तुत है कथाकार प्रियंवद जी के नाचघर की आठवीं क़िस्त |

मेरा पन्ना
बच्चों की रचनात्मकता को सलाम करते पन्ने...

बोली रंगोली
अगस्त-सितम्बर की कविता
एक मच्छर मिला, गुनगुनाता हुआ
कान के पास सीटी बजाता हुआ
बड़ा मनचला, एक मच्छर मिला
दोनों हाथ से जब मारना चाहो तो
एक ताली बजी
मनचला ख़ुश हुआ, नाचने लग गया
ताता थई, ताता थई
ताता थई, ताता थई
बड़ा मनचला एक मच्छर मिला |
बोली रंगोली का यह आखिरी अंक है, पर चकमक को चित्र भेजते रहिएगा | 

कदम्ब के फूल जैसा- सी.एन. सुब्रह्मण्यम- लेख
बारिश के मौसम में कदम्ब के पेड़ फूलों से लद जाते हैं | पर क्या ये फूल कुछ और भी दर्शाते हैं? सी.एन.सुब्रह्मण्यम द्वारा लिखा यह लेख चर्चा करता है की कैसे और क्यों आर्यभट्ट कदम्ब के फूल को पृथ्वी की तरह देखते हैं |

माथापच्ची
सवालों की दुनिया से पांच मज़ेदार सवाल |

देखू का चुप्पी और बहरी जगह जाना और देखना बोलू का चुपचाप चलना- कहानी
कूना, बोलू और देखू का चुप्पी और बहरी जगह पहुँचने तक का अद्भुत सफ़रनामा है यह कहानी |

कु गुठली से आम
गुठली सवाल पूछती है। वो उसे बता दी बातों को यूँ ही मान नहीं लेती। उसके नाम के साथ पिता का नाम क्यों जाए। जबकि उसने माँ-पिता एक-दूसरे से अलग हो चुके हैं। वो माँ के साथ रहती है। उसके नाम के साथ किसी का भी नाम क्यों जाए। उसी के नाम से सारे लोग उसकी माँ, नानी, माँ को पहचानते हैं तो उसके मामा उसका नाम क्यों नहीं लगते। इन सवालों का परम्परा में उत्तर तो है पर बेहद खोखला। एक ज़ोरदार सवाल से बजबजाने लगता है। एक बेहद संवेदनशील सवाल को उठाती कहानी...

फीफा- रुद्राशीष चक्रवर्ती
बहुत सी बचपन की यादें खेल से जुड़ी हुई होती हैं | उन्हीं यादों को ताज़ा करते हुए रुद्राशीष द्वारा लिखा गया यह लेख जिसमें की फीफा वर्ल्डकप के कुछ यादगार पल साझा किए गए हैं |

चश्मा नया है- भूमि और विनय
एक रात के लिए खाली सड़क पर दोस्तों के साथ रिक्शा चलाने में कितना मज़ा आता है यह तो ये कहानी पढ़ने के बाद ही पता चलेगा |

अनाज घर- म्यूरियल काकानी- लेख
बरसों से किसान अपने अनाज को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशक के बजाए अनाज घरों का उपयोग करते आए हैं | भारत में जितने विविध राज्य हैं उतना ही विविध अनाज घर का नाम और उसे बनाने के तरीके हैं | अनाज घरों की इसी विविधता को दर्शाता है म्यूरियल काकानी द्वारा लिखा गया यह लेख |

दुबले योगी की दो मूर्तियाँ- अशोक भौमिक- लेख
अशोक भौमिक जी द्वारा लिखी हुई “उपवास में बुद्ध” लेख की चर्चा को ही जारी करते हुए उड़ीसा के मुक्तेश्वर मंदिर की दो मूर्तियों के बारे में चर्चा की गई है | अक्सर हम जब भी मूर्तियों को देखते हैं तो उसे किसी कविता या कहानी की तरह समझने का प्रयास करते हैं | इस प्रयास में हम मूर्ति की अपने आप में जो खूबसूरती है उसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं | इसी बात को ध्यान में रखते हुए योगी की दो मूर्तियों के ऊपर यहाँ चर्चा की गई है |

चित्र पहेली
वही चित्रों के सहारे शब्दों को बुझने की पहेली |