एक मैदानी प्रयोग से पता चला है कि किसी स्थान पर कौन-से पेड़-पौधे पनपेंगे और फलेंगे-फूलेंगे, इसमें काफी हाथ उस जगह की मिट्टी में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं का होता है। नेदरलैण्ड में बरबाद हो चुकी भूमि पर एक स्वस्थ इकोसिस्टम की मिट्टी की पतली-सी परत ने भी कमाल कर दिया। और इस प्रत्यारोपण ने यह दर्शाया कि मिट्टी सिर्फ बरबाद भूमि को उपजाऊ नहीं बनाती बल्कि यह भी तय करती है कि वह उपजाऊपन किस दिशा में बढ़ेगा।
यह प्रयोग नेदरलैण्ड इकॉलॉजी संस्थान के जेस्पर वुब्स के निर्देशन में सम्पन्न हुआ। वैसे यह बात किसान और बागवान सदियों से जानते हैं कि विशिष्ट जीव-जंतु मिट्टी को एक खास किस्म की उर्वरता प्रदान करते हैं। वुब्स की टीम ने इसी बात को बड़े पैमाने पर प्रदर्शित किया है।
वुब्स की टीम ने एक बंजर खेत में किसी जगह की मिट्टी की एक परत (1 सेंटीमीटर से भी पतली परत) बिछाई। इस मिट्टी में सारे जीव-जंतु भी नई जगह के थे। मिट्टी दो तरह की बिछाई गई थी - या तो घास के मैदान की या झाड़-झंखाड़ वाली बंजर भूमि की। मिट्टी बिछाने से पहले इसमें उन्होंने दो तरह के बीज भी मिलाए - एक किस्म के बीज वे थे जो घास के मैदानों में उगते हैं और दूसरे किस्म के बीज झाड़-झंखाड़ वाली बंजर भूमि से थे।
प्रयोग में देखा गया कि मिट्टी का स्रोत ही तय करता है कि कौन-से बीज ज़्यादा उगेंगे। मसलन, घास के मैदान की मिट्टी में देखा गया कि 5 प्रतिशत से भी कम क्षेत्र में वे बीज उगे थे जो बंजर भूमि से प्राप्त हुए थे। दूसरी ओर, बंजर भूमि की मिट्टी में 15 प्रतिशत भूमि पर इन्हीं बीजों से उगे पौधे थे।
चूंकि बिछाई गई मिट्टी की मात्रा बहुत कम थी इसलिए शोधकर्ताओं का विचार है कि ज़्यादा असर मिट्टी के रासायनिक संघटन का नहीं हुआ होगा। शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रमुख असर सम्बंधित मिट्टी में पाए जाने जीव-जंतुओं की वजह से हुआ होगा। इन जीवों में बैक्टीरिया, फफूंद और मिट्टी में रहने वाले कृमि वगैरह शामिल हैं। यही मिट्टी को उसकी खास पहचान देते हैं। इस प्रयोग से यह भी स्पष्ट होता है कि मिट्टी के ऊपर उगने वाले पेड़-पौधे और मिट्टी में भूमिगत रहने वाले जीव कितने परस्पर निर्भर हैं।
नेचर प्लांट्स शोध पत्रिका में प्रकाशित इस शोध के नतीजोंे से लगता है कि यह तरीका भूमि सुधार के काम को काफी गति दे सकता है और नेदरलैण्ड में कई स्थानों पर इसके परीक्षण शुरु भी किए गए हैं। (स्रोत फीचर्स)