जे. बी. एस. हाल्डेन

शरीर की व्यवस्थाएं                                                                                                                                                             भाग-3


खून शरीर के एक अंग से दूसरे भाग तक पदार्थों का परिवहन करता है। अतः खून के कामकाज का अध्ययन विभिन्न अंगों के बीच उत्पादन संबंधों के अध्ययन करने जैसा है। हम इस बारे में काफी कुछ जानते हैं कि खून में उपस्थित विभिन्न पदार्थ विभिन्न कोशिकाओं में बनते हैं। दिक्कत यह है कि इस सारी जानकारी को समझाने के लिए अत्यंत पेचीदा कार्बनिक रसायन की समझ ज़रूरी है।
अधिकांश शिक्षित लोग लगभग जानते हैं कि हृदय कैसे काम करता है। यह एक खोखली मांसपेशी है और इसमें चार प्रकोष्ठ होते हैं। ऊपरी दो प्रकोष्ठों को आलिन्द (Auricles) कहते हैं। आलिंदों की दीवार पतली होती है


ह्रदय की रचना व काम काजः खून को शरीर के विभिन्न अंगों, कोशिकाओं तक ले जाने और उन कोशिकाओं द्वारा पदार्थों के आदान-प्रदान के बाद, खून को वापस फेफड़ों तक लाने वाले परिवहन तंत्र के साथ ह्रदय का काफी करीबी संबंध है। शरीर के विभिन्न अंगों द्वारा खून से ऑक्सीजन व अन्य पोषक पदार्थ लेने के बाद छोटी-छोटी रक्त-वाहिनियों का जाल उस पुल को बड़ी शिराओं की ओर ले जाता है। बड़ी शिराएं उसे हृदय के दाहिने आलिंद तक लेकर आती हैं। दायां आलिंद इस खून को दाहिने निलय में ढकेलता है जहां


अतः ये आसानी से भर जाते हैं, किन्तु ये उच्च दबाब पर पंपिंग नहीं कर सकते। निचले दो प्रकोष्ठ निलय (Ventricles) कहलाते हैं। इनकी दीवार मोटी होती है और इसलिए इन प्रकोष्ठों में खून भरने के लिए दबाब लगाना पड़ता है। किन्तु ये खून को वापस काफी दबाव से आगे बढ़ा सकते हैं। दाएं आलिन्द में पूरे शरीर से खून आता है जबकि बाएं आलिन्द में मात्र फेफड़ों से। ये दोनों आलिन्द एक साथ संकुचित होते हैं और इनका खून निलय में प्रवेश करता है। दायां निलय खून को फेफड़ों में भेजता है तथा बायां निलय पूरे शरीर में खून के बहाव की दिशा चार वाल्वों से निर्धारित होती है।

तो, एक पूरे चक्कर में खून की प्रत्येक कोशिका शरीर के किसी अंग (जैसे कोई मांसपेशी या मस्तिष्क) से होकर गुजरती है। यहां यह उस ऊतक के लिए जरूरी ऑक्सीजन को छोड़ते हुए शिराओं के माध्यम से हृदय के दाएं भाग में पहुंचती है। यहां से इसे फेफड़ों में भेजा जाता है। फेफड़ों में रक्त कोशिकाएं पुनः ऑक्सीजन प्राप्त करती हैं और हृदय के बाएं भाग में लौटती हैं। यहां से ये एक बार फिर शरीर में भेजी जाती हैं। ये एक बार फिर उसी अंग में या किसी दूसरे अंग में पहुंचाई जा सकती हैं।
हृदय की धड़कन की एक कुदरती गति होती है। यदि इसे शरीर से बाहर भी कर दिया जाए तो भी यह इस गति से धड़कता रहता है। मस्तिष्क से आने वाली कुछ तंत्रिकाएं हृदय गति बढ़ाने का तथा कुछ तंत्रिकाएं हृदय गति कम करने का संदेश लाती हैं। विश्राम के समय हृदय ‘कुदरती दर
से कम गति से धड़कता है। मस्तिष्क का एक विशिष्ट हिस्सा हृदय गति का नियमन करता है। मस्तिष्क का यह हिस्सा उस जगह होता है जहां मस्तिष्क व मेरुरज्जु का जोड़ है। सामान्य नियमन निम्नानुसार किया जाता है। कई बड़ी धमनियों, जो बाएं निलय से निकलकर मस्तिष्क को खून पहुंचाती


से खून फेफड़ों में जाता है। फेफड़ों में महीन रक्त-नलिकाओं में से बहते हुए खून में से गैसों का फिर से आदान-प्रदान होता है, कार्बन डायऑक्साइड बाहर निकल जाती है और ऑक्सीजन खून में शामिल हो जाती है। फेफड़ों से यह 'ताज़ा-तरीन' खून बाएं आलिंद में आ जाता है और वहां से बाएं निलय में जाता है। बाएं निलय से खून को हृदय रूपी पंप के जरिए जोर से प्रमुख धमनी में धकेला जाता है। बड़ी धमनी से खून छोटी धमनियों के माध्यम से फिर से शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचता है। हृदय के बार-बार संकुचन और फैलाव के कारण ही यह सारी प्रक्रिया संभव हो पाती है।
धमनियों में बह रहा खून गाढे रंग का, और शिराओं में मौजूद खून हलके रंग का दिखाया गया है।


हैं, में दाबमापी उपस्थित होते हैं। ये दाब-मापी दरअसल कुछ विशिष्ट कोशिकाएं होती हैं जिनसे तंत्रिका तंतु जुड़े होते हैं। जितना ज्यादा दबाव होगा, उतने ही ज्यादा आवेग तंत्रिका तंतु में उत्पन्न होते हैं। इसी के अनुसार ज्यादा संख्या में आवेग मस्तिष्क से उत्पन्न होकर हृदय तक पहुंचते हैं और उसकी गति को कम करने का संदेश देते हैं। यह एक रिफ्लेक्स क्रिया का सरलतम उदाहरण है। यह अचेतन ढंग से चलती रहती है। इसका नतीजा यह होता है कि बड़ी-बड़ी धमनियों में खून का दबाव लगभग स्थिर बना रहता है।
अब कल्पना कीजिए कि कोई अंग अपना काम करना शुरू करता है।मसलन आमाशय भोजन को मथना शुरू करता है और पाचक रस उत्पन्न करना शुरू करता है। या यह लेख लिखते हुए मेरी भुजा की मांसपेशियां काम कर रही हैं। काम करती हुई कोशिकाओं में कार्बन डाई ऑक्साइड उत्पन्न होती है। इस कार्बन डाई ऑक्साइड की वजह से उस अंग से होकर गुजरने वाली खून की नलियां फैल जाती हैं। इस तरह से उस अंग को ज्यादा खून मिलने से, जरूरी ऑक्सीजन मिल जाती है और कार्बन डाई ऑक्साइड हटा ली जाती है। परिणामस्वरूप खून धमनियों में से आसानी से गुजरता है और दबाव कम हो जाता है।


जे. बी. एस. हाल्डेन (1892-1964) प्रसिद्ध अनुवांशिकी विज्ञानी। विकास (Evolution) के सिद्धांत को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान। विख्यात विज्ञान लेखक। उनके निबंधों का एक महत्वपूर्ण एवं रुचिकर संकलन ‘ऑन बीइंग द राइट साइज' शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत निबंध 'वॉट इज लाइफ' नाम के संकलन से लिया गया है।
अनुवादः सुशील जोशीः एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से जुड़े हैं। स्वतंत्र रूप से विज्ञान लेखन एवं अनुवाद करते हैं।