डॉ. विजय कुमार उपाध्याय

क्रोमियम कठोर तथा इस्पात की तरह उजले रंग का धात्विक तत्व है। इसका परमाणु भार 52, परमाणु संख्या 24, घनत्व 7.1 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर, गलनांक 1930 डिग्री सेल्सियस व क्वथनांक 2482 डिग्री सेल्सियस है।
अन्य प्रमुख धातुओं की तुलना में क्रोमियम का इतिहास काफी नया है। इसकी खोज अट्ठारवीं शताब्दी के अन्त में  फ्रांस के एक रसायनविद लुई निकोला वॉकलिन द्वारा की गई थी हालांकि मोटे तौर पर इस तत्व का अनुमान कुछ समय पहले ही लगा लिया गया था।
सन 1766 में रूस के पीटर्सबर्ग में रसायन शास्त्र के एक प्रोफेसर ई. लेमान ने यूराल क्षेत्र की बेरेजोब खान में एक नए प्रकार का खनिज पाया जिसमें काफी मात्रा में सीसा (लेड) मौजूद था। यह खान कैथरिनबर्ग (इस नगर का आधुनिक नाम स्वर्दलोव्स्क है) के निकट स्थित थी। कुछ वर्षों के बाद पेल्लास नामक भूविज्ञानवेत्ता ने इस क्षेत्र का दौरा किया। उन्होंने पाया कि बेरेजोब खान में सोना, चांदी तथा सीसे के अयस्कों के अलावा लाल रंग का एक विचित्र लेडयुक्त खनिज निकाला जा रहा है। इस प्रकार का खनिज रूस में पहले कभी नहीं पाया गया था। यह खनिज कई रंगों में उपलब्ध था। यह भारी होने के साथ-साथ अपारदर्शी था। कभी-कभी इस खनिज के बेडौल पिरामिड क्वार्ट्ज़ में जड़े हुए पाए जाते जो मणियों के समान चमकते थे। इस खनिज को चूर्ण करने पर पीले रंग का सुन्दर पिगमेंट प्राप्त होता था। शुरू-शुरू में इस नए खनिज का नाम ‘साइबेरियन लाल लेड’ रखा गया। परन्तु कुछ ही समय के बाद इसका नाम रख दिया गया ‘क्रोकॉइट’।

अट्ठारवीं शताब्दी के अंत में पेल्लास इस नए खनिज का एक नमूना पेरिस ले गए। वहां उस काल के प्रसिद्ध रसायनविद लुई निकोला वॉकलिन ने उस नमूने का विस्तृत अध्ययन शु डिग्री किया। उन्होंने क्रोकॉइट के इस नमूने को पीसकर उसके चूर्ण को पोटेशियम कार्बोनेट के विलयन में उबाला। इसके फलस्वरूप एक कार्बोनेट तथा पीले रंग का एक विलयन प्राप्त हुआ। जब इस विलयन में एक मर्क्यूरिक लवण मिलाया गया तो लाल रंग का अवक्षेप प्राप्त हुआ। जब इस अवक्षेप की प्रतिक्रिया एक लेड लवण के साथ कराई गई तो पीला अवक्षेप प्राप्त हुआ। जब उस विलयन में स्टैनस क्लोराइड मिलाया गया तो विलयन का रंग हरा हो गया। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ प्रतिक्रिया कराकर लेड को अवक्षेपित कर लिया गया तथा बचे हुए घोल को सुखाकर लाल क्रिस्टल प्राप्त किए गए। इन लाल क्रिस्टलों में कार्बन मिलाकर ग्रेफाइट के क्रुसिबल में काफी उच्च तापमान पर तपाया गया। प्रयोग समाप्त होने पर क्रुसिबल में धूसर रंग की धात्विक सुइयां प्राप्त हुईं। यह एक नया तत्व था।
अब प्रश्न उठा कि इस नए तत्व का नाम क्या रखा जाए? वॉकलिन के एक मित्र ने इस नए तत्व का नाम सुझाया ‘क्रोमियम’। यह शब्द ग्रीक भाषा के एक शब्द ‘क्रोमा’ से सम्बंधित था जिसका अर्थ होता है ‘रंग’। इस सुझाव के पीछे कारण यह था कि इस नए तत्व के भिन्न-भिन्न यौगिक अलग-अलग रंगों में मिलते है। रंग के अर्थ में ‘क्रोम’ शब्द बहुत पहले से ही प्रचलित था तथा इस उपसर्ग को रंग से सम्बंधित कई शब्दों से जोड़ा जाता था। वॉकलिन ने अपने मित्र द्वारा सुझाए गए नाम को मानकर इस नए तत्व का नामकरण ‘क्रोमियम’ कर दिया।
कुछ ही समय बाद फ्रेंच साइंस एकेडमी ने वॉकलिन द्वारा खोजे गए इस नए तत्व के लिए ‘क्रोमियम’ नाम की मान्यता प्रदान कर दी। उसके बाद यह नाम पूरे संसार में प्रचलित हो गया।

वॉकलिन द्वारा खोजा गया यह नया तत्व बहुत ही उपयोगी साबित हुआ। इसके उच्च गलनांक, अत्यधिक मज़बूती तथा अन्य धातुओं के साथ मिश्र धातु बनाने की क्षमता को देखकर धातुविदों ने इसमें काफी रुचि दिखाई। आजकल क्रोमियम का सर्वाधिक उपयोग धात्विकी के क्षेत्र में किया जा रहा है। अन्य क्षेत्रों में भी इसकी उपयोगिता साबित हुई है।
क्रोमियम ताप एवं विद्युत का उत्तम चालक साबित हुआ है। यह अधिकांश धातुओं के समान काफी चमकदार है। इस धातु की एक विशेषता यह है कि 370 डिग्री सेल्सियस तापमान पहुंचने पर इसके कई गुण परिवर्तित हो जाते हैं। इस तापमान पर इसकी विद्युत चालकता, रेखीय प्रसार गुणांक तथा विद्युत वाहक बल में अचानक परिवर्तन आ जाते हैं। इस तापमान पर इसका प्रत्यास्थता गुणांक निम्नतम हो जाता है। इस धातु का सबसे बड़ा अवगुण यह है कि इसमें अल्प अशुद्धि की उपस्थिति रहने पर भी यह भंगुर हो जाता है।
क्रोमियम युक्त मिश्र धातुओं में कई प्रकार की खूबियां पाई जाती हैं। इस्पात में यदि अल्प परिमाण में भी क्रोमियम मिला रहता है तो इसका जंगरोधी गुण बढ़ जाता है। जंगरोधी इस्पात के निर्माण हेतु लोहे में 18 प्रतिशत क्रोमियम तथा 10 प्रतिशत निकेल मिलाया जाता है। जापानी धातुविदों ने क्रोमियम, एल्युमिनियम तथा लोहे को मिलाकर एक नई मिश्र धातु बनायी है जिसमें साधारण इस्पात की तुलना में ध्वनि प्रसार सौवें भाग से भी कम है। इस कारण इस मिश्र धातु का उपयोग खिड़कियों तथा दरवाज़ों के निर्माण में किया जाता है। ऐसी खिड़कियों तथा दरवाज़ों को कितना भी ज़ोर से क्यों न बंद किया जाए उनमें आवाज़ नहीं होती।

इस्पात को उच्च तापमान तक गर्म करने पर प्राय: उनकी सतह पर पपड़ी जम जाती है। कारखानों में इस्पात से निर्मित कई मशीनों को उच्च तापमान पर काम करना पड़ता है। पपड़ी जमने से ये मशीनें धीरे-धीरे खराब होने लगती हैं तथा कुछ समय बाद बेकार हो जाती हैं। इस समस्या से निपटने के लिए इस्पात में 25 से 30 प्रतिशत तक क्रोमियम मिला दिया जाता है। इस प्रकार के इस्पात से बने कल पुर्जें 1000 डिग्री सेल्सियस तापमान तक अच्छी तरह काम करते हैं और उन पर पपड़ी नहीं जमती।
भूपटल में क्रोमियम की प्रचुरता 122 भाग प्रति दस लाख आंकी गई है। इसका सर्वप्रमुख अयस्क है क्रोमाइट जो रासायनिक संघटन के दृष्टिकोण से क्रोमियम और लोहे का ऑक्साइड है। इसका रंग काला होता है तथा वर्ण रेखा (स्ट्रीक) भी काली होती है। मो पैमाने पर इसकी कठोरता 4.5 तथा आपेक्षिक घनत्व 4.5-4.7 के बीच है। क्रोमियम के अन्य खनिजों में शामिल हैं डोब्रीलाइट, इस्कोलाइट, स्टिक्टाइट तथा क्रोक्वाइट इत्यादि।
वर्तमान समय में विश्व स्तर पर क्रोमाइट का कुल वार्षिक उत्पादन लगभग 172 लाख मीट्रिक टन है। इसका सबसे अधिक उत्पादन रूस में किया जाता है। इस देश में संसार के कुल उत्पादन का लगभग 28 प्रतिशत प्राप्त होता है। इस देश में क्रोमाइट मुख्य रूप से यूराल पर्वत क्षेत्र में पाया जाता है। क्रोमाइट की प्राप्ति के दृष्टिकोण से दूसरे स्थान पर है दक्षिण अफ्रीका। यहां प्रति वर्ष लगभग 18 लाख मीट्रिक टन क्रोमाइट का खनन किया जाता है। क्रोमाइट उत्पादन में तीसरे स्थान पर है अल्बानिया। यहां प्रति वर्ष लगभग छ: लाख मीट्रिक टन क्रोमाइट का खनन किया जाता है। क्रोमाइट का उत्पादन करने वाले अन्य प्रमुख देशों में शामिल हैं ज़ाम्बिया, ज़िम्बाब्वे, यूनान, फिलीपाइन्स, क्यूबा, युगोस्लाविया, जापान, ब्राज़ील तथा भारत। फ्रांसीसी भूवैज्ञानिकों ने सूडान के किनारे लाल सागर की पेंदी में एक गड्ढे का पता लगाया है जिसकी गहराई लगभग 2200 मीटर है। इस गड्ढे में जल का तापमान बहुत ऊंचा है। इस जल के विश्लेषण से पता चला है कि यह गड्ढा कई प्रकार के खनिजों से भरा हुआ है जिनमें क्रोमियम लोहा,सोना तथा मैंगनीज इत्यादि धातुएं काफी परिमाण में पाई गई हैं।
भारत में क्रोमाइट का उत्पादन लगभग पांच लाख मीट्रिक टन है जो मुख्य रूप से उड़ीसा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र तथा झारखंड में पाया जाता है। क्रोमाइट का सर्वाधिक खनन (देश के कुल उत्पादन का लगभग 99 प्रतिशत) उड़ीसा में होता है। (स्रोत फीचर्स)