पिछले अंक में सवालीराम से पूछे गए चार सवालों में से फिलहाल दो के जवाब यहां दिए जा रहे हैं। दो सवाल अभी भी बचे हैं जिनके जवाब आप अभी भी दे सकते हैं।
सवालों को एक बार फिर दोहरा लें।
1. चंद्रमा पर वायुमंडल क्यों नहीं हैं?
2. ठंडे सूप की अपेक्षा गर्म सूप क्यों स्वादिष्ट लगता है?
3. पृथ्वी पर उत्पन्न प्रथम जीव को क्या कहा गया?
4. किस ग्रह में नए जीवन की खोज की गई है?

सवाल: चंद्रमा पर वायुमंडल क्यों नहीं है?
जवाब: किसी आकाशीय पिंड पर वायुमंडल का होना या नहीं होना दो बातों पर निर्भर करता है एक - उस पिंड का पलायन वेग और दूसरे उस पिंड की सतह का तापमान।
वायुमंडल विभिन्न प्रकार की गैसों का मिश्रण होता है। इन गैसों के कण निरंतर गति करते रहते हैं। अगर किसी कारणवश गैस का तापमान बढ़ा दिया जाए तो इन कणों की गति भी बढ़ जाती है।
हर ग्रह या उपग्रह का अपना गुरुत्वाकर्षण बल होता है, जो दूसरे पिंडों को व अपनी सतह पर मौजूद धूल, मिट्टी, गैसों आदि को अपनी ओर खींचता है। यदि कभी आपको किसी ग्रह या उपग्रह के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकलना हो तो एक विशेष गति की ज़रूरत होती है ताकि आप गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकल सकें। हमारी पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए 11.6 किलोमीटर/सेकेंड की रफ्तार चाहिए। इसलिए धरती से दूर अंतरिक्ष में छोड़े जाने वाले रॉकेट की गति 11.6 किलोमीटर/सेकेंड तक बढ़ानी पड़ती हैं। इस वेग को पलायन वेग कहते हैं। हरेक ग्रह या उपग्रह के गुरुत्वाकर्षण बल के अनुरूप पलायन वेग भी बदलता है। जैसे चंद्रमा पर पलायन वेग 2.4 किलोमीटर सेकेंड है ( यानी 144 किलोमीटर प्रति मिनट।)

दूसरी बात है तापमान। चंद्रमा की प्रकाशित सतह का तापमान लगभग 130 डिग्री सेंटीग्रेड होता है।
यानी गैसों द्वारा चंद्रमा पर पलायन वेग को प्राप्त करने की संभावना कहीं ज्यादा है। और गैसों के अणु गति करते हुए पलायन वेग को पार करके चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकल जाते हैं।
यहां एक मज़ेदार तथ्य यह भी है कि हमारी धरती अपने आकर्षण बल के कारण वायुमंडलीय गैसों को थामे हुए है लेकिन यदि धरती की सतह का तापमान दो गुना कर दिया जाए तो यहां भी गैस के अणु पलायन वेग को पा लेंगे और धरती पर वायुमंडल का खात्मा हो जाएगा।

सवाल: ठंडे सूप की अपेक्षा गर्म सूप क्यों स्वादिष्ट लगता है?
जवाब: जैसा कि हम जानते ही हैं। कि जीभ पर अलग-अलग स्थानों से मीठे, खट्टे, कड़वे और नमकीन स्वाद का पता चलता है। हमारी जानकारी में यह बात भी है कि भोज्य पदार्थों का स्वाद हमें हमारी जीभ पर मौजूद स्वाद कलिकाओं द्वारा पता चलता है। ने कि न जीभ पर मौजूद स्वाद कलिकाओं और भोज्य पदार्थों के बीच कौन-सी क्रिया होती है इसका कोई संतोषप्रद जवाब नहीं है। फिर भी ऐसा माना जाता है कि आहार में मौजूद विभिन्न पदार्थ लार में घुलकर अणुओं में बिखरने लगते हैं। ये अणु स्वाद कलिकाओं को उत्तेजित करते हैं जिससे विद्युत-रसायन संकेत पैदा होते हैं। इनकी जानकारी तंत्रिका तंतुओं से होती हुई दिमाग तक पहुंचती है जहां स्वाद की पहचान होती है।
अब आते हैं हम अपने मूल सवाल पर कि ठंडे सूप के मुकाबले गर्म सूप ज्यादा स्वादिष्ट क्यों लगता है?

किसी भी खाद्य पदार्थ के पूर्ण स्वाद के लिए ज़रूरी है कि पदार्थ के स्वाद के साथ-साथ हमें उसकी गंध की जानकारी भी मिले, तभी तो ज़ायका समझ में आता है। आपने शायद ध्यान दिया हो कि जो खाने की चीजें कम तापमान पर होती हैं यानी अगर फ्रिज में रखीं हों तो उनमें से गंध/महक कम आती है। अगर आइसक्रीम भी बहुत ठंडी हो तो उसका विशेष स्वाद भी अच्छी तरह से पता नहीं चलता।
यही कारण है कि गर्मागर्म सूप से उठ रही महक भी मारी नाक के ज़रिए दिमाग तक पहुंचती है और सूप अत्यन्त ज़ायकेदार लगता है। ठंडे सूप में जीभ तो अपना काम करती है लेकिन नाक के लिए कुछ भी नहीं होता!
आपने यह भी अनुभव किया होगा कि सर्दी-जुकाम के दिनों में गरम सूप भी उतना स्वादिष्ट नहीं लगता क्योंकि नाक की गंध के प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है, जिसकी वजह से सूप स्वादहीन लगने लगता है।


इन दोनों सवालों के जवाब - अरुण कुमार पाण्डेय, मुलतानपुर (उ.प्र.); अश्विन व्याम, रामटेकरी, मंदसौर; कौस्तुभ सिंह जादौन, उदयपुर (राजस्थान) ने दिए हैं।