एस. अनंतनारायणन

हम रोज़ाना एक चुंबक का इस्तेमाल करते हैं जो लोहे की चीज़ों पर चिपक जाता है। मगर आम चुंबकों की तरह यह उत्तर-दक्षिण दिशा नहीं दिखा पाता। ज़ाहिर है हम उन छोटे-छोटे चुंबकों की बात कर रहे हैं जिनकी मदद से हम कागज़ पर लिखे संदेशों को फ्रिज पर चिपका देते हैं। ये चुंबक कई बार प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं या पतली पट्टी जैसे होते हैं। ये एक ओर से तो लोहे की वस्तुओं पर चिपक जाते हैं मगर दूसरी ओर से चिपकाने पर नहीं चिपकते।
हम साधारण छड़ चुंबकों से वाकिफ हैं। ये छड़ के आकार के होते हैं और लोहे की कीलों या आलपिनों वगैरह को पकड़ लेते हैं और आलमारियों वगैरह पर भी चिपक जाते हैं। ये आम तौर पर लोहे के बने होते हैं। चुंबक में लोहे को अपनी ओर खींचने का यह गुण उनके अंदर परमाणुओं में बहुत ही सूक्ष्म विद्युत धाराओं पर निर्भर होता है। जैसा कि आप जानते ही हैं, परमाणु में एक धनावेश युक्त केंद्रीय भाग होता है और ऋणावेश युक्त कण (इलेक्ट्रॉन) इसके आसपास चक्कर काटते हैं। केंद्रीय भाग के आसपास कक्षाओं में चक्कर काटते इन इलेक्ट्रॉनों में कुछ विद्युतीय गुण भी होते हैं। ऐसा लगता है जैसे वे लट्टू की तरह घूम रहे हैं - तकनीकी रूप से इसे घूर्णन कहते हैं। अधिकांश पदार्थों में तो कई इलेक्ट्रॉनों के घूर्णन की वजह से उत्पन्न हुए विद्युतीय गुण एक-दूसरे को निरस्त कर देते हैं। मगर चुंबकीय पदार्थों में ऐसा संतुलन नहीं होता। इन पदार्थों में परमाणु छोटी-छोटी कुंडलियों की तरह व्यवहार करते हैं। परिणामत: पदार्थ में चुंबकीय गुण पैदा हो जाता है।

जब ऐसे पदार्थों को घोल में से या पिघले हुए पदार्थ से बनाया जाता है तो ये कुंडलियां बेतरतीबी से जम जाती हैं - यानी वे अलग-अलग दिशाओं में जमी रहती हैं। इसका नतीजा यह होता है कि हरेक परमाणु अपने आप में एक चुंबक होते हुए भी, एक-दूसरे के चुंबकीय गुण को उदासीन कर देते हैं। मगर यदि किसी पिघले हुए चुंबकीय पदार्थ को एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र में रखकर ठोस बनाया जाए, तो सारे परमाणु एक खास दिशा में जम जाएंगे। तब उनका अलग-अलग चुंबकीय प्रभाव निरस्त नहीं होगा बल्कि बढ़ जाएगा। जब ऐसा होता है तो हमें अपना जाना-पहचाना चुंबक मिलता है।
चुंबक बनाने का एक और तरीका यह है कि एक-एक परमाणु को नए सिरे से किसी दिशा में उन्मुख होने को उकसाया जाए। इसके लिए किसी चुंबकीय पदार्थ की छड़ को किसी चुंबक से रगड़ा जाता है। या यह भी किया जा सकता है कि लोहे की एक छड़ को एक विद्युत कुंडली के अंदर रखकर कुंडली में शक्तिशाली विद्युत धारा प्रवाहित की जाए। कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होने पर अंदर एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र बनता है जो लोहे की छड़ के परमाणुओं को एक खास दिशा में जमाने का काम करता है।

क्या एक ध्रुव संभव है?
जैसा कि हमने देखा, चुंबक वास्तव में विद्युत धारा के एक विशेष तरह से व्यवस्थित करोड़ों परिपथों का परिणाम होता है। प्रत्येक परिपथ में एक सिरा उत्तरी ध्रुव होता और दूसरा दक्षिणी ध्रुव होता है। इसका मतलब है कि यदि एक उत्तरी ध्रुव होगा तो दक्षिणी ध्रुव भी अवश्य होगा। चुंबकीय एकल ध्रुव जैसी कोई चीज़ संभव नहीं है।
मगर एक किस्म के चुंबक ऐसे होते हैं जिनमें दोनों ध्रुव एक ही तरफ होते हैं। ध्यान दें, कि ये ध्रुव एक ही तरफ होते हैं, एक ही छोर पर नहीं। यह घोड़े की नाल के आकार का चुंबक होता है जिसे नाल चुंबक भी कहते हैं। यह वास्तव में एक छड़ चुंबक ही है जिसे इस तरह मोड़ा गया है कि दोनों ध्रुव पास-पास आ जाते हैं। नाल चुंबक में दोनों ध्रुवों के बीच की जगह में बहुत शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र बन जाता है।
चुंबकीय पट्टी
रेफ्रिजरेटर के दरवाज़े पर चिपकने वाली प्लास्टिक की पट्टी भी एक ही फलक पर चुंबकीय प्रभाव दर्शाती है। क्या संभव है कि इसमें भी कई सारे नाल चुंबक एक लाइन में जमे हों?
वास्तव में ऐसा ही होता है। लचीली चुंबकीय पट्टियां रबर या प्लास्टिक से बनाई जाती हैं। बनाते समय इस रबर या प्लास्टिक में चुंबकीय पदार्थ का चूरा मिला दिया जाता है। यह चुंबकीय पदार्थ आम तौर पर फेराइट होता है जो लौह का एक यौगिक है। जब यह पिघला हुआ मिश्रण जम रहा होता है उस समय इसे रोलर में से गुज़ारा जाता है ताकि पतली चादर बन जाए। साथ ही इस पर शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र भी आरोपित किया जाता है ताकि सारे छोटे-छोटे चुंबक एक सीध में जम जाएं। बाहरी चुंबकीय क्षेत्र ऐसा होता है कि उसमें उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव एक के बाद एक आते हैं। इसके प्रभाव से पट्टी पर छोटे-छोटे नाल चुंबक बन जाते हैं। इसी वजह से यह पट्टी एक तरफ चुंबकीय होती है, दूसरी तरफ नहीं। (स्रोत फीचर्स)