दो प्रायमेट जंतुओं पर किया गया अध्ययन बताता है कि ये ऐसा भोजन ज़्यादा पसंद करते हैं जिसमें अल्कोहल की मात्रा थोड़ी ज़्यादा हो। अध्ययन के निष्कर्ष हाल ही में रॉयल सोसायटी ओपन साइन्स में प्रकाशित हुए हैं।
इससे पहले देखा गया था कि चिम्पैंज़ी ऐसे फूलों का रस पीते हैं जिसका थोड़ा किण्वन हो चुका हो। किण्वन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शर्करा को अल्कोहल में बदल दिया जाता है। मगर उस अध्ययन से यह स्पष्ट नहीं हुआ था कि क्या ये चिम्पैंज़ी ऐसे मकरंद की सक्रियता से तलाश करते हैं जिसमें अल्कोहल की मात्रा ज़्यादा हो। अब डार्टमाउथ कॉलेज के नथानियल डोमिनी और उनके साथियों ने इसी सवाल का जवाब हासिल करने के लिए प्रयोग किए हैं।

आये-आये लेमूर आम तौर पर सड़ती लकड़ी में से कीड़े-मकोड़े चुन-चुनकर खाता है। मगर बरसात के मौसम में वह एक ताड़ के पेड़ के मकरंद का भक्षण भी करता है। यह मकरंद कई बार थोड़ा किण्वित हो जाता है। लिहाज़ा इसमें थोड़ा अल्कोहल होता है। इसी प्रकार से स्लो लोरिस अधिकांशत: ताड़ का मकरंद पीता है जिसमें कई बार 3.8 प्रतिशत तक अल्कोहल होता है।
शोधकर्ताओं ने आये-आये और स्लो लोरिस को पांच अलग-अलग प्यालों में शकर और अल्कोहल के अलग-अलग अनुपात के मिश्रण पेश किए। इनमें लगभग उतना ही अल्कोहल था जितना प्राकृतिक परिस्थिति में ताड़ के मकरंद में पाया जाता है। तुलना के लिए एक प्याले में नल का पानी रखा गया था। प्रयोग के दौरान देखा गया कि आये-आये और स्लो लोरिस दोनों ही शराब-युक्त पेय पदार्थ को ज़्यादा तवज्जो देते हैं। उन्होंने साधारण पानी की अपेक्षा अल्कोहल युक्त पानी को लगभग दुगनी बार चुना।
इस प्रयोग में आये-आये ने तो कमाल कर दिया। प्याला खाली हो जाने के बाद भी वह अपनी लंबी-सी बीच वाली उंगली से और रस चाटने की कोशिश करता रहा। यानी वह आखरी बूंद तक छोड़ना नहीं चाहता था।

अब सवाल उठा कि अल्कोहल के प्रति यह कशिश क्यों? डार्टमाउथ कॉलेज के ही सेमुअल गोचमैन का कहना है कि अल्कोहल के सेवन का अपना फायदा है। एक तो यह है कि अल्कोहल की वाष्प आसानी से बनती है और इसके चलते इसके स्रोत को ढूंढना आसान होता है। दूसरा यह है कि अल्कोहल पाचन की क्रिया को धीमा करता है और वसा के संग्रहण में मदद करता है।
मज़ेदार बात यह है कि आये-आये में वह एंज़ाइम (अल्कोहल डीहाइड्रोजीनेस) पाया जाता है जो अल्कोहल को पचाने में सहायक होता है। यही एंज़ाइम इंसानों, चिम्पैंज़ियों और गोरिल्ला में भी पाया जाता है। बाकी जंतुओं में नशे की स्थिति नहीं बन पाती क्योंकि प्राकृतिक रूप से अल्कोहल बहुत कम मात्रा में उपलब्ध होता है जिसे यह एंज़ाइम संभाल लेता है। मनुष्यों ने तो कृत्रिम रूप से अल्कोहल बनाना सीख लिया है और बहुत अधिक मात्रा में इसका सेवन करके नशा करने लगे हैं। (स्रोत फीचर्स)