गर्भवती महिलाएं जानती हैं कि गर्भ में पल रहा शिशु लात मारता है। हमारी फिल्मों ने इसे काफी रुमानियत के साथ पेश भी किया है। मगर इस लात मारने के बारे में वैज्ञानिकों ने जर्नल ऑफ दी रॉयल सोसायटी इंटरफेस में कुछ रोचक तथ्य उजागर किए हैं।

वैज्ञानिकों ने 20-35 सप्ताह के गर्भ का निरीक्षण मैग्नेटिक रिसोनेन्स इमेजिंग (एमआरआई) के माध्यम से किया। एमआरआई स्कैन के आंकड़ों के आधार पर गर्भस्थ शिशु की गतिविधियों का कंप्यूटर मॉडल तैयार किया गया। पता चला कि शिशु की लात का प्रहार 20-30 सप्ताह के बीच सबसे शक्तिशाली होता है। इसके बाद लातें कमज़ोर पड़ जाती हैं। यह संभवत: इसलिए होता है क्योंकि तब तक गर्भ में शिशु इतना बड़ा हो चुका होता है कि लात मारने के लिए जगह ही नहीं बचती। और वैज्ञानिकों ने शिशु की लात के प्रहार को नापने की भी कोशिश की। पता चला कि औसतन एक शिशु की लात में लगभग 45 न्यूटन का बल होता है। न्यूटन बल को नापने की इकाई है। एक न्यूटन बल इतना होता है कि वह एक किलोेग्राम वज़न की वस्तु की रफ्तार में 1 मीटर प्रति सेकंड की वृद्धि कर सकता है।

बहरहाल, लात का गणित कुछ भी हो मगर यह क्रिया शिशु के लिए दो तरह से लाभदायक है। अव्वल तो यह एक व्यायाम है जिससे मांसपेशियां और हड्डियां मज़बूत होती हैं। दूसरा फायदा यह होता है कि ऐसे व्यायाम से जोड़ भी भलीभांति विकसित होते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि भ्रूणावस्था में सही आकार के जोड़ बन जाएं तो बाद में ऑस्टियो-आथ्र्राइटिस जैसे अस्थि रोगों की आशंका कम होती है। (स्रोत फीचर्स)