अश्विन साई नारायण शेषशायी

एक व्यक्ति है क्रैग वेंटर। वे जिस किस्म का जीव वैज्ञानिक अनुसंधान करते हैं वह प्राय: चौंकाने वाला होता है और कम से कम पहली नज़र में अक्सर क्रांतिकारी दिखाई पड़ता है। वे सबसे पहले एक समानांतर, निजी पैसे से संचालित मानव जीनोम प्रोजेक्ट की घोषणा के लिए मशहूर हुए थे। कल्पना यह थी कि विभिन्न बीमारियों से सम्बंधित जीन्स का क्षार अनुक्रम पता किया जाएगा। सौभाग्यवश, अनुक्रम की यह जानकारी पेटेंट के पर्दे में दबी नहीं रही। अपने इस असाधारण विज्ञान के तहत 1995 में उन्होंने एक बैक्टीरिया के जीनोम का सर्वप्रथम अनुक्रमण किया था। इस खोज ने सार्वजनिक मानव जीनोम प्रोजेक्ट में महती योगदान दिया और इसे समय पर पूरा करने में मदद दी।
वेंटर प्राय: खबरों में रहते हैं। 2010 में शु डिग्री से शु डिग्री करके उन्होंने एक बैक्टीरिया की 11 लाख क्षार लंबी आनुवंशिक सामग्री (डीएनए) का संश्लेषण किया था। यह बैक्टीरिया मायकोप्लाज़्मा समूह का था। इसका संश्लेषण करने के बाद इसे उन्होंने एक सम्बंधित प्रजाति की बैक्टीरिया कोशिका में आरोपित कर दिया और फिर इस नई कोशिका को कुछ इस तरह पुनर्जीवित किया कि उसका पूरा नियंत्रण इस बाहर से डाले गए डीएनए द्वारा होने लगा। यह एक बड़ी तकनीकी उपलब्धि थी और इसने जीन-चिकित्सा तथा जीनोम इंजीनियरिंग के भावी काम को प्रभावित किया। मगर इस बात में संदेह है कि इस अनुसंधान ने जीवन के जेनेटिक आधार की हमारी समझ में कोई खास इज़ाफा किया हो।

पिछले हफ्तों में वेंटर एक बार फिर सुर्खियों में रहे। उनके समूह ने ‘न्यूनतम ज़रूरी बैक्टीरिया जीनोम’ का संश्लेषण किया और उसे एक ग्राही कोशिका में डालकर उस कोशिका को जीवित किया। इसके लिए सबसे पहला काम तो यह परिभाषित करने का था कि ‘न्यूनतम’ जीनोम किसे कहेंगे। इसके बाद काफी तकनीकी दक्षता की आवश्यकता थी, जो यह समूह 2010 में हासिल कर चुका था। मीडिया में माना गया कि वेंटर के समूह ने एक कृत्रिम बैक्टीरिया की सृष्टि की है जिसमें एक भी फालतू जीन नहीं है।
इस तरह की प्रतिक्रिया के मद्देनज़र ‘न्यूनतम’ जीनोम की अवधारणा की थोड़ी खोजबीन ज़रूरी हो जाती है। क्या ऐसा ‘न्यूनतम’ जीनोम एक ही है या ऐसे कई ‘न्यूनतम’ जीनोम हो सकते हैं? यह अवधारणा वैध भी है या नहीं? चलिए, पहले चर्चा करते हैं कि बैक्टीरिया के जीनोम का निर्धारण कैसे होता है और न्यूनतम जीनोम के अध्ययन के हाल के इतिहास पर एक नज़र डालते हैं। इसके बाद पाठक स्वयं यह फैसला कर पाएंगे कि वेंटर के काम को लेकर मीडिया में मचा हो-हल्ला कितना उपयुक्त है।

बैक्टीरिया और उसका पर्यावरण
बैक्टीरिया एक कोशिकीय जीव होते हैं और शेष समस्त सूक्ष्मजीवों से अधिक संख्या में पाए जाते हैं। उनमें बहुत विविधता होती है। कुछ बैक्टीरिया हैं जो गर्म झरनों में फलते-फूलते हैं, तो कुछ बैक्टीरिया ठंडे मरुस्थलों में। कुछ हैं जो पौधों की जड़ों पर रहकर हमारा जीवन संभव बनाते हैं, तो कुछ मनुष्यों, जंतुओं और पौधों का जीवन तबाह कर देते हैं। फेहरिस्त बहुत लंबी है। इस विविधता के साथ जेनेटिक सामग्री की विविधता जुड़ी है। बैक्टीरिया जीनोम की साइज़ 150 जीन्स से लेकर 12,000 जीन्स तक हो सकती है। बहुत छोटे जीनोम वाले बैक्टीरिया सहजीवी होते हैं जिनके लिए अन्य बैक्टीरिया और/या किसी बड़े मेज़बान का सहारा अनिवार्य होता है। दूसरी ओर, बड़े जीनोम वाले बैक्टीरिया सर्वव्यापी होते हैं और अपेक्षाकृत जटिल जीवन शैली अपनाते हैं। वेंटर द्वारा बनाए गए न्यूनतम बैक्टीरिया जीनोम में लगभग 473 जीन्स हैं, जिसके चलते यह सबसे छोटे जीनोम में से एक अवश्य है मगर सबसे छोटा नहीं है।

बैक्टीरिया के जीनोम की साइज़ कैसे निर्धारित होती है? जीनोम में होता क्या है? किसी भी बैक्टीरिया के जीनोम का 90 प्रतिशत तो जीन्स होते हैं, जो प्रोटीन बनाने का फॉर्मूला प्रदान करते हैं। इनमें से कई प्रोटीन्स सामान्य शरीर क्रियाओं में लिप्त होते हैं - अर्थात पोषक पदार्थों का उपयोग करके ऊर्जा पैदा करना; छोटे-छोटे अणु बनाना जो कोशिका की रचना में जुड़ते हैं; और जो डीएनए व प्रोटीन जैसे पदार्थों के अंग बनते हैं। ये वे जीन्स हैं जो वास्तव में इन छोटे-छोटे अणुओं को विशाल कोशिका रचनाओं (जैसे कोशिका की दीवार) में जोड़ने में मदद करते हैं; डीएनए की प्रतिलिपियां बनाने में मदद करते हैं और कोशिका को विभाजित होकर नई कोशिकाएं बनाने में मदद करते हैं। कुछ अणु प्रोटीन व आरएनए बनाने में मदद करते हैं जो फिर अन्य प्रोटीन बनाने में भूमिका अदा करते हैं। कुछ प्रोटीन्स ऐसे होते हैं जो इन प्रक्रियाओं का नियमन करते हैं। और कई प्रोटीन्स ऐसे हैं जिनके बारे में हम कुछ नहीं जानते और ये जीवन के लिए आवश्यक हो सकते हैं। वेंटर के अनुसंधान ने इस बात को रेखांकित किया है।

कोशिका की सतह का निर्माण, आरएनए व प्रोटीन का संश्लेषण, डीएनए की प्रतिलिपि बनाना और उसके ज़रिए कोशिका का प्रजनन - ये ऐसे कार्य हैं जिनके बारे में कोई समझौता नहीं हो सकता। प्रत्येक कोशिका ये कार्य करती है और इस हिसाब से एक ‘न्यूनतम’ कोशिका को भी करना चाहिए। और ऐसा करने के लिए कोशिका को पोषक पदार्थों का उपयोग करके ऊर्जा पैदा करना पड़ेगी। यानी चयापचय को लेकर भी कोई समझौता नहीं हो सकता। हां, यह ज़रूर पसंद और परिस्थिति का मामला है कि कौन-से पोषक पदार्थों का उपयोग किया जाए। आजकल गाएं हमारे कचरे के ढेर में से काफी सारा सेल्यूलोज़ खाती हैं और उससे ऊर्जा पैदा कर लेती हैं। मनुष्यों में सेल्यूलोज़ को पचाने की क्षमता काफी सीमित होती है। कोई बैक्टीरिया आजीवन एक ही किस्म के पोषक पदार्थ पर ज़िन्दा रह सकता है। ऐसे बैक्टीरिया को तो मात्र इतना करना होगा कि वह इस इकलौते पोषक पदार्थ को ऊर्जा व अन्य सह-उत्पादों में तबदील करता रहे। एक अन्य बैक्टीरिया ऐसा हो सकता है जो दुनिया की सैर करता है; उसका सामना हज़ारों किस्म के पोषक पदार्थों से होगा और ज़रूरी होगा कि इन विविध पोषक पदार्थों का उपयोग करने के लिए उसके पास सैकड़ों तरह-तरह के प्रोटीन हों।
अर्थात ‘न्यूनतम’ कोशिका के चयापचयी घटक इस बात पर निर्भर करेंगे कि वह किस तरह के पर्यावरण में जीता है। ये पर्यावरण जैविक हो सकते हैं या अजैविक हो सकते हैं, अन्य बैक्टीरिया या अन्य सजीवों के साथ सहजीवन के हो सकते हैं। गौर कीजिए कि पृथ्वी पर प्राकृतवासों की बेशुमार विविधता को देखते हुए, ‘न्यूनतम’ जीनोम को परिभाषित करना मुश्किल होने लगा है। अर्थात, कोई एक ‘न्यूनतम बैक्टीरिया जीनोम’ संभव नहीं है बल्कि ऐसे कई न्यूनतम होंगे, और प्रत्येक किसी विशिष्ट परिस्थिति के लिए अनुकूलित होगा। दरअसल, स्वयं वेंटर ने दी वर्ज में स्वीकार किया था कि “प्रत्येक जीनोम संदर्भ-विशिष्ट होता है और पर्यावरण में उपलब्ध रसायनों पर निर्भर करता है। सचमुच न्यूनतम जीनोम जैसी कोई चीज़ नहीं होती।”

परिभाषा न्यूनतम की
न्यूनतम जीनोम को परिभाषित करने की इन ज़ाहिर समस्याओं के बावजूद यह सवाल वैज्ञानिकों और आम लोगों दोनों को लुभाता रहा है। पिछले बीस सालों में न्यूनतम बैक्टीरिया जीनोम को परिभाषित करने के कई प्रयास हुए हैं।
एक तरीका वह रहा है जिसे तुलनात्मक जीनोमिक्स कहते हैं। हम कई बैक्टीरिया का पूरा जीनोम जानते हैं। यह संभव है कि हम इनकी तुलना करके यह पता लगा सकें कि इन सबमें सामान्य चीज़ें क्या हैं। जीन्स का यह समूह न्यूनतम बैक्टीरिया जीनोम का द्योतक होगा। यदि हम और महत्वाकांक्षी हुए तो यह जानने की कोशिश कर सकते हैं कि समस्त जीवन का न्यूनतम जीनोम क्या होगा।
सबसे पहले जिन दो बैक्टीरिया के जीनोम का अनुक्रमण किया गया था वे काफी सरल थे। इनमें से एक मायकोप्लाज़्मा था, जिसका जीनोम ज्ञात बैक्टीरिया जीनोम में सबसे छोटा है। यही न्यूनतम होना चाहिए, नहीं? इन दो जीनोम की तुलना से पता चला था कि छोटे-से मायकोप्लाज़्मा जीनोम में पाए जाने वाले कम से कम आधे जीन्स दूसरे बैक्टीरिया के जीनोम में नहीं पाए जाते। आश्चर्य होना स्वाभाविक था। जब और भी नए-नए जीनोम्स का अनुक्रमण किया गया तो न्यूनतम जीनोम छोटे-से-छोटा होता गया। मुझे कोई आश्चर्य न होगा यदि यह पता चले कि सारे बैक्टीरिया में चंद दहाई जीन्स ही एक जैसे होते हैं। इन चंद जीन्स से लैस बैक्टीरिया के लिए जीना आसान नहीं होगा। तो, न्यूनतम बैक्टीरिया जीनोम छोटा-छोटा होते-होते हास्यास्पद बन गया।

तुलनात्मक जीनोमिक्स के ज़रिए हमें पता चला कि न्यूनतम जीनोम का निर्धारण करने में एक और कारक की भूमिका होती है। यह सही है कि आरएनए और प्रोटीन के संश्लेषण जैसी प्रक्रियाएं समस्त जीवन के लिए अनिवार्य हैं, मगर इन प्रक्रियाओं में शामिल जीन्स एक-जैसे नहीं होते, सिर्फ बैक्टीरिया को देखें तो भी ये जीन्स एक-जैसे नहीं होते। मशहूर जैव विकास विशेषज्ञ और जीनोम वैज्ञानिक यूजीन कूनिन ने 1990 और 2000 के दशक में कहा था कि न्यूनतम जीनोम को परिभाषित करने का काम ‘नॉन-आर्थोलोगस रिप्लेसमेंट’ की वजह से और भी पेचीदा हो जाता है। इसका अर्थ होता है कि एक समान प्रक्रियाओं को इतने अलग-अलग क्रम वाले प्रोटीन्स के द्वारा संपादित किया जाता है कि उन्हें किसी मायने में एक समान नहीं माना जा सकता। अर्थात, जिन प्रक्रियाओं को समस्त जीवन के लिए अनिवार्य माना जाता है, उनके लिहाज़ से भी एक सार्वभौमिक जेनेटिक आधार परिभाषित करना समस्यामूलक हो जाता है।

जैव रसायन का दार्शनिक तरीका
अब हमारा लक्ष्य ज़्यादा सीमित हो गया है। कई बैक्टीरिया जीनोम में जीवन के लिए अनिवार्य जीन्स होते हैं मगर काफी सारा कचरा भी होता है, जो पेचीदा जैव विकास प्रक्रिया की विरासत है। तो क्या किसी एक बैक्टीरिया के लिए हम यह पता कर सकते हैं कि उसके अपने जीवन के लिए अनिवार्य जीन्स का समूह क्या है? जीनोम इंजीनियरिंग की आधुनिक तकनीक हमें ऐसा करने की गुंजाइश देती है।
हम पहले ही देख चुके हैं कि तुलनात्मक जीनोमिक्स क्या है। और इस नई तकनीक को निकट सम्बंधी जीवों पर लागू किया जाए, तो हम काफी ठीक-ठाक ढंग से यह पता कर सकते हैं कि जीवन वृक्ष की इस शाखा के लिए कौन-से जीन्स अनिवार्य हैं। और तो और, हम प्रायोगिक रूप से गुणसूत्रों के हिस्सों को काटकर हटा सकते हैं ताकि यह पता कर सकें कि यह छंटाई उस जीव के ज़िंदा रहने पर असर डालती है या नहीं।
इस तरह का काफी सारा अनुसंधान ई. कोली नामक बैक्टीरिया पर किया गया है। हम जानते हैं कि इसके कुल लगभग 4-5 हज़ार जीन्स में से 300 से ज़्यादा जीन्स इसके ज़िंदा रहने के लिए अनिवार्य हैं (आम तौर पर प्रयोगशाला में उसे पनपाने के लिए प्रयुक्त पोषण-समृद्ध पर्यावरण में)। एक बार में एक जीन को हटाया जाता है, और आज तक किसी ने भी ऐसा कोई शोध प्रकाशित नहीं किया है जिसमें 300 जीन वाले ऐसे न्यूनतम ई. कोली को बनाने का प्रयास किया गया हो, जो प्रयोगशाला में जीवित रह सके। और 4000 गैर-अनिवार्य जीन्स को एक साथ हटाना भी कोई आसान काम नहीं है। न्यूनतम ई. कोली जीनोम को संभवत: वेंटर और उनके साथियों द्वारा विकसित विधि द्वारा शुरु से शुरु करके बनाया जा सकता है। मगर यह विवादास्पद है कि क्या ऐसा करने का कोई महत्व है।

ई. कोली के 15-20 प्रतिशत जीनोम को छांटकर अलग करने के प्रयास किए गए हैं, और न्यूनतम ई. कोली की ओर यह रास्ता प्रयोगशाला में काफी सफल रहा है। इसका अर्थ यह नहीं है कि यह फेरबदलशुदा ई. कोली ऐसी अन्य परिस्थितियों में भी ठीक-ठाक प्रदर्शन करेगा जिनमें वह कुदरती तौर पर जीता है। उदाहरण के लिए, एक कोशिकीय खमीर पर इसी तरह के प्रयोग तरह-तरह की परिस्थितियों में किए गए थे। इनसे पता चला कि कम से कम एक परिस्थिति में जीने के लिए उसके सारे जीन्स ज़रूरी हैं। अब क्या कहेंगे?
वेंटर के प्रयास इसी को विस्तार देते हैं - उन्होंने शुरुआत ही एक मायकोप्लाज़्मा के एक छोटे जीनोम से की। उन्होंने कई तकनीकों का उपयोग करके पता किया कि इसमें से कितना अनिवार्य है और कितना नहीं। इसके बाद उन्होंने मात्र अनिवार्य जीन्स वाला जीनोम बनाया। हालांकि यह एक उम्दा शोध का परिचायक है मगर इसे ‘न्यूनतम बैक्टीरिया जीनोम’ कहना, या ‘जीवन के लिए ज़रूरी’ जीन्स को परिभाषित करने की दिशा में ‘निर्णायक’ कदम कहना मेरे ख्याल में अतिशयोक्ति है।
संक्षेप में, यह सवाल जेनेटिक्स वैज्ञानिकों के लिए दिलचस्पी का विषय है, उतना ही दार्शनिक भी है कि क्या न्यूनतम जीनोम जैसी कोई चीज़ होती भी है या नहीं और यदि होती है तो उसे कैसे परिभाषित किया जाए। जो भी जवाब मिले उसे बैक्टीरिया के पर्यावरण की व्यापक विविधता के संदर्भ में ही परखा जाना चाहिए। इसमें यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि जैव विकास की प्रक्रियाएं एक ही जैव रासायनिक समस्या के लिए कई अलग-अलग जेनेटिक समाधान खोज लेती है। (स्रोत फीचर्स)