एस. अनंतनारायणन

पानी पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और यह सारे जीवन का आधार है। यही पानी ज़बर्दस्त बहुरूपता प्रदर्शित करता है। प्राकृतिक रूप से यह वायुमंडल में वाष्प के रूप में, नदियों और महासागरों में तरल रूप में और ठोस बर्फ के रूप में मौजूद है। इसका ठोस रूप भी अठारह अलग-अलग रचनाओं में मिलता है।

हालांकि बर्फ अपने इन सभी रूपों में H2O ही रहता है, परंतु उच्च दबाव की स्थिति में यह संभावना होती है कि पानी के हाइड्रोजन और ऑक्सीजन घटक अलग-अलग हो जाएं। ऐसा सोचा गया है कि पानी के ऐसे रूप विशालकाय ग्रहों के भीतर पाए जा सकते हैं। और कुछ सैद्धांतिक अध्ययन भी किए गए हैं कि इस तरह के बर्फ के अनुमानित गुण क्या होंगे। लॉरेंस लिवरमोर प्रयोगशाला, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और रोचेस्टर के वैज्ञानिकों ने नेचर फिज़िक्स जर्नल में बताया है कि उन्होंने लेज़र संचालित संपीड़न करके उच्च दबाव पर बर्फ की ऐसी अवस्था बनाने का प्रयास किया है।

पानी की सबसे आश्चर्यजनक और सुपरिचित विशेषता यह है कि जिस ढंग से तरल से हिमांक (बर्फ बनने का तापमान) पर पहुंचते समय इसके घटक व्यवस्थित होने लगते हैं। अन्य वस्तुओं की तरह, तापमान में कमी के साथ, पानी का आयतन भी कम हो जाता है, लेकिन 4 डिग्री सेल्सियस पर पहुंचते ही स्थिति बदल जाती है। 4 डिग्री सेल्सियस से लेकर बर्फ बनने तक पानी फैलता है, यानी उसका घनत्व कम होता है। और शून्य डिग्री सेल्सियस पर जमने के बाद, घटते तापमान के साथ इसके कई अलग-अलग क्रिस्टलीय रूप नज़र आते हैं।

हमारा जाना-पहचाना सामान्य बर्फ षट्कोणीय क्रिस्टल के रूप में रहता है। ये षट्कोणीय क्रिस्टल विविध तरीकों से व्यवस्थित हो सकते हैं। इस तरह से बर्फ की पपड़ियां (हिमकण या स्नो-फ्लेक्स) बनते हैं। तापमान कम होने के साथ बर्फ का अगला रूप घनाकार क्रिस्टल का बना होता है जो बर्फियों के समान जमे होते हैं। बर्फ का यह रूप ऋण 53 डिग्री सेल्सियस से कम पर बनता है। इसे यदि ऋण 33 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाए तो यह वापिस सामान्य बर्फ में बदल जाता है। बर्फ का अगला रूप नियमित रूप से समचतुर्भुज (रोम्बोहेड्रल) आकार का  होता है। यह सामान्य बर्फ को ऋण 83 डिग्री सेल्सियस से नीचे ठंडा करके संपीड़ित करने (दबाने पर) पर बनता है।

फिर बर्फ के ऐसे भी रूप होते हैं जो उच्च दबाव पर संपीड़न के द्वारा बनते हैं और ये पानी से अधिक घने होते हैं। जब थोड़ा ठंडा किया जाए और लगभग 3,000 वायुमंडलीय दाब डाला जाए, तो बर्फ चतुष्कोण (टेट्रागोनल) क्रिस्टल का रूप लेता है, जो उच्च दबाव पर बनने वाले सभी रूपों में सबसे हल्का होता है।

बर्फ का एक प्रकार ऐसा भी है जो गैर-क्रिस्टलीय (रवाहीन) है। यह तीन रूपों - कम घनत्व, उच्च घनत्व और बहुत उच्च घनत्व - में पाया जाता है। जब उच्च घनत्व के रवाहीन बर्फ को 8,000 से अधिक वायुमंडलीय दबाव में रखकर गर्म किया जाता है और धूल जैसे कण मौजूद हों तो यह एक त्रिआयामी रोम्बोहेड्रल क्रिस्टल का रूप ले लेता है। मात्र ऋण 20 डिग्री सेल्सियस और 5,000 वायुमंडलीय दबाव पर हमें एक आयताकार प्रिज़्म की संरचना मिलती है। ऋण 3 डिग्री सेल्सियस और 1 करोड़ वायुमंडलीय दाब पर एक चतुष्कोण (टेट्रागोनल) संरचना मिलती है।

इस तरह, बर्फ विभिन्न तापमान और दबाव पर विभिन्न क्रिस्टल रूप लेता है। हालांकि, इन सभी रूपों में, धनावेशित हाइड्रोजन H+ और ऋणावेशित O- के बीच विद्युत आकर्षण बल पानी के अणुओं को एक साथ रखने में सक्षम होते हैं और उनका व्यवहार भी सामान्य पानी की तरह कुचालक होता है। किंतु करोड़ों वायुमंडलीय दबाव जैसी चरम स्थितियों में, पानी के अणुओं के घटकों का विस्थापन इतना ऊर्जावान हो सकता है कि वह विद्युत बलों से अधिक हो जाता है और H+ और O- आयन अलग-अलग हो जाते हैं। यह भी पानी का एक रूप है जिसे ‘आयनिक पानी’ कहा जाता है। यह अब तक एक सैद्धांतिक अटकल है जिसका अस्तित्व होना चाहिए। अनुमान लगाया है कि इससे भी उच्च दबाव पर, ‘अति-आयनिक पानी’ बनाया जा सकता है, जहां ऑक्सीजन क्रिस्टलित हो जाएगा और हाइड्रोजन ऑक्सीजन परमाणुओं की जाली में तैरते रहेंगे।

पानी के इस रूप को विद्युत का चालक होना चाहिए। अर्थात नेप्च्यून और यूरेनस जैसे विशाल बर्फीले ग्रहों के भीतर की वास्तविकता वास्तव में असामान्य होना चाहिए। इसलिए सैद्धांतिक अनुसंधान के विभिन्न चरणों की जांच करके पानी की अति-आयनिक अवस्था के अनुमानों, या विशाल ग्रहों के भीतर हलचल को सत्यापित करने के तरीके विकसित करना महत्वपूर्ण है। यह अनुमान लगाया जाता है कि अति-आयनिक पानी लोहे की तरह सख्त और चमकदार पीले रंग का होगा।

नेचर फिज़िक्स में प्रकाशित पेपर में हीरे से बनी तख्ती पर उच्च दबाव में पानी को संपीड़ित करने के अब तक के काम को प्रस्तुत किया गया है। लेकिन यह भी बताया गया है कि अति-आयनिक अवस्था में अपेक्षित उच्च विद्युत चालकता का स्पष्ट सत्यापन संभव नहीं हो पाया था। अत्यधिक दबाव भी पानी को स्थिर अति-आयनिक अवस्था में लाने में सक्षम नहीं था क्योंकि दबाव में वृद्धि बहुत तेज़ गति से की गई थी। इसके विपरीत, वर्तमान अध्ययन में, लेज़र द्वारा संपीड़न को विभिन्न चरणों में किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप बहुत अधिक विद्युत चालकता देखी गई। चालकता को मापने के लिए उपयोग की जाने वाली इकाई सीमेंस है और पानी के लिए व्यावहारिक इकाई माइक्रो-एस या मिली-एस है। वर्तमान परीक्षणों में चालकता लगभग 30 एस प्रति से.मी. तक देखी गई और गुंजायमान संक्षोभ परीक्षणों में यह 150 एस प्रति से.मी. तक आई।

पेपर के अनुसार केवल उच्च चालकता उत्पन्न हो जाने से यह प्रमाणित नहीं होता कि अति-आयनिक अवस्था प्राप्त हो गई है क्योंकि हो सकता है कि उच्च चालकता धनावेशित हाइड्रोजन परमाणु या प्रोटॉन की वजह से नहीं बल्कि इलेक्ट्रॉन के प्रवाह के कारण पैदा हुई हो। इसलिए आगे और अध्ययन किया गया, जिसमें उन स्थितियों का निरीक्षण किया गया। इस प्रकार सेकुल मिलाकर, नया डैटा ग्रहों की आंतरिक परिस्थितियों में जल-बर्फ में अति-आयनिक विद्युत संचालन का प्रायोगिक साक्ष्य प्रदान करता है।

पेपर के अनुसार, “सौर मंडल में H और O की बहुतायत, तथा H2O अणुओं की स्थिरता को देखते हुए, पानी ग्रह निर्माण की एक महत्वपूर्ण इकाई हो सकती है।” भविष्य में खगोलीय अवलोकन और चरम-अवस्था परीक्षणों में सुधार होगा, ग्रहों के अवयवों के मूल गुणों के साथ ग्रहों की मॉडलिंग करके बर्फीले ग्रहों के निर्माण, संरचना और विकास की विविधता की बेहतर समझ पैदा हो सकेगी। (स्रोत फीचर्स)