आवश्यकता आविष्कार की जननी है। यह मुहावरा तरल कागज़ के आविष्कार पर बखूबी लागू होता है। अपने काम के दौरान आने वाली एक समस्या से छुटकारा पाने के लिए बेटे ग्राहम ने 1950 के दशक में जो आविष्कार किया वह इतना लोकप्रिय हुआ कि उन्हें इसके उत्पादन के लिए पूरी कंपनी शुरू करनी पड़ी।

1924 में टेक्सास के डैलास कस्बे में जन्मी बेटे ग्राहम ने हाई स्कूल तक की पढ़ाई करने के बाद नौकरी शुरू कर दी थी। वे एक दफ्तर में क्लर्क से पदौन्नत होते-होते टेक्सास बैंक के अध्यक्ष की सेक्रेटरी बन गई।
यह वह समय था जब इलेक्ट्रॉनिक कंप्य़ूटरों का चलन शुरू हुआ था। ये टाइपराइटर टायपिंग के लिहाज़ से तो बहुत बढ़िया थे मगर एक दिक्कत थी। इन टाइपराइटरों में जिस रिबन का इस्तेमाल होता था उनकी वजह से टाइप की गई सामग्री में गलतियों को इरेज़र से साफ करना मुमकिन नहीं था। ग्राहम और उनके पेशे से जुड़े सारे लोग इसे लेकर बहुत परेशान थे। एक छोटी-सी भी गलती हो जाए तो पूरे पन्ने को फिर से टाइप करना पड़ता था।

ग्राहम ने जब बैंक में सजावटी पेंटिंग करने वाले कारीगरों को देखा तो उनके मन में एक विचार आया। पेंटिंग में कोई गलती होने ये कारीगर उसे मिटाने की कोशिश नहीं करते थे बल्कि उसके ऊपर रंग की एक और परत चढ़ा देते थे। ग्राहम ने सोचा कि यही काम टाइपिंग की गलतियों के साथ भी किया जा सकता है। यही था तरल कागज़ का ठोस बीज।

उन्होंने सफेद रंग के एक पेंट का एक ऐसा घोल तैयार किया जिसे टायपिंग की गलती पर पोतकर गलती को छिपाया जा सकता था। पोतने के बाद यह बिलकुल कागज़ जैसे देखता था। यह तरल कागज़ था। जैसे ही इस बात की भनक अन्य टायपिस्टों को लगी, ग्राहम के ‘तरल कागज़’ की मांग तेज़ी से बढ़ी। उस समय वे इसे घर पर बनाकर ‘मिस्टेक आउट’ के नाम से बेचा करती थीं। धीरे-धीरे धंधा इतना बढ़ा कि लिक्विड पेपर के नाम से एक कंपनी ही स्थापित करनी पड़ी। आप देख ही सकते हैं कि यह लिक्विड कागज़ टायपिस्टों के बीच कितना लोकप्रिय रहा होगा।
वे अपने उत्पाद में मिलाए जाने वाले रसायनों पर अनुसंधान करती रहीं और अंतत: उन्हें इसका पेटेंट भी मिल गया। मृत्यु (1980) से छ: माह पहले यह पेटेंट उन्होंने जिलेट कॉर्पोरेशन को बेच दिया।