शोधकर्ताओं ने रेशम-प्रोटीन आधारित ढांचे का निर्माण किया है जो यकृत (लीवर) कोशिकाओं के पुनर्जनन में मदद कर सकता है। इस तरह कृत्रिम रूप से विकसित लीवर कोशिकाएं, सामान्य लीवर कोशिकाओं के कार्य करने में सक्षम हैं। अत: इन ढांचों की मदद से जानलेवा लीवर रोग से ग्रस्त रोगियों में लीवर के क्षतिग्रस्त ऊतकों को पुन: विकसित किया जा सकेगा।

औषधियों के विषैले प्रभाव, वायरल संक्रमण और शराब के अत्यधिक सेवन के कारण यकृत को क्षति पहुंचती है, जिसकी परिणति लीवर सिरोसिस जैसे रोग में हो सकती है। इस मामले में एक विकल्प लीवर प्रत्यारोपण का होता है। लेकिन यह महंगा है और अक्सर प्राप्तकर्ता की प्रतिरक्षा प्रणाली पराए लीवर को अस्वीकार कर देती है।
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, गुवाहाटी के बिमान मंडल के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक दल ने लीवर रोगों के लिए एक सुरक्षित चिकित्सा की तलाश करते हुए एक रेशम-प्रोटीन आधारित छिद्रपूर्ण ढांचे का आविष्कार किया। फिर उन्होंने कोशिकाओं के पुनर्जनन को सहारा देने में इसकी क्षमता का परीक्षण प्रयोगशाला में कोशिका कल्चर और चूहों पर किया।

प्रयोगों में पता चला कि रेशम-प्रोटीन से निर्मित यह छिद्रित ढांचा मानव और चूहों के लीवर की कोशिकाओं को जुड़ने और पनपने में मदद करता है। अंतत: ये कोशिकाएं लीवर कोशिकाओं के एक समूह के रूप में विकसित हो जाती हैं। छिद्रित ढांचा पोषक तत्वों और ऑक्सीजन की आपूर्ति करके कोशिकाओं को भलीभांति पोषित करता है। ढांचे पर बढ़ने वाली कोशिकाओं ने लीवर कोशिकाओं के कार्य करने की क्षमता दर्शाई है। जैसे एल्ब्य़ूमिन और यूरिया का संश्लेषण और विष को निष्क्रिय करने की प्रक्रिया। ये कोशिकाएं तीन सप्ताह से अधिक अवधि तक काम करती रहीं।

जब इसे चूहों में प्रत्यारोपित किया गया, तब ढांचे ने लीवर कोशिकाओं को पनपने में भी मदद की। चूहों ने इस ढांचे को अस्वीकार नहीं किया, जिससे यह साबित होता है कि यह प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं करता है।
एक्टा बायोमटेरिलिया में प्रकाशित शोध पत्र में मंडल की टीम ने आशा व्यक्त की है कि इस ढांचे का इस्तेमाल कृत्रिम लीवर के विकास और नशीली दवाओं के अध्ययन के लिए किया जा सकता है। (स्रोत फीचर्स)