भारत डोगरा

इन दिनों उग्र होती बाढ़ में सबसे अधिक ज़रूरत तो बचाव व राहत कार्य की है, पर इसके साथ उन कारणों की ओर भी ध्यान देना ज़रूरी है जिनकी वजह से यह आपदा अधिक गंभीर रूप लेती जा रही है। यदि इन कारणों की सही पहचान कर उन्हें दूर करने के प्रयास नहीं किए गए तो फिर हर वर्ष राहत व बचाव की ज़रूरत बढ़ती ही जाएगी और प्रभावित लोगों का दुख-दर्द भी बढ़ता ही रहेगा। इस ओर ध्यान देना इस कारण भी ज़रूरी है कि जिन कारणों से बाढ़ें अधिक उग्र हुई हैं उन्हें और आगे न बढ़ने दिया जाए।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने फरक्का बांध बनने के बाद बाढ़ की स्थिति बिगड़ने के बारे में कहा है। इस कारण गंगा उथली हुई है और उसमें बाढ़ का पानी शीघ्र बहकर नहीं निकल पाता है। पहले भी कुछ वरिष्ठ नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने ऐसा ही संदेश दिया था, पर मुख्यमंत्री द्वारा यह मुद्दा उठाने का अपना महत्व है।

बिहार के अतिरिक्त पश्चिम बंंगाल के माल्दा और मुर्शिदाबाद क्षेत्रों में यह मुद्दा गर्माता रहा है कि फरक्का बैराज के निर्माण के बाद हुए बदलावों के कारण यहां बाढ़ व नदी द्वारा भूमि कटान की समस्या बढ़ रही है। यहां के पूर्व सिंचाई मंत्री देवव्रत बंधोपध्याय ने तो स्पष्ट कहा था कि फरक्का बैराज का निर्माण एक गंभीर भूल थी।
यह चेतावनी बैराज बनने से पहले ही शीर्ष के विशेषज्ञ कपिल भट्टाचार्य ने बहुत विस्तार से दी थी। उनकी इन चेतावनियों पर उस समय कोई ध्यान नहीं दिया गया, हालांकि बाद में ये चेतावनियां सही सिद्ध हुई हैं। दुष्परिणाम सामने आने के बाद कई जन आंदोलनों (जैसे गंगा मुक्ति आंदोलन) व जन संगठनों ने भी इस मुद्दे को उठाया है।
इस मुद्दे पर ध्यान देना इसलिए भी ज़रूरी है कि इस तरह के संभावित दुष्परिणाम उत्पन्न करने वाली कई परियोजनाएं इस समय भी विचाराधीन हैं। अत: यह बहुत ज़रूरी है कि इस मुद्दे के सभी निहितार्थों को एक बार समझ लिया जाए ताकि भविष्य में ऐसे सुलझे हुए निर्णय ही लिए जाएं जो बेहतर से बेहतर विमर्श व नवीनतम उपलब्ध जानकारियों पर आधारित हों।

एक सवाल उठता है कि जब फरक्का परियोजना के इतने दुष्परिणाम सामने आए हैं तो इसे बनाते समय इसके पक्ष में क्या औचित्य दिए गए थे। उस समय चर्चा थी कि दामोदर घाटी परियोजना के बांधों से जो कई समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं, उन्हें दूर करने के लिए यह बैराज बनाया जाए।
इस तरह एक समस्या को दूर करने के लिए एक ऐसी परियोजना लाई गई जिसने संभवत: पहले से भी अधिक समस्याएं उत्पन्न कर दीं। अत: इस तरह की परियोजनाओं पर बहुत सावधानी व निष्पक्षता से विचार करना अत्यंत आवश्यक है।
इसके अतिरिक्त बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश जैसे अधिक नदियों वाले क्षेत्रों में तटबंधों सम्बंधी नीतियों की भी निष्पक्ष समीक्षा ज़रूरी है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर व उत्तर-पूर्व जैसे हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण की रक्षा को विशेष महत्व देना आवश्यक है। इस क्षेत्र की अनेक बांध व पनबिजली परियोजनाओं की इस दृष्टि से समीक्षा ज़रूरी है कि इनसे कहीं बाढ़ व भू-स्खलन की समस्या और अधिक विकट न हो जाए। (स्रोत फीचर्स)