के. आर. शर्मा

मौसम बरसात का है। मेरे घर के आंगन में मधुमालती की बेल में लगे फूलों पर एक तितलीनुमा कीड़ा मंडराता नजर आया। मैंने इस ओर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया, पर मेरी बेटी और बेटे ने बताया कि जो तितलीनुमा कीड़ा फूलों पर मंडराता है वो अपने मुंह में कोई तिनकेनुमा चीज़ दबाए है, और उसे मधुमालती के नलीदार फूलों के अंदर, उड़ते-उड़ते ही घुसेड़ देता है। जब यह सुना तो मैं भी पूरे मामले को जानने और समझने के लिए उत्सुक हो उठा। लेकिन यह नजारा देखने के लिए हमें इंतजार करना पड़ा क्योंकि वह कीड़ा शाम को ही दिखाई देता है। उस दिन हम सूर्यास्त का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे।

इधर सूर्य अपनी रोशनी को समेट रहा था, उधर पंखदार कीड़े पता नहीं कहां-कहां से तेज़ी से उड़-उड़कर आने लगे और मधुमालती के फूलों पर मंडराने लगे। फूलों पर मंडराने के साथ ही उनके मुंह के आगे लंबी-सी तिनकेनुमा रचना दिखाई देने लगी जिसे वे फूल के भीतर डालते और चंद सेकंड में बाहर निकालकर किसी और फूल की ओर मुखातिब हो जाते। भूरे रंग का कीड़ा जो दिखने में तितलीनुमा पर उड़ने में तितली से कई गुना तेज़, पंख और शरीर इतने मजबूत कि यह उड़ते-उड़ते ही फूलों के अंदर तिनका डाल देता है। हम सभी की जिज्ञासा बढ़ गई और सब इस छानबीन में लग गए कि आखिर मामला क्या है।
रात हो रही थी। इन पंखदार कीड़ों की आवाजाही चल रही थी। कुछ कीड़े शायद उड़ते-उड़ते और फूलों पर मंडराते हुए थककर दीवार पर बैठ गए। यह हमारे लिए अच्छा मौका था - उस कीड़े को इत्मीनान के साथ देखने एवं परखने का! तभी हमने एक कीड़े को पकड़ भी लिया।

कीड़ा बनाम कीट बनाम पतिंगा
सबसे पहले तो यह पहचान एक झटके में हो गई कि यह कीट है क्योंकि शरीर तीन भागों (सिर, वक्ष और उदर) में बंटा हुआ था और तीन जोड़ी टांगें थीं। हालांकि कीटों के लक्षणों की फेहरिस्त में और चीजें भी जुड़ती हैं पर यदि उपरोक्त दो पहचान लें तो भी बात बन जाती है। हालांकि मैंने और बच्चों ने उस कीट में कुछ और चीजें भी देखी, मसलन स्पर्शक, संयुक्त आंखें आदि। सरसरी तौर पर ऐसा लग सकता है कि यह तितली है। इस कीट के बारे में थोड़ा और जानने की कोशिश की तो पता चला कि यह तितली नहीं है। वास्तव में यह एक पतिंगा है। देखिए बॉक्स। 

तितली और पतिंगे: पहचान मुश्किल नहीं

कीट समूह में तितली और पतिंगे एक ही समूह (लेपिडोप्टेरा) में आते हैं। तितली और पतिंगे दोनों में ही दो जोड़ी पंख एवं कुंडलित सूंड (प्रोबोसिस) होती है। और सूंड की मदद से ये फूलों का मकरंद चूसते हैं। इसके बावजूद भी इनको पहचानना आसान है।
आमतौर पर तितलियां दिन में सक्रिय रहती हैं जबकि पतिंगे सूर्यास्त के बाद। खासकर बरसात के दिनों में बल्ब और ट्यूबलाइट के आस-पास मंडराने वाले तितलीनुमा कीट पतिंगे ही होते हैं।
तितली और पतिंगे में एक खास अंतर होता है पंखों के फैलाव का। तितली जब बैठती है तो उसके पंख खड़े होते हैं जबकि पतिंगे के पंख ज़मीन की सतह के समांतर फैले रहते हैं।
एक अंतर और है तितली के स्पर्शक गठानदार होते हैं जबकि पतिंगे में मुलायम और रोएंदार।

जब पता चल गया कि यह पतिंगे की एक किस्म है तो मेरी बेटी और बेटे ने एक सुर में कहा कि उस तिनके का क्या हुआ जो इसके मुंह के आगे दिखता है? बेटी ने कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि यह कहीं से तिनका उठाकर ले आता हो। मैंने कभी पढ़ा था कि कुछ पतिंगों में सूंड काफी लंबी होती है। वैसे तो तितली की सूंड देखी भी है। यह सूंड घड़ी की स्प्रिंग के समान कुंडल खाई हुई, सिर के नीचे एक खांचे में दबी रहती है। तितली को फूलों का रस चूसते भी देखा है। जब तितली रस चूसती है तो वह फूल पर बैठकर अपनी स्प्रिंगनुमा सूंड को तानकर लंबा करती है। मुझे लग रहा था कि हो न हो यह तिनकेनुमा चीज़ इसकी सूंड हो सकती है। मैंने पतिंगे को पकड़ा और पेंसिल की नोक से सिर के नीचे खांचे में से सूंड को निकालकर लंबा किया तो हम सबके लिए यह आठवें आश्चर्य से बढ़कर खोज थी - जनाब पतिंगे की सूंड निकली 9.5 सेंटीमीटर लंबी! यानी कि पतिंगे की लंबाई से सूंड कोई तीन गुना लंबी थी।
हॉक पतिंगों की खासियत होती है कि ये उड़ते-उड़ते ही फूलों का मकरंद चूसते हैं, फूलों पर बैठते नहीं। जब पता चल गया कि यह तो इसकी सूंड है तो फिर कल्पना के घोड़े दौड़ने लगे। इस भूरे रंग के हॉक पतिंगे को फूल पर मंडराते देख हमिंग बर्ड की याद ताज़ा हो आई।

हॉक पतिंगे की सूंड (Proboscis) काफी लंबी होती है। एक पतिंगे को पकड़कर उसकी सूंड को लंबा किया गया तो पता चला कि सूंड की लंबाई 9.5 सेंटीमीटर है जो मधुमालती के फूल में से मकरंद चुसने के लिए पर्याप्त है।

एक दूजे के लिए
जब मैंने और जानकारी इकट्ठी करने की कोशिश की तो पता चला कि हॉक मॉथ और नलीदार फूल वाली वनस्पति, ये दोनों साथ-साथ विकास (Co-evolution) का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। ज्यादातर फूल जो रात में खिलते हैं, सूर्यास्त के बाद खिलते हैं, सफेद या हल्के रंग के होते हैं और उनमें गंध होती है, वे कीटों को आकर्षित कर पाते हैं। ऐसे अधिकांश फूलों का परागण पतिंगों द्वारा किया जाता है। ज्यादातर हॉक मॉथ में सूंड काफी लंबी होती है। 1862 में चार्ल्स डार्विन का ध्यान इस ओर गया कि मेडागास्कर में पाए जाने वाले ऑर्किड के नलीदार फूल में मकरंद ग्रंथियां एकदम पेंदे में, लगभग 10-13 इंच गहराई में होती हैं। उनको अंदाज़ा नहीं था कि कोई कीट इतनी गहराई से मकरंद प्राप्त करता होगा और परागण करता होगा। परंतु वेलेस ने अनुमान लगाया कि हॉक मॉथ ही इसका परागण करता होगा। सन् 1903 में मेडागास्कर में हॉक मॉथ देखा गया जिसकी सूंड 11 इंच लंबी होती है।
हमने जो भूरे रंग का हॉक पतिंगा देखा इसका भी नलीदार फूल वाली वनस्पति से गहरा ताल्लुक दिखाई पड़ता है। आंगन में लगे अकाव,
 
रातरानी और पपीते के फूलों पर ये भूलकर भी नहीं पहुंचते। इस तरह के रिश्ते में 'लेन-देन' का खासा महत्व है--- 'इस हाथ दो और उस हाथ लो'।

मधुमालती का फूल
हमने हॉक पतिंगे की तो खूब सारी चर्चा कर ली, पर मधुमालती के फूल की बात किए बिना मामला अधूरा रह जाएगा। मधुमालती एक बेल है। आप शहरों में इसको हर तीसरे-चौथे घर में देख सकते हैं।
मधुमालती की बेल पर लगे फूल गुच्छे में होते हैं, और दो रंग के दिखते हैं --- एक चटक लाल रंग के होते हैं और दूसरे हल्के गुलाबी रंग के। जब कली खिलकर फूल बनती है तो फूल हल्के गुलाबी रंग के होते हैं; और बाद में यही फूल चटक लाल रंग के हो जाते हैं।

कलियां आमतौर पर शाम को ही खिलकर फूल में बदल जाती हैं। और मजेदार बात यह कि पतिंगे इन हल्के गुलाबी रंग के यानी कि ताज़ा खिले फूलों पर ही ज्यादा मंडराते हैं। मैंने जितनी भी तस्वीरें लीं उससे भी इसी हॉक पतिंगे जब मधुमालती के फूलों के आसपास न मंडरा रहे हों तब वे अपनी सूंड को स्प्रिंग की तरह मोड़कर रखते हैं। तितलियां भी अपनी सूंड को इसी तरह समेटकर रखती हैं। फूलों के पास मंडराते हुए वे अपनी सूंड को तान लेते हैं जिससे ऐसा एहसास बन सकता है मानो उन्होंने मुंह में तिनका दबाया हो।

हॉक पतिंगे : एक नज़र में
पतिंगों के समूह में एक बिरादरी है हॉक पतिंगों की। इसके परिवार का नाम है स्फींगिडी। हॉक पतिंगे मजबूत शरीर वाले और तेज उड़ाकू होते हैं। इनकी उड़ने की गति लगभग 50-55 कि.मी. प्रति घंटे होती है। इनमें आहार लेने के लिए लंबी सूंड होती है। ये जब फूलों से मकरंद चूसते हैं तो उनपर बैठते नहीं हैं। ज्यादातर हॉक पतिंगे रात्रिचर होते हैं। हॉक पतिंगे यदि कहीं बैठकर आराम फरमा रहे हों और उन्हें छेड़ा जाए तो ये एकदम से नहीं उड़ते। ये कुछ क्षणों तक अपने पंखों को तेज़ी से फड़फड़ाकर पहले अपने शरीर को गर्मी देते हैं और फिर उड़ जाते हैं

बात की पुष्टि होती है।
ताज़े खिले यानी कि हल्के गुलाबी फूलों पर ही क्यों मंडराते हैं पतिंगे? यह जानने के लिए दोनों तरह के फूलों को खोलकर देखा तो पाया कि हल्के गुलाबी रंग के फूल की नली में मकरंद ज्यादा होता है। चटक लाल रंग के फूलों में एकदम कम या बिल्कुल नहीं। मुझे इस पतिंगे का जीव-शास्त्रीय नाम तो मिला, पर हिन्दी नाम नहीं मिला। इसका जीव-शास्त्रीय नाम 'एग्रियस कोनवोल्वी' है। अंग्रेजी में इसे 'कोनवोल्वस हॉक मॉथ' कहा जाता है। यह पतिंगा अफ्रीका, यूरोप, एशिया से जापान तक, ऑस्ट्रेलिया तथा पेसिफिक आइलैंड में पाया जाता है। इसके बारे में एक जानकारी और मिली कि यह प्रवासी यानी माइग्रेटरी है। लेकिन इस बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं मिल सकी। हमने भी इस पतिंगे को जुलाई से अक्टूबर तक ही देखा। उसके बाद अभी तक यह देखने में नहीं आया। हमारे लिए शोध का विषय है कि यह कहीं से प्रवास करके आता है या फिर वयस्क पतिंगे का जीवन काल इतना ही होता है।
उपसंहार में यही कहना चाहूंगा कि हमारे आसपास ऐसे कितने ही अजूबे बिखरे पड़े हैं फिर भी हमारी पुस्तकों में ज्यादातर उदाहरण विदेशों में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं के ही होते हैं।


के. आर. शर्मा: एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से जुड़े हैं। उज्जैन में रहते हैं। विज्ञान लेखन व फोटोग्राफी में रुचि।
सभी फोटो: के. आर. शर्मा।