चीता दुनिया में सबसे तेज़ थलचर है। यह किसी भी अन्य थलचर के मुकाबले ज़्यादा रफ्तार से दौड़ सकता है। इसकी लंबी टांगों और ताकतवर मांसपेशियों को ही इसकी रफ्तार का श्रेय दिया जाता रहा है। किंतु अब एक नया अध्ययन बता रहा है कि चीते के आंतरिक कानों में भी कुछ विशेषता होती है जो उसे तेज़ भागने में मदद करती है।

कुछ प्राणि वैज्ञानिकों का हमेशा से यह विचार रहा है कि चीते के कानों की रचना में ज़रूर कुछ खास बात होगी।  गौरतलब है कि जंतुओं के आंतरिक कान संतुलन बनाए रखने में मददगार होते हैं और इसी से जंतुओं को यह अंदाज़ भी लगता है कि वे सीधे खड़े हैं या नहीं। आंतरिक कान में तीन नलिकाएं होती हैं जो एक-दूसरे के लंबवत होती हैं। इन नलिकाओं में भरे तरल पदार्थ में कुछ क्रिस्टल तैरते रहते हैं। जब ये क्रिस्टल किसी नलिका की दीवार को स्पर्श करते हैं तो जंतु को अपनी स्थिति का भान होता है। इसे वेस्टिब्यूलर तंत्र कहते हैं। यह सिर और शरीर की स्थिति को सीधा रखने में, नज़र को सीध में रखने में मददगार होता है।

शोधकर्ताओं ने साइन्टिफिक रिपोट्र्स में बताया है कि उन्होंने बिल्लियों की कई प्रजातियों के आंतरिक कान की त्रि-आयामी छवि निर्मित करके तुलना की। ध्यान देने की बात है कि चीता बिल्ली समूह का प्राणि है, जैसे तेंदुए, बाघ और घरेलू बिल्ली हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि चीते का वेस्टिब्यूलर तंत्र आंतरिक कान का एक बड़ा हिस्सा होता है बनिस्बत अन्य बिल्लियों के। इसके अलावा उनकी उपरोक्त तीन नलिकाएं भी थोड़ी लंबी होती हैं। जैसा कि ऊपर कहा गया, कान का यही हिस्सा तो सिर की गति व आंख की दिशा को नियंत्रित करता है।

शोधकर्ताओं का ख्याल है कि आंतरिक कान की इन्हीं विशेषताओं के चलते भागते समय चीता अपना सिर एकदम सीधा रख पाता है जबकि उसका शरीर कुलांचे भर रहा होता है। और तो और, इसी वजह से तेज़ दौड़ते हुए भी अपने शिकार पर नज़रें जमाए रखता है।
शोधकर्ताओं ने यह भी पता किया कि विशाल चीता, जो अब विलुप्त हो चुका है, में वेस्टिब्यूलर तंत्र इतना विकसित नहीं था। अर्थात यह विशेषता चीतों में हाल ही में विकसित हुई है। (स्रोत फीचर्स)