वैज्ञानिकों ने मनुष्य की आंतों में पलने वाले ऐसे बैक्टीरिया खोज निकाले हैं जो व्यक्ति के मूड को प्रभावित करते हैं। बोस्टन के नॉर्थवेस्टर्न विश्वविद्यालय के फिलिप स्ट्रेण्डविट्ज़ और उनके साथियों ने अमेरिकन सोसायटी फॉर माइक्रोबायोलॉजी की वार्षिक बैठक में बताया कि उन्होंने हाल ही में मनुष्य की आंत से एक बैक्टीरिया प्राप्त किया था जिसका नाम है ख़्ख्र्क1738। प्रयोगशाला में इस बैक्टीरिया को पनपाने की कोशिश की गई तो पता चला कि यह तभी पनपता है जब इसे गाबा नामक एक रसायन की खुराक मिले। गाबा का पूरा नाम गामा अमिनोब्यूटेरिक एसिड है और यह स्तनधारियों के तंत्रिका तंत्र में तंत्रिकाओं की उत्तेजना को कम करता है। गाबा शरीर की तंत्रिकाओं से मस्तिष्क में जाने वाले संकेतों का दमन करता है और इस तरह से मस्तिष्क शांत बना रहता है।
इसका मतलब है कि यह बैक्टीरिया अपनी वृद्धि के लिए गाबा का भक्षण करता है। ऐसे में शरीर में गाबा की कमी हो जाती है। यह देखा गया है कि गाबा की कमी होने पर अवसाद और मूड में चिड़चिड़ापन पैदा होता है।
2011 में चूहों पर किए गए एक प्रयोग में पता चला था कि एक अन्य किस्म का बैक्टीरिया (Lactobacillus rhamnosus) मस्तिष्क में गाबा की क्रिया को नाटकीय ढंग से प्रभावित करता है। इससे इस बात पर असर पड़ता है कि चूहे तनाव होने पर क्या प्रतिक्रिया देंगे। उस प्रयोग में शोधकर्ताओं ने देखा था कि यदि चूहों की वेगस तंत्रिका को निकालकर अलग कर दिया जाए तो यह असर नहीं होता।
स्ट्रेण्डविट्ज़ अब अन्य गाबा भक्षी बैक्टीरिया की तलाश कर रहे हैं ताकि मस्तिष्क पर उनके असर को देखा जा सके। उम्मीद है कि इस जानकारी के आधार पर अवसाद और दुश्चिंता जैसी मानसिक व्याधियों के लिए नए उपचार खोजे जा सकेंगे। (स्रोत फीचर्स)