डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

आम का मौसम शुरु होते ही यह बहस भी शु डिग्री हो जाती है कि सबसे अच्छी किस्म का आम कौन-सा है। मेरा परिवार दावा करता है कि बेगनपल्ली या बेनीशान लाजवाब है जबकि मेरे सम्बंधी परिवार का दावा है कि रत्नागिरि या अल्फांसो ही सबसे अच्छे हैं। और मेरे यूपी वाले दोस्त दसेरी को सबसे अच्छा मानते हैं।
यह बहस लगभग वैसी ही है जैसी वाइन को लेकर चलती है। यह न तो कभी खत्म होगी, न सुलझेगी क्योंकि भारत में हज़ार से ज़्यादा किस्मों के आम मिलते हैं और फेहरिस्त साल-दर-साल लंबी होती जा रही है। यह ज़बरदस्त विविधता इसलिए है क्योंकि आम की कलम लगाना बहुत आसान है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तीन बेहतरीन संस्थान आमों के शोध में लगे हुए हैं: लखनऊ में केंद्रीय अर्धकटिबंधीय फलोद्यान संस्थान, बैंगलुरु में भारतीय बागवानी शोध संस्थान और तेलंगाना के सांगारेड्डी में फल शोध केंद्र। इनमें से प्रत्येक संस्थान पिछले कई दशकों से आम के पेड़ और फलों पर बढ़िया काम कर रहे हैं।

इनके अलावा पूसा में राष्ट्रीय पादप जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र द्वारा आम के पेड़ के बुनियादी जीनोम को समझने के लिए उसके जीनोम का विश्लेषण किया जा रहा है। एक पढ़ने योग्य शोधपत्र डॉ. नगेन्द्र सिंह और उनके साथियों द्वारा इंडियन जर्नल ऑफ दी हिस्ट्री ऑफ साइंस के हाल ही के अंक में प्रकाशित हुआ है। शीर्षक है आम की उत्पत्ति, विविधता और जीनोम श्रृंखला। यह इंटरनेट पर मुफ्त में उपलब्ध है।
यह पर्चा बताता है कि आम के पेड़ की मूल उत्पत्ति पक्के तौर पर स्थापित नहीं हुई है। मूल उत्पत्ति को लेकर विभिन्न दावे किए गए हैं: जैसे दक्षिण-पूर्व एशिया, असम-बर्मा क्षेत्र, या शायद मेघालय में पश्चिमी गारो घाटी में दामलगिरी के पास। मेघालय में उत्पत्ति का दावा लखनऊ के बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने किया है। उन्होंने वहां पेलियोसीन काल की तलछटों की कार्बनीकृत आम की पत्तियों के जीवाश्मों का विश्लेषण किया है। इसके साथ ही दावा किया गया है कि आम की उत्पत्ति और विरासत भारत की है। हालांकि पेड़ के डीएनए की जीनोम श्रृंखला के अध्ययन से मूल उत्पत्ति स्थापित करने में मदद मिलनी चाहिए मगर मामला अभी साफ नहीं हुआ है। हालांकि आम का जीनोम छोटा है (केवल 4390 लाख क्षार लंबा) मगर तथाकथित हेटेरोज़ायगोसिटी मामले को पेचीदा बना देती है। फिर भी हम उम्मीद करते हैं कि मामला जल्द सुलझ जाएगा।
यदि आप हमारे महाकाव्यों, कविताओं और ऐतिहासिक ग्रंथों को पढ़ें, तो साफ हो जाता है कि आम भारतीय मूल का फल है। वाल्मिकी ने रामायण में अयोध्या में आम के पेड़ के बारे में लिखा था। बौद्ध विद्वान और यायावर आम के पेड़ को भारत से दक्षिण पूर्वी एशिया और चीन ले गए थे। फारस के निवासी और पुर्तगाली इसे अफ्रीका और ब्राज़ील और शायद वेस्ट इंडीज़ तक भी ले गए थे। हालांकि आम को इतनी दूर-दूर के स्थानों पर खरीदकर खाया जा सकता है, मगर इनमें से कोई भी स्वाद, मिठास, रसीले गूदे और अद्भुत रंग के मामले में भारतीय आम से उन्नीस ही साबित होगा।

हाल ही में हम सांगारेड्डी के फल अनुसंधान केंद्र गए थे जहां डॉ. ए. किरण कुमार, डॉ. एस. वेंकटेश और डॉ. पी. महेश कुमार ने हमें वहां का भ्रमण कराया। और साथ ही उन्होंने हमें डॉ. ए. भगवान और अन्य द्वारा लिखित उम्दा किताब की एक प्रति भी दी। यह किताब आम की विभिन्न किस्मों पर हुए शोध से सम्बंधित है। इस समूह ने व्यापक और प्रत्यक्ष रूप से उपयोगी अनुसंधान किया है। उन्होंने आम की 477 किस्मों का अध्ययन करके उनकी सूची तैयार की है। साथ ही कुछ स्वादिष्ट संकर प्रजातियां भी तैयार की हैं (रुक्मणी व नीलम के संकरण से मंजीरा और नीलम व बेनीशान के संकरण से नीलीशान)। इसके अलावा कई आकर्षक नाम वाली अन्य किस्में भी विकसित की हैं (जैसे लाल सुंदरी, नाज़ुक बदन)। इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि उन्होंने पौध-प्रसार तकनीकों का, संकरण व पेड़ को पुष्पविहीन करके बेमौसम फल प्राप्त करने की तकनीकों का मानकीकरण किया है। आम के साथ बैंगन व प्याज़ की फसल, और आम के पेड़ की शाखाओं को नियमित रूप से काटकर, स्वयं उसी पेड़ पर कलम लगाकर उसकी आयु बढ़ाने और पैदावार बढ़ाने की दिशा में काम किया है। अनुसंधान को मैदानी जामा पहनाने का ही परिणाम है कि आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में आम का रकबा बढ़ा है और भारत में सबसे अधिक - 4.5 लाख हैक्टर - हो गया है। और पैदावार है 8.6 टन प्रति हैक्टर। अनुसंधान के नतीजों को प्रयोगशाला-से-ज़मीन तक पहुंचाने से क्षेत्र के किसान सीधे तौर पर फायदा पा रहे हैं।

आम को फलों का राजा क्यों कहते हैं? यह केवल स्वाद, खूशबू, मिठास और रस की बात नहीं है। आम वाकई बहुत पौष्टिक है। कुछ लोग अच्छी सेहत के लिए रोज़ाना एक आम खाने के 17 कारण गिनाएंगे। एक कप आम (लगभग 200 ग्राम) में 100 कैलोरी, विटामिन सी, ए और कई बी विटामिन की उच्च मात्रा, अच्छे प्रोबायोटिक फाइबर और पोटेशियम व मैग्नीशियम अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। सिर्फ फल नहीं, कहते हैं इसकी पत्तियां भी सेहत के लिए लाभदायक हैं। बताते हैं कि आम की पत्तियों का काढ़ा इंसुलिन के स्तर का नियमन करने में मदद करता है।
यह भी एक कभी खत्म न होने वाली बहस है कि फल का छिल्का खाना चाहिए या नहीं। तमिल लोग छिल्कों को खाते हैं जबकि उत्तर भारतीय छिल्का फेंक देते हैं। छिल्कों में पोषण, पाचक एंज़ाइम्स, एंटीऑक्सीडेंट और कोलेस्ट्रॉल कम करने वाले यौगिक होते हैं। अलबत्ता, छिल्कों का स्वाद हमेशा लुभावना नहीं होता है। मेरे पिताजी हमेशा आम के छिल्के खाना पसंद करते थे जबकि मेरी पत्नी नहीं खाती। इस पर बहस तो चलती रहेगी। यही कहा जा सकता है कि आपको पसंद है तो खाइए और नहीं है तो मत खाइए। (स्रोत फीचर्स)