नवनीत कुमार गुप्ता

पूरे देश में ज़ोर-शोर से स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है। हर नागरिक इसमें भागीदारी कर रहा है। लेकिन एक बड़ा सवाल ऐसे कचरे के निपटान का होता है जो प्रकृति में आसानी से विघटित नहीं होता। थर्मोकोल के साथ भी यही समस्या है। पैकिंग उद्योग और ई-कॉमर्स बाज़ार में वृद्धि के साथ थर्मोकोल का उपयोग काफी तेज़ी से बढ़ रहा है। लेकिन इसके निपटान का कोई आसान तरीका नहीं है।

असल में ताप अवरोधक पैकिंग जैसे कई कार्यों में थर्मोकोल या पोलीस्टायरीन का काफी उपयोग होता है। लेकिन पोलीस्टायरीन के प्राकृतिक निपटान में सैकड़ों वर्ष लगते हैं तथा इसे दोबारा उपयोग करना काफी महंगा पड़ता है। इस समस्या के हल के लिए हैदराबाद के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में शोधकर्ताओं के एक समूह ने नारंगी के छिलकों के साथ मिलाकर पोलीस्टायरीन के दोबारा उपयोग का नायाब तरीका खोज निकाला है।
पुन: उपयोग या रिसाइÏक्लग जैसे शब्द हमारे लिए रोज़मर्रा के शब्द बन चुके हैं। कचरा बीनने वाले इस काम में काफी उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं। हालांकि इकट्ठा करने में परेशानी तथा आर्थिक उपयोगिता के अभाव में वे थर्मोकोल जैसी सामग्रियों को अनदेखा कर देते हैं।

आम तौर पर थर्मोकोल के नाम से प्रसिद्ध पोलीस्टायरीन ऐसा ही एक पदार्थ है, जिसका प्राकृतिक रूप से निपटान नहीं होता। आम तौर पर इसे जला दिया जाता है। थर्मोकोल का उपयोग सख्त तथा फोम दोनों रूपों में होता है।
अपनी दृढ़ता, मज़बूती, कम लागत तथा फोम के रूप में उपयोग की क्षमता के कारण डिस्पोज़ेबल थर्मोकोल प्लेट, कप, पैकिंग जैसे कार्यों में इसका काफी इस्तेमाल होता है। यह काफी ज्वलनशील होता है, तथा जलाने पर हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं।

थर्मोकोल के निपटान की वर्तमान विधि में काफी ऊर्जा खर्च होती है। इसमें उसे उच्च ताप पर नष्ट किया जाता है। यह तरीका महंगा होने के अलावा पर्यावरण के प्रतिकूल भी है। इन समस्याओं के निराकरण के लिए आईआईटी हैदराबाद में शोधकर्ताओं के एक ग्रुप ने नारंगी के छिलकों की मदद से इसके दोबारा इस्तेमाल की एक सस्ती, कम ऊर्जा खपतवाली, पर्यावरण हितैषी विधि खोज निकाली है। संस्थान में रासायनिक इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर चन्द्रशेखर शर्मा ने आईआईटी हैदराबाद टेक्नॉलॉजी इनक्यूबेशन सेन्टर में स्टार्ट अप प्रारम्भ किया है तथा अपने शोध को पेटेंट करने का आवेदन भी किया है। इस विधि से विकसित की गई सामग्री में तेल सोखने की क्षमता देखी गई है, जो इसे घरेलू सफाई और तेल रिसाव की समस्या से निपटने के लायक बनाती है।

पोलीस्टायरीन को पहले नारंगी के छिलकों के साथ घोला जाता है और फिर गीले घोल से रेशे निकाले जाते हैं। इन रेशों को कपड़े के रूप में बुना जाता है। ये कपड़े अपने वज़न का 40 गुना तेल सोख सकते हैं। रोज़मर्रा के कामों के अलावा नदियों व बंदरगाहों में तेल रिसाव दूर करने में भी ये मददगार साबित होंगे।
प्रो. चन्द्रशेखर की टीम एक पायलट मशीन विकसित कर रही है, जो अगले कुछ महीनों में वाणिज्यिक उपयोग के लिए तैयार हो जाएगी। (स्रोत फीचर्स)