प्रकृति संरक्षण के काम में यह सवाल हमेशा उठता रहता है कि किन प्रजातियों के संरक्षण पर ध्यान दिया जाए। कुछ लोगों का मत होता है कि हमें स्वस्थ इकोतंत्रों को बचाने पर ध्यान देना चाहिए जहां सफलता की गुंजाइश अधिक है। अन्य लोग मानते हैं कि दुर्लभ, विलुप्तप्राय प्राणियों को बचाना ज़रूरी है।
यही सवाल दुनिया के सबसे दुर्लभ स्तनधारी प्राणि के संदर्भ में भी उठ रहा है। शायद अधिकांश लोग जानते तक नहीं कि दुनिया का सबसे दुर्लभ स्तनधारी प्राणि है कौन-सा? वह है हाइनन गिबन जिसके सिर्फ 26 सदस्य बचे हैं और इसके संरक्षण के प्रयासों का कहीं ज़िक्र तक नहीं होता।
आम तौर पर देखा गया है कि किसी प्राणि के संरक्षण की बातें तभी होती हैं जब वह लुप्त होने की कगार पर पहुंच जाता है। यही हाल बैजी सफेद डॉल्फिन का हुआ था। इसे आखरी बार 2002 में देखा गया था। तब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी। 2007 में यह प्राणि दुनिया से रुखसत हो गया। जब हम इतनी देर से जागते हैं तो क्या उसके बाद संरक्षण की कोशिश का कोई अर्थ भी रह जाता है? सवाल वाजिब है।

देखा जाए तो हाइनन गिबन को लेकर किए जाने वाले प्रयास भविष्य में वन्य जीव संरक्षण सम्बंधी कामकाज को परिभाषित करेंगे। वास्तव में देखा यह जाना चाहिए कि 1970 के बाद से रीढ़धारी जीवों की आबादी आधी रह गई है। इसका मतलब है कि भविष्य में कई प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर होंगी। हाइनन गिबन की हालत इसकी एक बानगी पेश करती है क्योंकि धीरे-धीरे यह समस्या आम होती जाएगी। ज़ाहिर है इसे बचाने की कोशिशें ज़रूरी हैं बशर्ते कि इन कोशिशों से सीखे गए सबक आगे के संरक्षण प्रयासों की सफलता की संभावना को बढ़ाएं। (स्रोत फीचर्स)