टीवी पर एक खेल हुआ करता था। उसमें विजेता को यह अवसर होता था कि वह या तो 1000 रुपए का पुरस्कार ले ले या एक डिब्बा खोले जिसमें हो सकता है कि 1500 रुपए रखे हों या शायद कुछ भी न रखा हो। विजेता को निर्णय करना पड़ता था। यह एक किस्म का जुआं है। देखा गया है कि परिस्थिति के मुताबिक लोग निर्णय करते हैं और प्राय: 1500 रुपए की उम्मीद में डिब्बा खोलते हैं।
अब एक अध्ययन से पता चला है कि मटर के पौधे भी ऐसा कर सकते हैं और करते हैं। यह अध्ययन इस्राइल के बेन-गुरियन विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान के स्नातकोत्तर छात्र इफ्रात डेनर ने किया। डेनर का कहना है कि अन्य लोगों की तरह वे भी मानते थे कि पेड़-पौधे तो निर्णय लेने में निष्क्रिय होते हैं। मसलन वे प्रकाश की ओर मुड़ जाते हैं या नमी होने पर उनकी पत्तियों के स्टोमेटा खुल जाते हैं वगैरह। मगर क्या वे रणनीति बनाकर निर्णय ले सकते हैं। लगता था कि पौधे ऐसा नहीं करते। प्रयोग के बाद उन्हें भान हुआ कि वे कितने गलत थे। यानी प्रयोग में देखा गया कि कठिन परिस्थितियों में पौधे भी अलग ढंग से प्रतिक्रिया देते हैं।

यह देखा गया है कि मनुष्य, प्रायमेट्स, पक्षी और सामाजिक कीट उस समय कम जोखिम लेने की कोशिश करते हैं जब भोजन की सप्लाई स्थिर व सुनिश्चित हो। मगर जब सप्लाई अस्थिर और अनिश्चित होती है तो वे अपनी रणनीति बदल लेते हैं। जैसे, एक प्रयोग में मधुमक्खियां भुखमरी की स्थिति में किसी ऐसी नली में से मकरंद चूसना पसंद करती हैं जिसमें से खूब सारा मकरंद मिलने की उम्मीद हो, जबकि हो सकता है कि कभी-कभी उसमें से कुछ न निकले। इसी प्रकार से ठंड होने पर एक पक्षी बीज देने वाली उस मशीन को अनदेखा करता है जो नियमित रूप से तीन बीज देती है और एक ऐसी मशीन को आज़माता है जो एक बार में छ: बीज - या शून्य बीज - देती है।
डेनर ने इसी तरह का प्रयोग मटर के पौधे पर किया। मटर के पौधों को एक ऐसी परिस्थिति में उगाया गया जहां उनकी जड़ों को दो गमलों में बांट दिया गया था। दोनों गमलों में एक ही प्रकार के पोषक तत्व समान मात्रा में थे। मगर एक गमले में पोषक तत्वों की सांद्रता स्थिर बनी रहती थी जबकि दूसरे में बदलती रहती थी। 12 सप्ताह के बाद शोधकर्ताओं ने प्रत्येक गमले में पौधे की जड़ों का द्रव्यमान निकाला।

देखा गया कि पौधों ने अपनी जड़ों के वितरण को दोनों गमलों में पोषक तत्वों के स्तर के अनुसार घटाया-बढ़ाया। कुछ प्रयोगों में पौधों को ऐसे दो गमलों के बीच चुनाव करना था जिनमें से एक में पोषक तत्वों की स्थिर मगर उच्च मात्रा मिल रही थी जबकि दूसरे में पोषक तत्वों का स्तर बदलता रहता था। ये पौधे जोखिम से कतराते थे और इनकी ज़्यादातर जड़ें स्थिर सप्लाई वाले गमले में दिखीं।
मगर जब स्थिर सप्लाई वाले गमले में पोषक तत्वों का स्तर कम (यानी पौधों के जीवित होने की ज़रूरत से भी कम) रखा गया और दूसरे गमले में स्तर बदलता रहा तो पौधों ने अपनी रणनीति बदल दी। उन्होंने अपनी ज़्यादा जड़ें बदलते स्तर वाले गमले में भेजीं। यानी उन्होंने हूबहू जंतुओं के समान व्यवहार किया और जुआं खेला। करंट बायोलॉजी में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि सामान्यत: जोखिम उठाने से कतराने वाले ये पौधे कठिन परिस्थिति में जोखिम उठाने को तत्पर रहते हैं। (स्रोत फीचर्स)