वैज्ञानिकों ने माउस नामक जंतु में जेनेेटिक इंजीनियरिंग के ज़रिए कुछ विशिष्ट गंधों के प्रति अति-संवेदना पैदा करने में सफलता प्राप्त की है। माउस एक प्रकार का चूहा होता है। अब यह संभव हो जाएगा कि ये माउस बारूदी सुरंगों और कुछ बीमारियों की गंध को पहचान पाएंगे और डॉक्टरों व सिपाहियों के मददगार बन जाएंगे।
बारूदी सुरंगों का पता लगाने में प्रशिक्षित कुत्तों और चूहों की मदद तो पहले से ही ली जा रही थी। नया अनुसंधान दर्शाता है कि कुत्ते कम रक्त शर्करा और कुछ किस्म के कैंसरों के रासायनिक हस्ताक्षरों को भी सूंघ सकते हैं। माउस भी गंध के प्रति काफी संवेदनशील होता है। इसमें कम से कम 1200 जीन्स गंध संवेदना के लिए जवाबदेह होते हैं। जहां कुत्तों और चूहों में करीब 1300 ऐसे जीन्स पाए जाते हैं, वहीं मनुष्यों में इनकी संख्या मात्र 350 होती है।
तंत्रिका वैज्ञानिक पौल फाइंस्टाइन पिछले कई वर्षों से इस कोशिश में थे कि माउस की गंध संवेदना को और बढ़ाया जाए। यह पता चला कि भ्रूण विकास के दौरान इनमें प्रत्येक गंध तंत्रिका एक खास रसायन के प्रति संवेदी बन जाती है। यानी प्रत्येक गंध ग्राही एक विशिष्ट गंध को पकड़ता है। फाइंस्टाइन चाहते थे कि इनमें से चंद ग्राहियों की संख्या बढ़ाई जाए ताकि माउस कुछ विशिष्ट गंध के प्रति ज़्यादा संवेदनशील हो जाए। और उन्होंने जेनेटिक इंजीनियरिंग के ज़रिए सफलता प्राप्त की कि किसी माउस में कोई खास गंध ग्राही ज़्यादा संख्या में बने। ऐसा ही एक ग्राही (ग्71) एसिटोफीनोन को पहचानता है जिसकी गंध रातरानी के फूलों जैसी होती है।

इस तरह से वे और उनके साथी अलग-अलग ग्राहियों की संख्या बढ़ाने में सफल रहे। जब इन माउस को सादा पानी और विशिष्ट गंधयुक्त पानी दिया गया तो ये दोनों में फर्क कर पाए। यहां तक कि गंधयुक्त पानी में जब गंध वाले रसायन की मात्रा बहुत कम कर दी गई तब भी ये माउस उसे पहचान पाते थे।
अब कोशिश यह है कि इन माउस को मनचाही गंध के प्रति संवेदी बनाया जाए। जैसे कुछ बीमारियों में मरीज़ के शरीर से विशिष्ट गंध पैदा होती है। या बारूदी सुरंगों से भी कुछ गंधयुक्त रसायन निकलते हैं। यदि ये माउस इन्हें पहचान पाते हैं तो बहुत मददगार साबित होंगे। और तो और वैज्ञानिकों की कोशिश है कि यह क्षमता कुछ निर्जीव कंप्यूटर चिप्स पर आरोपित कर दी जाए, तो जंतु के उपयोग की ज़रूरत नहीं रहेगी। अलबत्ता, दिल्ली अभी दूर है। (स्रोत फीचर्स)