एक मरीज़ सर्जरी के सारे घाव भरने और उपचार पूरा होने के बाद भी दर्द से परेशान रहता था। दर्द से राहत पाने के लिए उसे एक नशीली दर्दनिवारक दवा हेरोइन दी गई और वह हेरोइन का आदी हो गया था। हैरानी की बात यह थी कि दर्द उसके पूरे शरीर में फैल गया था, और उससे निपटने के लिए धीरे-धीरे नशीले दर्द निवारक दवाओं का डोज़ बढ़ाया गया। मरीज़ का दर्द एक्यूट (किसी वास्तविक वजह, घावों से उत्पन्न दर्द) से आगे बढ़कर जीर्ण (कारण की अनुपस्थिती में दर्द रहना) हो गया था।
ऐसे मामलों में औषधि के प्रति सहनशीलता और जीर्ण दर्द में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है।

नशीले दर्द निवारक तंत्रिका कोशिकाओं पर उपस्थित म्यू रिसेप्टर्स को सक्रिय कर देते हैं जो रीढ़ की हड्डी में दर्द के संदेश के जाने में अवरोध पैदा करते हैं। इन अवरोधों से निपटने के लिए नए म्यू रिसेप्टर बनते हैं। अगली बार इन नए रिसेप्टर को दबाने के लिए दवा की खुराक बढ़ानी पड़ती है। इस तरह नए रिसेप्टर बनते रहते हैं और दवा की खुराक बढ़ती जाती है। शरीर इन नशीली दवाओं का आदी हो जाता है।
जीर्ण दर्द, इस तरह पैदा हुए सहनशीलता दर्द और एक्यूट दर्द से अलग होता है। यह दर्द का कारण दूर होने के बाद भी बना रहता है। इसमें दर्द की जगह से दिमाग को (मेरु रज्जू के ज़रिए) दर्द के संकेत भेजना वास्तव में बंद हो चुका होता है।

हमारे शरीर में तंत्रिका तंत्र की एक ऐसी प्रणाली होती है जिसका एकमात्र उद्देश्य शरीर में दर्द का पता लगाना और दिमाग तक उसकी सूचना पहुंचाना है। शरीर में दर्द का एहसास होना ज़रूरी है। यह आपको खतरों से बचाता है। जैसे कभी किसी गर्म चीज़ को छू लेने पर उस जगह पर हमें पीड़ा का एहसास होता है और हम वहां से तुरंत अपना हाथ हटा लेते हैं और अगली बार गर्म चीज़ के प्रति सचेत रहते हैं। दर्द के ज़रिए दिमाग सीखने, स्मृति बढ़ाने और निर्णय लेने की क्षमता को मज़बूत करता है।
दिक्कत यह है कि मशीनों की तरह हमारा दिमाग भी गलतियां कर सकता है। हो सकता है कि दर्द के प्रति प्रतिक्रिया तो सीख ली गई हो पर गलत सीख ली गई हो। या ऐसा भी हो सकता है कि वह प्रतिक्रिया शुरू होने के बाद रुकने का नाम ही न ले।

एक्यूट दर्द के जीर्ण दर्द में तबदील होने के बारे में पारंपरिक सोच यह है कि चोट जितनी तेज़ होगी दर्द भी उतना लंबा होगा। इस बात को समझने के लिए नार्थवेस्टर्न युनिवर्सिटी के तंत्रिका विज्ञानी ए. वेनिया एपकेरियन और उनके साथियों ने 39 मरीज़ों, जिनकी पीठ में चोट आई थी, का 3 साल तक एम.आर.आई. के द्वारा निरीक्षण किया। और मस्तिष्क की संरचना या कार्य में हो रहे बदलावों को रिकॉर्ड करके यह पता किया कि जिन लोगों में जीर्ण दर्द होता है उन लोगों के मस्तिष्क की संरचना अन्य लोगों से अलग होती है या जीर्ण दर्द विकसित होने के बाद उन लोगों के मस्तिष्क में कोई बदलाव होते हैं।

अब पता चला है कि दिमाग की संरचना से ही तय होता है कि किस व्यक्ति को जीर्ण दर्द होगा। शोध में स्पष्ट हुआ कि दर्द होने पर मस्तिष्क में बदलाव नहीं होता। समझ में आया है कि जीर्ण दर्द का सम्बंध मस्तिष्क की संरचना से होता है। अर्थात दर्द के जीर्ण होने की संभावना को पहले से पता किया जा सकता है और इस तरह से उपचार किया जा सकता है कि दर्द जीर्ण दर्द में ना बदले। (स्रोत फीचर्स)