आर. के. नारायण

कि मध्यान्ह के वक्त उसने अपनी झोला खोलकर, अपने व्यावसायिक उपकरण सजा लिए। एक दर्जन कौड़ियां, एक चौकोर कपड़ा जिस पर रहस्यमय चार्ट बने हुए थे, एक नोट बुक और ताड़ पत्रों का एक पुलिंदा। उसका ललाट भभूत और सिन्दूर से सु-सज्जित था, और उसकी आंखों में एक असामान्य पैनी चमक थी। दरअसल यह चमक निरंतर ग्राहकों को तोड़ने के प्रयास से उत्पन्न हुई थी, किन्तु सीधे-सादे ग्राहकों को लगता था कि यह पूर्वाभास का नूर है। इससे उन्हें बहुत सुकून का एहसास होता था। उसकी आंखों का तेज, उनकी स्थिति के कारण और भी बढ़ जाता था --- पुते हुए ललाट और काली मूंछों व दाढ़ी के बीच स्थित ये आंखें यदि किसी सिरफिरे की होतीं, तो भी चमकने लगतीं। 
इस रौब पर चार चांद लगाने के लिए उसने सिर पर एक भगवा पगड़ी और बांध ली थी। यह रंग-विन्यास कभी असफल नहीं रहा था; लोग उसकी ओर ठीक उस तरह आकर्षित होते थे जैसे मधुमक्खियां फूलों से लदी डाली की ओर। वह एक विशाल इमली के पेड़ की एक डाल के नीचे बैठता था। यह डाल टाउन हॉल पार्क के एक रास्ते पर फैली हुई थी। यह जगह कई मायनों में असाधारण थी। सुबह से लेकर रात तक इस संकरी सड़क पर लोगों की आवाजाही रहती थी। इस पूरे रास्ते पर तमाम किस्म के कारोबार और व्यवसाय चलते थेः दवा विक्रेता, चोरी के हार्डवेयर और कबाड़ के विक्रेता, जादूगर। खासतौर से, एक सस्ते कपड़े नीलाम करने वाला पूरे शहर को आकर्षित करने के लिए दिन भर शोर मचाता रहता था। शोरगुल में उससे कोई टक्कर ले सकता था, तो वह था एक मूंगफली बाला। यह मूंगफली वाला उसके दाईं ओर बैठता था और रोज़ाना अपनी मूंगफली को नया नाम दे देता था। किसी दिन वह उन्हें 'बंबई की आइसक्रीम' कहता तो अगले दिन 'दिल्ली का बादाम' और फिर 'राजा का पकवान'। लोग उसके पास खिंचे चले आते थे।

इस भीड़ में से काफी सारे लोग ज्योतिषी के सामने भी ठिठक जाते थे। ज्योतिषी अपना कारोबार एक ढिबरी की रोशनी में करता था। यह ढिबरी चटचट की आवाज़ के साथ जलती थी और इसका धुआं मूंगफली के ढेर से ऊपर तक पहुंचता था। इस जगह का आधा मज़ा तो इसी बात में था कि यहां नगर पालिका की प्रकाश व्यवस्था नदारद थी। पूरी जगह दुकानों की रोशनी से ही प्रकाशित रहती थी। एकाध दुकान में सीं-सीं करती गैस बत्तियां थीं, कुछ के पास नंगी मशालें थीं जिन्हें वे खंबों पर बांध देते थे, कुछ के पास पुरानी सायकल बत्तियां थीं; जबकि एकाध दुकानदार अपनी रोशनी का इंतजाम किए बगैर ही काम चला लेता था।

पूरी जगह प्रकाश किरणों और चलते-फिरते सायों के असमंजसकारी ताने-बाने में डूबी रहती थी। यह ज्योतिष के मन माफिक ही था क्योंकि इससे उसके व्यक्तित्व और उसकी उक्तियों का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता था। अपने व्यवसाय में सफलता के लिए उसे इस सब पर निर्भर रहना पड़ता था। कारण यह था कि अपने जीवन की शुरुआत करते वक्त उसने सपने में भी ज्योतिषी बनने की बात नहीं सोची थी। औरों के भविष्य की तो बात छोड़िए, उसे तो यह भी पता नहीं होता था कि खुद उसके साथ अगले क्षण क्या घटने वाला है। वह भी ग्रह-नक्षत्रों से उतना ही अनभिज्ञ था जितने उसके ग्राहक। फिर भी वह ऐसी बातें कहता था जो दूसरों को खुश और भौंचक्का कर देतीं। किन्तु यह प्रायः अध्ययन, अभ्यास और चतुर अटकलबाजी का परिणाम होता था। अलबत्ता किसी भी अन्य इंसान की तरह वह भी ईमानदारी से मेहनत करता था और उसकी कमाई भी खरे पसीने की कमाई थी।

उसने बगैर किसी योजना के ही गांव छोड़ दिया था। यदि वह वहां रहता तो अपना खानदानी काम जारी रखता - यानी खेत जोतना, जीना, शादी करना, और अपने मक्का के खेत और पुश्तैनी घर में बुढ़ाना। किन्तु ऐसा न हो सका। उसने बगैर किसी को बताए घर छोड़ दिया था और तब तक पीछे मुड़कर नहीं देखा था जब तक कि वह घर से अच्छा-खासा दो सौ मील दूर न आ गया। एक गांववासी के लिए तो यह बहुत बड़ी दूरी थी जैसे कोई समंदर पार आ जाए।

उसके पास मानव-जाति की दिक्कतों यानी विवाह, धन और मानव संबंधों की उलझनों का एक कामकाजी विश्लेषण था। लंबे समय के अभ्यास ने उसकी अनुभूतियों को पैना बना दिया था। पांच मिनट में वह समझ जाता था कि गड़बड़ क्या है। वह एक प्रश्न के तीन पैसे लेता था और तब तक मुंह नहीं खोलता था जब तक कि सामने वाला कम-से-कम दस मिनट बोल न चुके। इससे उसे दसियों जवाबों और सलाहों का सुराग मिल जाता था। जब वह सामने बैठे व्यक्ति से कहता कि तुम्हें अपनी मेहनत को पूरा फल नहीं मिल रहा है, तो दस में से नौ व्यक्ति सहमत ही होते थे। या वह पूछता, "क्या तुम्हारे परिवार में कोई औरत है, चाहे दूर के रिश्ते में, जो तुमसे बैर रखती हो?" या फिर उस व्यक्ति के स्वभाव का विश्लेषण पेश कर देता, “तुम्हारी अधिकतर परेशानियां तो तुम्हारे ही स्वभाव के कारण हैं। और तुम्हारा शनि जहां बैठा है, उसके चलते तुम्हारा स्वभाव इससे अलग हो भी कैसे सकता है? तुम्हारा स्वभाव तेज है और बाहर से तुम बहुत रूखे हो।" यह बोलकर वह अपने ग्राहकों का दिल जीत लेता था क्योंकि कोई कितना भी नरमदिल क्यों न हो, उसे यह सुनना अच्छा लगता है। कि उसका बाह्य रूप डराने वाला है।

मुंगफनी वाले ने अपनी ढिबरी बुझाई और घर जाने को उठ खड़ा हुआ। कहीं से हरी रोशनी का एक कतरा ज्योतिषी के सामने की ज़मीन पर पड़ा। वह अपनी कौड़ियां और अन्य तामझाम उठाकर अपने झोले में रख ही रहा था कि यह हरी रोशनी चमकी। उसने सिर उठाकर देखा कि उसके सामने एक आदमी खड़ा है। उसने तोड़ लिया कि वह कोई ग्राहक है और कहा, “तुम बहुत परेशान दिखते हो। अच्छा होगा यदि तुम थोड़ी देर बैठकर मुझसे बातचीत कर लो।” वह आदमी जवाब में कुछ अस्पष्ट-सा बुदबुदाया। ज्योतिषी ने थोड़ा आग्रह किया तो उस व्यक्ति ने अपना हाथ उसकी नाक के नीचे फैलाते हुए कहा, "तुम खुद को बड़ा ज्योतिषी समझते हो?" ज्योतिषी को लगा कि यह एक चुनौती है। उसने हरी रोशनी की तरफ अपनी हथेली घुमाते हुए कहा, "तुम्हारा स्वभाव ही ऐसा है?'' उस आदमी ने कहा, "बकवास मत करो। कुछ काम की बात बताओ।'' हमारा ज्योतिषी मित्र थोड़ा चिढ़ गया, "मैं एक सवाल के सिर्फ तीन पैसे लेता हूं और जबाब ऐसा होगा कि तुम्हारे पैसे वसूल हो जाएं।'' यह सुनकर उस आदमी ने अपना हाथ खींचा और एक आना निकालकर उसकी ओर उछाल कर बोला, "मुझे कुछ सवाल पूछना है। यदि मैंने साबित कर दिया कि तुम झांसा दे रहे हो तो तुम यह एक आना ब्याज समेत लौटाओगे।" "और यदि तुम्हें मेरे जवाब संतोषजनक लगे, तो क्या तुम मुझे पांच रुपए दोगे?” “नहीं।'' "तो क्या आठ आने दोगे?" "ठीक है, मगर शर्त यह रहेगी कि यदि तुम्हारे जवाब गलत निकले तो तुम मुझे दुगना पैसा दोगे।'' अजनबी ने कहा।

थोड़ी हुज्जत के बाद यह सौदा तय हो गया। ज्योतिषी जब मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था तभी अजनबी ने बीड़ी सुलगाई। माचिस की रोशनी में ज्योतिषी को उसके चेहरे की एक झलक मिल गई। सड़क पर भागती कारों के भोंपुओं, अपने घोड़ों पर गालियां सन्नाते तांगे वालों और चहलकदमी करते लोगों की बातचीत के शोरगुल के बीच एक ठहराव-सा आ गया। अजनबी बैठ गया, अपनी बीड़ी के कश खींचकर धुआं छोड़ते हुए काफी निर्दयतापूर्वक बैठ गया। ज्योतिषी काफी बेचैन हो उठा। उसने कहा, "ये लो तुम्हारा एक आना वापस। मैं ऐसी चुनौतियों का आदी नहीं हूं। वैसे भी मुझे देर हो रही है..।" यह कहते हुए उसने सामान बांधने की तैयारी शुरू कर दी। मगर अजनबी ने उसकी कलाई पकड़ कर कहा, "अब तुम बच नहीं सकते। मैं तो यहां से गुजर रहा था, तुमने ही मुझे रोक लिया था। उसकी पकड़ में ज्योतिषी कांपने लगा। उसकी आवाज़ कमज़ोर पड़ गई, “आज मुझे छोड़ दो। मैं तुमसे कल बात करूंगा। मगर अजनबी ने अपनी हथेली उसके सामने फैलाकर कहा, "चुनौती तो चुनौती है, चलो बताओ।" ज्योतिषी का मुंह सूखने लगा, उसने कहना शुरू किया, “एक औरत है...।"
अजनबी ने कहा, “चुप रहो। मैं यह नहीं सुनना चाहता। क्या मैं अपनी तलाश में सफल रहूंगा? इस सवाल का जवाब दो और जाओ। वरना मैं तुम्हें तब तक नहीं जाने दूंगा जब तक कि तुम अपना सारा पैसा मुझे नहीं दे देते।” ज्योतिषी ने कुछ मंत्र वगैरह पढ़े और हिम्मत जुटाकर बोला, “ठीक है। मैं बताता हूं। पर यदि मेरी बात तुम्हें ठीक लगी तो क्या तुम मुझे एक रुपया दोगे? वरना मैं मुंह नहीं खोलूंगा, तुम जो चाहे करना।'' काफी हीलेहवाले के बाद अजनबी मान गया। ज्योतिषी ने कहा, “तुम्हें एक बार मरा जानकर छोड़ दिया गया था। क्या मैं सही कह रहा हूं?"

"आह, और बताओ।”
"एक बार तुम्हें चाकू लगा था।", ज्योतिषी ने कहा।
"ठीक बताया", अजनबी ने सीने पर निशान दिखाते हुए कहा, "आगे?"
"और फिर तुम्हें पास के खेत के कुएं में फेंक दिया गया था। तुम्हें मरा जानकर छोड़ दिया गया था।''
“यदि वहां से गुजरते कुछ लोगों ने संयोग से उस कुएं में न झांका होता, तो मैं तो मर ही गया होता।” अजनबी ने आश्चर्य और उत्साह से बताया।
फिर उसने मुट्ठी भींचते हुए पूछा, "मैं उसे खोजने कहां जाऊं?"
दूसरी दुनिया में", ज्योतिषी ने जवाब दिया, “वह तो एक दुर के शहर में चार महीने पहले मर गया। अब वह तुम्हें कभी नहीं दिखेगा।'' यह सुनकर अजनबी गुर्राया। ज्योतिषी ने अपनी बात जारी रखी, “गुरू नायक ...", उसने पुकारा।।
"तुम मेरा नाम जानते हो?" अजनबी हक्का-बक्का था।
"मैं तो बाकी सारी बातें भी जानता हूं, गुरू नायक। अब मेरी बात ध्यान से सुनो। इस शहर से तुम्हारा गांव उत्तर दिशा में दो दिन चलने पर आता है। अगली गाड़ी लेकर लौट जाओ। यदि तुम घर से बाहर रुके तो मैं देख रहा हूं कि तुम्हारी जान को फिर एक बार खतरा है।'' उसने चुटकी भर भभूत निकालकर अजनबी की ओर बढ़ाई। "इसे अपने सिर पर लगाकर घर लौट जाओ। फिर कभी दक्षिण की ओर यात्रा न करना। शतायु भव।" 
"मैं फिर से घर क्यों छोडूंगा?” सोचते हुए अजनबी ने कहा। "मैं तो कभी-कभार घर से निकलता था ताकि उसे खोजकर उसका गला घोंटकर खत्म कर दूं।'' उसने निराश होकर कहा, वह मेरे हाथ से बच निकला था। मुझे उम्मीद है कि वह बुरी मौत मरा होगा।"
"हां", ज्योतिषी ने कहा, "वह एक बस के नीचे कुचला गया था।" यह सुनकर अजनबी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव आ गए।
जब ज्योतिषी ने अपना तामझाम समेटकर झोले में रखा तब तक वह जगह पूरी तरह निर्जन हो चुकी थी। हरी रोशनी भी गुल हो गई थी और चारों ओर घुप्प अंधेरा और खामोशी थी। मुट्ठी भर सिक्के ज्योतिषी को देकर अजनबी भी रात के अंधेरे में गुम हो गया था।

ज्योतिषी लगभग आधी रात गए घर पहुंचा। उसकी पत्नी दरवाजे पर ही राह देख रही थी। उसने देरी का कारण पूछा। ज्योतिषी ने सारे सिक्के उसकी तरफ उछालते हुए कहा, "गिनो इन्हें। एक आदमी ने दिए हैं।"
पत्नी ने सिक्के गिनकर कहा, "साढ़े बारह आने।'' वह बहुत खुश थी।"मैं कल थोड़ा गुड़ और नारियल खरीद पाऊंगी। बच्ची कितने दिनों से मिठाई मांग रही है। कल मैं उसके लिए अच्छी-सी चीज़ बनाऊंगी।''
"सुअर के बच्चे ने मुझे ठग लिया। उसने एक रुपए का वादा किया था।'' ज्योतिषी बोल उठा।
पत्नी ने उसकी ओर देखा और पूछा, “क्या हुआ? तुम परेशान क्यों हो?"
"कुछ नहीं।"
खाना खाने के बाद चारपाई पर बैठकर उसने पत्नी को बताया, "जानती हो, आज मेरे सिर से एक बड़ा बोझ उतर गया। इतने साल मैं सोचता रहा कि मेरे हाथ एक आदमी के खून से सने हैं। इसीलिए मैं घर से भाग गया था। भागकर यहां आ गया और तुमसे विवाह किया। वह आदमी जिन्दा है।''

वह सकते में थी, "तुमने हत्या की कोशिश की थी?"
"हां, गांव में, जब मैं एक नादान छोकरा था। एक दिन हमने शराब पी, जुआ खेला और बुरी तरह झगड़ने लगे। पर अब इस बारे में क्यों सोचें? चलो, सोने का वक्त हो गया।'' जम्हाई लेते हुए उसने कहा और चारपाई पर पसर गया।
आर. के. नारायणः (1900-2001) मालगुडी डेज, स्वामी एंड हिज फ़्रेंड्स जैमी कहानियां लिखकर आर. के. नारायण ने भारतीय अंग्रेज़ी साहित्य को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाई। उनके एक उपन्यास 'गाइड' को साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था जिस पर फिल्म भी बनी थी। मई 2001 में उनका देहांत हुआ।


अनुवाद: सुशील जोशीः एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम में जुड़े हैं। इसके अलावा स्वतंत्र रूप में विज्ञान लेखन एवं अनुवाद भी करते हैं।
चित्रः विप्लव शशिः बडौदा में चित्रकला की पढ़ाई कर रहे हैं।