डेढ़ सौ साल पुराने प्लैंकटन (सूक्ष्म जलीय वनस्पति) के अध्ययन के आधार पर किंग्सटन युनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन के बारे में काफी महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले हैं।
सन 1872-76 तक चले एचएमएस चैलेंजर अभियान के दौरान एकत्रित किए गए एक-कोशिकीय, कवच बनाने वाले जीव फोरामिनीफेरा लंदन स्थित म्यूज़ियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री में रखे हुए थे। सूक्ष्मजीवाश्म विज्ञानी लिंडसे फॉक्स ने इन फोरामिनीफेरा नमूनों का अध्ययन किया और पाया कि वर्तमान फोरामिनीफेरा की तुलना में प्राचीन फोरामिनीफेरा के कवच कहीं अधिक मोटे थे। उनका निष्कर्ष है कि कवच की मोटाई में यह परिवर्तन समुद्री पानी के तेज़ी से अम्लीय होने की वजह से हुआ है।
वैसे तो वैज्ञानिक इस बात को पहले से जानते थे कि वातावरण में मौजूद अतिरिक्त कार्बन डाईआऑक्साइड के समुद्र में घुलने के परिणामस्वरूप महासागर अम्लीय होते जा रहे हैं जिसके कारण समुद्री जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। अम्लीय पानी कैल्शियम कार्बोनेट और जीवों के बाह्र कंकाल को झीना कर देता है और उनके लिए इस तरह की संरचना बना पाना ही मुश्किल हो जाता है। लेकिन अधिकांश नतीजे प्रयोगशाला में किए गए प्रयोगों से मिले थे जो बहुत लंबी अवधि के नहीं होते। वैज्ञानिक खुले समुद्र में अम्लीय होते महासागरों के दीर्घकालिक प्रभाव जांचने में सक्षम नहीं थे।
तुलना के लिए शोधकर्ताओं ने दो प्रजातियों Neogloboquadrinadutertrei और Globigerinoidesruber को चुना। एचएमएस चैलेंजर द्वारा एकत्रित नमूनों के सटीक स्थान और समय के बारे में जानकारी प्राप्त की और इनकी तुलना उन्होंने साल 2011 में प्रशांत महासागर में चले तारा अभियान से प्राप्त उन्हीं प्रजातियों के नमूनों से की।
उन्होंने सी.टी. स्कैन की मदद से इनके कवच का 3-डी मॉडल बनाया। उन्होंने पाया कि प्राचीन नमूनों की तुलना में औसतन सभी आधुनिक कवच झीने थे। N. dutertreiका आवरण तो 76 प्रतिशत झीना था। साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि कुछ वर्तमान कवच तो इतने पतले थे कि उनका 3-डी मॉडल तक बनाना मुश्किल था।
शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसी संभावना है कि कवच समुद्रों की बढ़ती अम्लीयता के कारण झीने हुए हों। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि इसमें महासागरों के बढ़ते तापमान और ऑक्सीजन की कमी की भी भूमिका हो सकती है।
फॉक्स ऐसी ही तुलना संग्रहालयों में रखे हज़ारों प्लैंकटन जीवाश्मों के साथ करना चाहती हैं। वे उम्मीद करती हैं कि यह अध्ययन अन्य वैज्ञानिकों को भी संग्रहालयों की पड़ताल करने को प्रेरित करेगा। (स्रोत फीचर्स)