के. आर. शर्मा

मेरे घर के सामने 5-7 एकड़ का खुला-सा मैदान है। यहां कोई हरे-भरे पेड़ नहीं हैं, बंजर-सी ज़मीन पर बरसात के दिनों में घास उग आती है। इसके अलावा बहुत से बबूल के पौधे हैं। इन बबूल के पौधों को मैं पिछले पांच साल से देख रहा हूं। ये वृक्ष नहीं बन पाए। भेड़-बकरियों के चरने और मानवीय हस्तक्षेप के कारण ये संभवतः बड़े नहीं हो पा रहे हैं। इनकी ऊंचाई डेढ़-दो फीट से आगे बढ़ ही नहीं पाती। एक बार इन बबूल के बौने पौधों को ज़रा गौर से निहार रहा था कि मुझे उन पर कुछ कांटों के गुच्छे लटके हुए दिखाई दिए। बबूल में कांटे होते हैं यह तो देखा था, लेकिन कांटों के गुच्छे....! ज़रा और बारीकी से देखा तो ऐसा अहसास बना कि हो-न-हो यह तो किसी कीड़े का कारनामा लगता है।
जब मैंने इन कांटों के गुच्छों को देखा था तब गर्मी के दिन थे। लेकिन जब हाल ही में बरसात के दिनों में देखा तो कांटों का गुच्छा चलता-फिरता दिखाई दिया। अब मेरे पास दो किस्म के अवलोकन थे, एक कि बरसात में यह कीड़ा इस कांटों के खोल को लिए इधर-उधर टहलता है। और दूसरा कि ठंड-गर्मी के दिनों में यह बबूल की टहनियों से चिपका रहता है।

इतना सब देखकर मैंने काफी सोचा कि आखिर मसला क्या है, पर जानकारी के अभाव में उस समय मामला ठंडा पड़ गया।
पिछले दिनों एक बार फिर कांटों के गुच्छों को देखकर सोचा कि चलो इस कांटों के खोल को तोड़कर और फिर खोलकर इसमें रहने वाले कीट को देखना चाहिए। मैंने बबूल के पौधे से एक कांटों के गुच्छे को तोड़ना चाहा। मुझे लग रहा था कि यह गुच्छा आसानी से मेरे हाथ में आ जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। टहनी से अलग करने में काफी मशक्कत की, पर नहीं टूटा। आखिरकार ब्लेड से काटा।
ब्लेड की सहायता से इस कांटे के खोल को काटकर देखा तो पाया कि इसके अंदर काले-भूरे रंग की एक इल्ली पड़ी हुई है। मैंने सोचा कि यह इसकी प्यूपा अवस्था होगी।
आमतौर पर कीटों में लार्वा (इल्ली) अवस्था काफी सक्रिय दिखाई देती है। और प्यूपा निष्क्रिय अवस्था में पड़ा रहता है। और प्यूपा से वयस्क जीव बनता है जो एकदम अलग दिखता है। लेकिन इस कीट के मामले में मेरे अवलोकन थोड़े फर्क हैं, इसलिए इन्हें सिलसिलेवार लिख रहा हूं।

चलता-फिरता काटें का खोल
मादा कीट अंडे देती है और अंडों के फूटने पर उनमें से लार्वा निकलता है। यह लार्वा बबूल के कांटों को इकट्ठा करके उनका एक शानदार खोल बनाता है और उसमें रहता है। आमतौर पर कई कीटों में लार्वा अवस्था में कीट काफी स्वच्छंद होकर बिना कोई आवरण ओढ़े रेंगते हुए दिखाई पड़ते हैं। परन्तु यह लार्वा अपवाद है जो बाहरी वस्तुओं यानी कि कांटों का खोल बनाकर उसमें रहता है। इस अवस्था में यह अपने मुंह वाले हिस्से को अंदर-बाहर उसी प्रकार कर सकता है जिस प्रकार कछुआ अपने सिर को कड़े खोल में से अंदर-बाहर करता है। जब इसको छेड़ा जाए तो अपने आपको इस कांटे के खोल में बंद कर लेता है। मैंने इसे केवल बरसात के दिनों में ही देखा है।

टहनी से चिपका काटें का खोल
जैसा कि मैंने पहले बताया था टहनी से चिपके कांटे के खोल में निष्क्रिय रूप से इल्लीनुमा रचना पड़ी रहती है। पहले मैंने सोचा था कि यह कीट की प्यूपा अवस्था है पर मेरा ऐसा सोचना पूरी तरह ठीक नहीं था। थोड़ी खोजबीन के बाद मुझे इस कीट के बारे में कुछ जानकारी मिली।
यह कीट दरअसल पतिंगे (मॉथ) की एक प्रजाति है। इसका नाम है साइकिड मॉथ (Psychid moth)। हिन्दी नाम पता नहीं। आमतौर पर लोग केवल कांटे के खोल को ही देख पाते हैं। वयस्क यानी कि पंख वाले पतिंगे को नहीं जानते। इस कांटे के खोल वाले कीड़े को 'कांटे का कीड़ा' कहते हैं।

मादा पतिंगा - नर पतिंगा
दरअसल इस कीट का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि इसमें वयस्क मादा पतिंगा पंख विहीन और इल्लीनुमा ही होती है। वह ताजिंदगी इसी खोल में ही रहती है। यानी कि वह जन्म इसी में लेती है और आखरी सांस भी इसी खोल में लेती है। मादा वयस्क पतिंगे का संबंध बाहरी दुनिया से केवल हवा का ही होता है। बाकी वह इस खोल में ही रहती है।
प्यूपा यदि नर का है तो इसमें से पंख वाला वयस्क नर निकलता है जो स्वतंत्र रूप से जीवन-यापन करता है। इसका मतलब यह हुआ कि नर में तो पूरी तरह से कायांतरण होता है पर मादा में नहीं। कांटे के खोल में देखकर यह तय कर पाना मुश्किल है कि यह प्यूपा है या मादा।

कैसे होता है प्रजनन
बरसात शुरू होने के दौरान नर पतिंगा इल्लीनुमा मादा पतिंगे से (जो कि कांटे के खोल में बंद रहती है) संपर्क स्थापित करता है। नर पतिंगा खोल के ऊपरी सिरे से एक छेद करता है और अपने शरीर के उदर यानी कि पेट वाले भाग को इस खोल में प्रवेश कराता है। नर पतिंगे का उदर वाला भाग खंडित होता है जिसको वह सुविधानुसार लंबाई में सिकोड़ सकता है या बड़ा कर सकता है। इस तरह उदर भाग को खोल में डालकर नर पतिंगा खोल में छिपी मादा के शरीर में शुक्राणु प्रवेश कर देता है। तत्पश्चात मादा के शरीर में अंडों का निषेचन होता है और मादा पतिंगा इसी खोल में अपने आप को काफी सिकोड़ लेती है ताकि अंडों को रखने की पर्याप्त जगह बन सके।

इस पुराने कांटे के खोल में ही अंडे फूटते हैं और उनमें से छोटे-छोटे लार्वा निकलते हैं। लार्वा खोल से बाहर निकलकर कांटे इकट्ठे करके अपना एक नया घरोंदा बनाते हैं।
दरअसल इस कीट को लेकर अभी भी काफी सारे सवाल अनुत्तरित हैं। मसलन इसके जीवन चक्र में अंडे से लार्वा व प्यूपा कितने दिन में निकलते हैं? मादा पूरे जीवन भर खोल में ही रहती है तो उसके भोजन का क्या होता होगा आदि, आदि। अगर आप में से किसी को इन सवालों के जवाब मालूम हैं या अपने पुस्तकालय में उपलब्ध किताबों में ढूंढ पाएं तो संदर्भ में ज़रूर लिखें ताकि औरों को भी जानने का मौका मिले।


के. आर शर्माः एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से जुड़े हैं। उज्जैन में रहते हैं।
सभी फोटोः के. आर. शर्मा।