ऑक्सीजन का महत्व तो हम सभी जानते हैं। पृथ्वी पर मौजूद हवा सांस लेने योग्य है क्योंकि इसमें पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन है। मगर वायुमंडल में इतनी ऑक्सीजन सदा से नहीं रही है। वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा तभी बढ़ी थी जब करीब 47 करोड़ वर्ष पहले वनस्पति ने पानी से निकलकर धरती पर जड़ें जमाई थीं।
दरअसल तात्विक रूप में ऑक्सीजन पृथ्वी के वायुमंडल में 2.4 अरब वर्ष पहले प्रकट हुई थी। इसे महाऑक्सीकरण घटना कहते हैं। मगर उस समय यह बहुत कम मात्रा में ही थी। आजकल वायुमंडल में जितनी ऑक्सीजन पाई जाती है वह स्तर तो मात्र लगभग 40 करोड़ वर्ष पहले स्थापित हुआ था। और इसके बाद ही पृथ्वी पर बड़े-बड़े जंतुओं का विकास संभव हुआ था। तो वैज्ञानिकों के बीच यह बहस चलती रहती है कि इतनी मात्रा में ऑक्सीजन कैसे और कहां से आई थी।
आजकल हम जिस हवा में सांस लेते हैं उसमें 78 प्रतिशत नाइट्रोजन, 21 प्रतिशत ऑक्सीजन के अलावा शेष 1 प्रतिशत में आर्गन, कार्बन डाईऑक्साइड, जल वाष्प तथा अन्य गैसें पाई जाती हैं।

एक्सेटर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने वर्तमान में मौजूद या अतीत में मौजूद रहे पेड़-पौधों को आधार बनाकर कंप्यूटर अनुकृति तैयार करके यह समझने की कोशिश की है कि शुरुआती ज़मीनी वनस्पतियों ने ऑक्सीजन के निर्माण में क्या योगदान दिया है।
ज़मीन पर जड़ें जमाने वाले पहले-पहले पादप सरल ब्रायोफाइट थे। ब्रायोफाइट ऐसे पौधे होते हैं जिनमें तरल पदार्थों (पानी व खनिज लवणों) को पूरे शरीर में पहुंचाने के लिए नलिकाएं नहीं होतीं। इस जानकारी को लेकर बनाई गई कंप्यूटर अनुकृति के आधार पर स्पष्ट हुआ कि पृथ्वी पर ऑक्सीजन का वर्तमान स्तर 40 करोड़ वर्ष पहले एक किस्म के ब्रायोफाइट्स (मॉस) की गतिविधियों के कारण बना होगा। मॉस को आप दीवार पर उगने वाली काई के रूप में जानते ही हैं। इसके बाद वाहक ऊतक वाले पेड़-पौधों का विकास हुआ और इसने पृथ्वी पर ऑक्सीजन चक्र को स्थायित्व प्रदान किया।
ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने से एक ओर तो हवा सांस लेने योग्य हुई, साथ ही इसने ओज़ोन परत को भी जन्म दिया जो पृथ्वी के आसपास एक सुरक्षात्मक आवरण बनाती है। यह आवरण जीवन को पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा प्रदान करता है। (स्रोत फीचर्स)