हाल के एक प्रयोग से पता चला है कि थूक में उपस्थित एक प्रोटीन हमें पेचिश जैसी समस्याओं से बचाता है।
हमारे मुंह में प्रतिदिन 1 से 2 लीटर तक थूक बनती है जिसे हम निगल जाते हैं। थूक न सिर्फ भोजन को निगलने में मददगार होती है बल्कि भोजन को पचाने में भी मदद करती है। थूक में उपस्थित एंज़ाइम एमायलेज़ स्टार्च का पाचन शुरू कर देता है।

किंतु बोस्टन विश्वविद्यालय की चिकित्सा अध्ययन शाला की एस्थर बुलिट का ख्याल था कि यदि थूक की भूमिका मात्र इतनी ही है तो यह बहुत महंगी है। लिहाज़ा, वे जानना चाहती थी कि क्या थूक हमारे लिए और किसी मायने में भी उपयोगी है। क्या थूक आंतों में जाकर भी कोई भूमिका निभाती है।
इस बात की खोजबीन के लिए उन्होंने एक 51-वर्षीय महिला की छोटी आंत की कोशिकाएं लीं और उन्हें प्रयोगशाला में पनपने दिया। साथ ही उन्होंने अलग से रोगजनक बैक्टीरिया एशरीशिया कोली (ई. कोली) को भी पनपाया। ये वे बैक्टीरिया हैं जो पेचिश पैदा करते हैं। इनकी विशेषता यह होती है कि इनकी कोशिकाओं पर बालों जैसे उभार होते हैं जिनकी मदद से ये हमारी कोशिकाओं पर चिपकते हैं।

अब बुलिट और उनके साथियों ने आंतों की कोशिकाओं को ई. कोली के साथ रखा। प्रयोग दो तरह से किया गया था। एक नमूने में आंतों की कोशिकाओं के साथ थूक में पाया जाने वाला एक प्रोटीन हिस्टेटिन-5 भी डाला गया था जबकि दूसरे प्रयोग में प्रोटीन नहीं डाला गया था। देखा गया कि हिस्टेटिन-5 की उपस्थिति में ई. कोली काफी कम संख्या में आंतों की कोशिकाओं से चिपक पाए।

अपने प्रयोग के परिणाम जर्नल ऑफ इंफेक्शियस डिसीज़ में प्रकाशित करते हुए बुलिट ने बताया है कि यदि ई. कोली आंतों की कोशिका से न जुड़ पाए तो संक्रमण संभव नहीं है। यानी हिस्टेटिन-5 पेचिश का एक इलाज उपलब्ध करा सकता है। खास बात यह है कि हिस्टेटिन-5 प्रयोगशाला में बनाया जा सकता है और पानी में घोलकर भंडारित किया जा सकता है। वैसे अभी कहा नहीं जा सकता कि यह कब तक एक दवा के रूप में उपलब्ध हो पाएगा। वैसे थूक के साथ तो आप इसे निगल ही रहे हैं। (स्रोत फीचर्स)