बेजिंग स्थित चाइनीज़ एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चर साइन्सेज़ के जिंज़े झांग और साथियों द्वारा नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक टमाटर में जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से ऐसे परिवर्तन किए गए हैं कि उनमें शर्करा (ग्लूकोज़ और फ्रुक्टोज़) की मात्रा 30 प्रतिशत तक अधिक हो गई है। इन शर्कराओं की मात्रा बढ़ने से टमाटर ज़्यादा मीठे हो गए हैं। और तो और, इनका आकार, वज़न वगैरह भी फिलहाल उपलब्ध टमाटरों जैसा ही है।
गौरतलब है कि दुनिया भर में करीब 19 करोड़ टन टमाटर का उत्पादन होता है और यह कई व्यंजनों, चटनियों, सॉस वगैरह का प्रमुख घटक है। टमाटर को सदियों पहले पालतू बनाया गया था और लगातार चयन का परिणाम है कि आज हमें जो टमाटर मिलते हैं वे अपने मूल कुदरती पूर्वजों की तुलना में कई गुना बड़े होते हैं। लेकिन साइज़ बढ़ने के साथ उनमें शर्करा की मात्रा कम होती जाती है। झांग की टीम इसी चीज़ का अध्ययन कर रही थी। वे यही जानना चाहते थे कि फलों में शर्कराओं का संश्लेषण कैसे होता है और उन्हें भंडारित कैसे किया जाता है। यह समझने के लिए झांग की टीम ने वर्तमान में उगाए जाने वाले टमाटर (Solanum lycopersicum) के जीनोम की तुलना अधिक मीठे टमाटर किस्मों से की। उन्होंने पाया कि मिठास का बिंदु दो जीन्स में हैं। ये दो जीन्स ऐसे प्रोटीन का निर्माण करते हैं जो उस एंज़ाइम को नष्ट करते हैं जो शर्करा उत्पादन के लिए ज़िम्मेदार होता है। यानी ये शर्करा का उत्पादन रोकते हैं।
बस, फिर क्या था। शोधकर्ताओं ने जीन संपादन की क्रिस्पर-कास 9 नामक तकनीक का उपयोग करके इन दो जीन्स को निष्क्रिय कर दिया। नतीजतन जो पौधे विकसित हुए उन पर लगने वाले टमाटर कहीं अधिक मीठे थे।
इस अध्ययन का प्रत्यक्ष परिणाम तो टमाटर को मीठा करेगा लेकिन इसके कुछ व्यापक निहितार्थ भी हैं। ये दो जीन्स कई पादप प्रजातियों में पाए जाते हैं। यदि शर्करा निर्माण की यह क्रियाविधि विभिन्न फलों में काम करती है, तो ज़ाहिर है कि इस अध्ययन के निष्कर्षों का इस्तेमाल अन्यत्र भी संभव होगा। वैसे भी यह अध्ययन हमें यह समझने की दिशा में आगे ले जाएगा कि फलों में शर्करा का संश्लेषण कैसे होता है। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - February 2025
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