डॉ. अरविंद गुप्ते

मनुष्य में गर्भावस्था की अवधि लगभग 40 सप्ताह की होती है। कई बार बच्चे का जन्म इस अवधि से पहले ही हो जाता है। अवधि पूरी होने से जितना पहले बच्चे का जन्म होता है उतनी ही कठिनाइयों का सामना उसे करना पड़ता है। गर्भ के 23 सप्ताह से पहले जन्मे बच्चे का जीवित रहना लगभग असंभव होता है। यदि बच्चे का जन्म 23 सप्ताह के गर्भ या इसके तुरंत बाद हो जाए तो उसे बड़ी कठिनाई से जीवित रखा जा सकता है, किंतु उसके फेफड़े कमज़ोर होने के कारण उसे सांस लेने में कठिनाई होती है। इसी प्रकार उसका ह्रदय कमज़ोर होने के कारण पंप के द्वारा उसके शरीर में रक्त का बहाव बनाए रखना पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप उसके ह्रदय पर पड़ने वाला अत्यधिक दबाव जानलेवा हो सकता है। यदि इन सबके बावजूद भी बच्चा बच जाता है तो बाद के जीवन में उसे दिमागी कमज़ोरी या अंधत्व जैसी दिक्कतें हो सकती हैं।

अमेरिका के फिलाडेल्फिया स्थित बच्चों के अस्पताल में डॉ. एलन फ्लेक और उनके साथियों ने एक कृत्रिम गर्भाशय बनाया है और उन्हें उम्मीद है कि इसकी सहायता से समय से पहले जन्मे बच्चों को सफलतापूर्वक बचाया जा सकेगा और बाद के जीवन में उन्हें अपंगता का सामना नहीं करना पड़ेगा।

यह कृत्रिम गर्भाशय एक बड़े थैले के समान होता है जिसमें प्राकृतिक गर्भाशय के वातावरण जैसा वातावरण बनाया जाता है। इसमें एक ऐसा द्रव भरा होता है जो वास्तविक गर्भाशय के समान भ्रूण के फेफड़ों में द्रव को बनाए रखता है। भ्रूण की नाल से दो नलियां जोड़ दी जाती हैं। एक नली उसे पोषण और ऑक्सीजन युक्त रक्त पहुंचाती है और दूसरी नली उस रक्त को बाहर लाती है जिसमें से पोषक पदार्थ और ऑक्सीजन भ्रूण के द्वारा ले लिए गए हैं। कृत्रिम गर्भाशय में भ्रूण को रखे जाने के बाद उसे इस प्रकार सील कर दिया जाता है कि उसमें सूक्ष्मजीव वगैरह पहुंचकर संक्रमण पैदा न कर सकें।

इस कृत्रिम गर्भाशय का परीक्षण भेड़ के भ्रूण के साथ किया गया और इसके परिणाम काफी उत्साहजनक रहे हैं। किंतु अभी कई परीक्षण और किए जाने के बाद ही मनुष्य के लिए कृत्रिम गर्भाशय के उपयोग सम्बंधी अधिकार मिलेंगे और इस तकनीक के प्रचलित होने के लिए अभी काफी लंबा इंतज़ार करना पड़ेगा।
विकसित देशों में होने वाली खोजों के साथ एक समस्या यह है कि उनके विकासशील देशों तक पहुंचने में लंबा समय लग जाता है। इसके अलावा, आम तौर पर ये तकनीकें इतनी महंगी होती हैं कि विकासशील देशों में ये प्राय: गरीबों की पहुंच के बाहर ही होती हैं। (स्रोत फीचर्स)