एक शोध पत्र में बताया गया है कि वायरस संक्रमण का असर इस बात पर निर्भर करता है कि आपका वायरस से संपर्क दिन के किस समय पर हुआ था। शरीर की दैनिक लय के अध्ययन से पता चला है कि व्यक्ति दिन के कुछ समयों पर संक्रमण के प्रति ज़्यादा संवेदनशील होता है।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अखिलेश रेड्डी और उनके साथियों ने कुछ चूहों का संपर्क हर्पीज़ वायरस से अलग-अलग समय पर करवाया। पता चला कि उन चूहों में वायरस 10 गुना ज़्यादा रफ्तार से संख्या वृद्धि करता है जिनका वायरस से संपर्क दिन के अंत यानी शाम के समय में हुआ था बनिस्बत उन चूहों के जिनका संपर्क दिन के शु डिग्री में हुआ। रेड्डी का कहना है संक्रमण का वक्त बीमारी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
रेड्डी की टीम ने ऐसे ही प्रयोग कुछ ऐसे चूहों पर भी किए जिनकी कुदरती शारीरिक घड़ी अस्त-व्यस्त हो चुकी थी। ऐसे चूहों में वायरस का प्रसार कहीं अधिक तेज़ी से हुआ चाहे संपर्क का समय कुछ भी रहा हो। यह परिणाम उन लोगों के लिए चिंताजनक है जिनकी शारीरिक घड़ी बिगड़ी हुई है।
रेड्डी व उनके साथियों का मत है कि शिफ्ट में काम करने वाले लोगों के लिए यह एक चेतावनी है। वे कभी रात में जागते हैं, तो कभी दिन में। परिणामस्वरूप उनकी शारीरिक घड़ी गड़बड़ा जाती है। ये लोग वायरल रोगों के प्रति ज़्यादा संवेदनशील होते हैं। टीम के मुताबिक जब भी फ्लू का टीका देने की बात हो, तो शिफ्ट वर्कर्स को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। गौरतलब है कि फ्लू एक वायरल रोग है। वैसे भी यह जानी-मानी बात है कि शिफ्ट वर्कर्स संक्रमणों के प्रति अधिक कमज़ोर होते हैं। (स्रोत फीचर्स)