डॉ. डी. बालसुब्रामण्यन

साइंटिफिक अमेरिकन पत्रिका में डॉ. जेम्स हार्टज़ेल के हालिया अवलोकन से पूरे भारत में ई-मेल और सोशल मीडिया में काफी उत्साह पैदा हुआ है। तंत्रिका वैज्ञानिक डॉ. हार्टज़ेल ने एक शब्द गढ़ा है - ‘संस्कृत प्रभाव’। उन्होंने लिखा है कि वैदिक मंत्रों को कंठस्थ करने से मस्तिष्क के उन क्षेत्रों का आकार बड़ा हो जाता है जो याददाश्त (तात्कालिक व दीर्घावधि दोनों किस्म की याददाश्त) जैसे संज्ञानात्मक कार्यों से जुड़े हैं।

उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि भारतीय परंपरा में यह मान्यता है कि मंत्रों को कंठस्थ करने और उच्चारित करने से स्मृति और सोच में वृद्धि होती है। इस विचार का परीक्षण करने के लिए, हार्टज़ेल (और इटली के ट्रेन्टो वि·ाविद्यालय के उनके साथियों) ने हरियाणा में मानेसर स्थित नेशनल ब्रोन रिसर्च सेंटर (एनबीआरसी) के डॉ. तन्मय नाथ और डॉ. नंदनी चटर्जी सिंह के साथ मिलकर टीम बनाई। उन्होंने इस अध्ययन के लिए 42 वालंटियर्स को चुना। इनमें से 21 औपचारिक रूप से प्रशिक्षित पंडित थे जिनकी उम्र 22 वर्ष के आसपास थी। बचपन में इन्हें 7 सालों तक रोज़ाना (कुल लगभग 10 हज़ार घंटे) शुक्ल यजुर्वेद का जाप करने का पूर्णकालिक प्रशिक्षण दिया गया था। ये पंडित दिल्ली के वैदिक पंडित विद्यालय से थे। तुलना के लिए, उन्होंने पास के कॉलेज के 21 लगभग उतनी ही उम्र के पुरुष विद्यार्थियों को चुना।

मस्तिष्क इमेजिंग
उपरोक्त सभी 42 प्रतिभागियों के मस्तिष्क का परीक्षण राष्ट्रीय जीव विज्ञान अनुसंधान प्रयोगशाला (एन.बी.आर.सी.) में मैग्नेटिक रिज़ोनेन्स इमेज़िंग (एम.आर.आई.) यंत्र से स्ट्रक्चरल मैग्नेटिक रिज़ोनेन्स नामक तकनीक से किया गया। इस तकनीक से मस्तिष्क के प्रत्येक हिस्से के आकार व आकृति का अध्ययन किया जा सकता है।

मस्तिष्क का ग्रे मेटर (जीएम) कहलाने वाला हिस्सा तंत्रिका कोशिकाओं से भरा क्षेत्र होता है। इसमें मांसपेशियों के नियंत्रण, संवेदी अनुभूति, स्मृति, भावनाओं, वाणी और निर्णय लेने वाले क्षेत्र स्थित होते हैं। इसी से जुड़ा हुआ क्षेत्र है व्हाइट मैटर (डब्ल्यूएम)। इसमें तंत्रिका कोशिकाओं के बंडल होते हैं जो संदेशों को जीएम तक पहुंचाते हैं। हिप्पोकैम्पस एक छोटा-सा अंग है जो मस्तिष्क के केंद्र में स्थित होता है, और यह स्मृति (विशेष तौर पर दीर्घावधि स्मृति) से जुड़ी भावनाओं को दर्ज करता है और उनका नियमन करता है। हिप्पोकैम्पस के अगले व पिछले दो खंड होते हैं। पिछला हिस्सा बेहतर याददाश्त से सम्बंधित होता है और स्मृति का पुन:स्मरण करता है। कॉर्टेक्स मस्तिष्क की सबसे बाहरी परत होती है, जो मस्तिष्क पर आवरण की तरह होती है। इसमें तंत्रिका कोशिकाएं सघनता से पाई जाती हैं और यह निर्णय लेने जैसी उच्चतर सोच की प्रक्रियाओं में संलग्न होता है।

इस इंडो-इटैलियन टीम ने 21 पंडितों और 21 कंट्रोल वालंटियर्स के मस्तिष्क क्षेत्रों का विश्लेषण किया तो इन दो समूहों के बीच कुछ उल्लेखनीय अंतर पाए। उन्होंने पाया कि कंट्रोल समूह की तुलना में पंडितों के मस्तिष्क का ग्रे मैटर ज़्यादा घना था और कॉर्टेक्स अधिक मोटा था। इसके अलावा, पंडितों में हिप्पोकैम्पस का वह क्षेत्र भी ज़्यादा स्पष्ट था जो अल्प और दीर्घकालीन याददाश्त से जुड़ा होता है। इस विषय में रुचि रखने वाले निम्नलिखित लिंक पर सम्बंधित पर्चा पढ़ सकते हैं- (http:/dx.doi.org/10.1016/j.neuroimage.2015.07.029)।

दरअसल, इस तरह का एक प्रयोग पहले भी यूएसए के ह्रूस्टन में डॉ. गिरिधर कमलमंगलम और टी.एम. एलमोर ने किया था और उन्होंने भी देखा था कि वैदिक पंडितों का कॉर्टेक्स ज़्यादा मोटा था। इस अध्ययन को निम्नलिखित लिंक पर देख सकते हैं - ( Human Neuroscience,2014 Oct 20;8:833. doi: 10.3389/fnhum.2014.00833. eCollection 2014)

महत्वपूर्ण बात यह है कि मस्तिष्क में इस तरह के बदलाव अस्थायी नहीं होते बल्कि लंबे समय तक बने रहते हैं। इसका मतलब है कि याददाश्त, निर्णय लेने की क्षमता, संवेदी अनुभूति वगैरह उन लोगों में अधिक समय तक टिकेगी जिन्हें पहले प्रशिक्षित किया गया हो। इसी पहलू का अध्ययन कर रहे कार्नेजी मेलन वि·ाविद्यालय के डॉ. डेन्कर और डॉ. एंडरसन ने तो 2010 में प्रकाशित अपने समीक्षा पर्चे का शीर्षक ही दिया था: ‘The ghosts of brain states past; remembering reactivates the brain regions engaged during coding’ (मस्तिष्क के अतीत के भूत: याद करने की क्रिया मस्तिष्क के उन हिस्सों को सक्रिय कर देती है जो पहले उसका कोडिंग करने में इस्तेमाल हुए थे)। यहां कोडिंग से मतलब रियाज़ और याद रखने के लिए पहले किए गए कठोर अभ्यास से है।

संस्कृत के लिए विशेष नहीं
यह समझना भी ज़रूरी है कि मस्तिष्क क्षमता बढ़ाने के संदर्भ में शुक्ल यजुर्वेद को किसी विशेष शक्ति के साथ जोड़कर देखने की ज़रूरत नहीं है। पचास साल पहले, एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने उल्लेख किया था कि जो इसाई सन्यासी ग्रिगेरियन कीर्तन का उच्चारण करते हैं उनमें असाधारण स्मृति पाई जाती है (हालांकि उस समय कोई मस्तिष्क स्कैनिंग तकनीक उपलब्ध नहीं थी)। इसके अलावा, सभी को सस्वर या धार्मिक मंत्रोच्चार करने की ज़रूरत नहीं है। यह दृश्य और स्थानिक प्रशिक्षण भी हो सकता है।

डॉ. एलीनोर मैगुयार और उनके साथियों ने लंदन के टैक्सी ड्रायवरों की मस्तिष्क संरचना का अध्ययन किया था। वहां प्रत्येक ड्रायवर को ‘दी नॉलेज’ नामक एक कोर्स पूरा करना होता है। इस कोर्स में प्रत्येक ड्रायवर को वृहत लंदन की हर गली, हर स्मारक और हर पर्यटन स्थल की भौगोलिक स्थिति को याद करना होता है। इसके बाद ही उन्हें टैक्सी चलाने का लायसेंस दिया जाता है। ऐसे ड्रायवर को किसी जीपीएस की ज़रूरत नहीं है, सब कुछ उसके हिप्पोकैम्पस, ग्रे मैटर और कॉर्टेक्स में उपस्थित होता है। इसके बारे में इस लिंक पर पढ़ सकते हैं - (Proc Natl Acad Sci U S A.2000 Apr 11; 97(8): 4398–4403. doi: 10.1073/pnas.070039597)।

एक बात और गौरतलब है कि कैसे हम प्रायमरी स्कूल में पहाड़े याद किया करते थे और दशकों बाद जब हम शॉपिंग करते हैं तो ये पहाड़े काम आते हैं।
(चलते-चलते बताया जा सकता है कि कुछ वर्ष पूर्व एक वैज्ञानिक ने दावा किया था कि युरोपियन संगीतज्ञ मोज़ार्ट के संगीत को सुनने से स्मृति और स्मार्टनेस बढ़ती है। उन्होंने इसे ‘मोज़ार्ट प्रभाव’ नाम दिया था। स्कूली विद्यार्थियों को मोज़ार्ट संगीत सुनते हुए कुछ टास्क करने को दिए गए। उनका प्रदर्शन बेहतर रहा बजाय उस स्थिति के जब मोज़ार्ट का संगीत नहीं बजाया गया था। इस खबर ने माता-पिता को अपने बच्चों के लिए मोज़ार्ट के रिकॉर्ड खरीदते और बजाते देखा गया। (जल्द ही पता चला कि इस संगीत का प्रभाव केवल तब ही रहता है जब तक संगीत बजता रहता है; संगीत सुनते हुए बच्चे सुकून महसूस करते थे; संगीत बंद होते ही इसका प्रभाव खत्म हो जाता था। मोज़ार्ट प्रभाव टिकाऊ नहीं था।)

इन अध्ययनों से यह संभावना उभरती है कि हम ‘स्मृति प्रशिक्षण’ से मस्तिष्क पर दबाव डाल सकते हैं या उसका व्यायाम करवा सकते हैं। यह वृद्धावस्था में भी संभव है। और इसके लिए हमें पंडित, ग्रिगेरियन सन्यासी या लंदन टैक्सी ड्रायवर बनने की ज़रूरत नहीं है। दरअसल न्यूरोइमेज में ए. एंगविग और उनके साथियों के पर्चे में कहा गया है कि बढ़ती उम्र में दिमागी व्यायाम बुढ़ाते दिमाग में अल्पावधि संरचनात्मक बदलाव प्रेरित कर सकते हैं। उन्होंने बताया है कि स्मृति प्रशिक्षण में सहभागी प्रशिक्षु लोगों के कॉर्टेक्स की मोटाई अन्य की अपेक्षा अधिक होती है। जिस तरह से शारीरिक व्यायाम मांसपेशियों को फिट रखने में मदद करता है उसी तरह मानसिक व्यायाम मस्तिष्क को फिट रखता है। तो मेरे जैसे वरिष्ठ लोगों को शब्द पहेलियां और गेम्स खेलने चाहिए, भाषाएं सीखना चाहिए, संगीत का अभ्यास करना चाहिए, ग्रिगेरियन या वैदिक ऋचाओं का उच्चारण (लेकिन उचित सुर में) करना चाहिए ताकि मस्तिष्क जवान बना रहे। (स्रोत फीचर्स)